"लाक्षागृह": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Barnava (1).JPG|thumb|200px|[[बरनावा]] सथित लाक्षागृह का चिह्नित सथान]]
'''लाक्षागृहम्''' [[महाभारत]] के अट्ठारह पर्वों में से एक पर्व है।
महाभारत में ऐसा उल्लेख मिलता है कि एक बार पाण्डव अपनी माता कुन्ती के साथ वार्णावर्त नगर में महादेव कोका मेला देखने गये।
दुर्योधन ने इसकी पूर्व सूचना प्राप्त करके अपने एक मन्त्री पुरोचन को वहाँ भेजकर एक लाक्षागृह तैयार कराया।
पुरोचन पाण्डव को जलाने की प्रतीक्षा करने लगा।
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जिस दिन पुरोचन ने आग प्रज्जवलित करने की योजना की थी, उसी दिन पाण्डवों ने नगर के ब्राह्मणों को भोज के लिए आमन्त्रित किया।
साथ में अनेक निर्धन खाने आये।
सब लोग खा-पीकर चले गये पर एक भीलनी अपने पाँच पुत्रों के साथ वहाँ सो रही।रही थी।
रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके कमरे में आग लगायी। धीरे-धीरे आग चारों ओर लग गयी।
वह माता भाइयों के साथ सुरंग से बाहर निकल गया।गए।
प्रात:काल भीलनी को उसके पांच पुत्रों सहित मृत अवस्था में पाकर लोगों को पाण्डवों के कुन्ती के साथ जल मरने का भ्रम हुआ।
इससे दुर्योधन बहुत प्रसन्न हुआ किन्तु यथार्थता का ज्ञान होने पर उसे बहुत दु:ख हुआ।