"बुक्क राय प्रथम": अवतरणों में अंतर
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अाप कर्नाटक मे पता कर सकते हो दोनो भाई बेडार नायका जाति के है कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री बी श्रीरामुलु ने भी बोला मंच से। टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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बुक्क और उनके भाई हक्क (जिन्हें हरिहर प्रथम के नाम से भी जाना जाता है) के प्रारंभिक जीवन लगभग अज्ञात है और उनके प्रारंभिक जीवन का अधिकांश वर्णन विभिन्न मतों पर आधारित है (इनके अधिक विस्तृत वर्णन के लिए लेख विजयनगर साम्राज्य देखें)। एक मत के अनुसार बुक्क और हक्क का जन्म
▲बुक्क और उनके भाई हक्क (जिन्हें हरिहर प्रथम के नाम से भी जाना जाता है) के प्रारंभिक जीवन लगभग अज्ञात है और उनके प्रारंभिक जीवन का अधिकांश वर्णन विभिन्न मतों पर आधारित है (इनके अधिक विस्तृत वर्णन के लिए लेख विजयनगर साम्राज्य देखें)। एक मत के अनुसार बुक्क और हक्क का जन्म बुक्क और हक्क का जन्म बेडार (Bedar Nayaka) जाति में हुआ था और वे वारंगल के राजा की सेना के सेनापति थे।<ref name="royals"></ref> मुहम्मद बिन तुग़लक के हाथों वारंगल के राजा की पराजय के बाद, बुक्क और उनके भाई को बंदी बनाकर दिल्ली भेज दिया गया। दोनों को जबरन इस्लाम में धर्मांतरित किया गया। बुक्क और उनके भाई अंततः वहां से भागने में सफल हुए और उन्होंने अपनी हिन्दू परंपराएं पुनः अपना लीं एवं [[ब्राह्मण|ब्राह्मण]] संत [[माधवाचार्य विद्यारण्य|विद्यारण्य]] के मार्गदर्शन में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। एक अन्य मत के अनुसार दोनों भाइयों का संबंध [[होयसल राजवंश|होयसल साम्राज्य]] से था और उनका जन्म वर्तमान [[कर्नाटक|कर्नाटक]] में [[हम्पी|हम्पी]] प्रांत के पास हुआ था तथा वे वंशानुगत रूप से होयसल राज्य के उत्तराधिकारी थे। हालांकि दोनों मतों की सटीकता अभी भी विवादित बनी हुई है, किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं है कि बुक्क और उनके भाई को युद्ध में सफलता के लिए और साम्राज्य के प्रथम शासकों के रूप में प्रशंसा प्राप्त है।
बुक्क राय के 21-वर्षीय शासनकाल (नूनीज़ के अनुसार 37) में, राज्य समृद्ध हुआ और इसका विस्तार जारी रहा क्योंकि बुक्क राय ने दक्षिण [[भारत|भारत]] के अधिकांश राज्यों पर विजय प्राप्त कर ली और अपने साम्राज्य की सीमाओं का सतत विस्तार जारी रखा। सन 1360 तक उन्होंने आर्कोट के शांबुवराय के राज्य और कोंदाविदु के रेड्डियों को पराजित किया तथा पेनुकोंडा के आस-पास का क्षेत्र भी जीत लिया। बुक्क ने 1371 में मदुरै की सल्तनत को पराजित किया और दक्षिण में [[रामेश्वरम तीर्थ|रामेश्वरम]] तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया। उनके पुत्र कुमार कम्पन ने सैन्य अभियानों में उनका साथ दिया। उनकी पत्नी गंगांबिका द्वारा लिखित संस्कृत ग्रन्थ ''मधुराविजयम'' में उनके प्रयासों का वर्णन किया गया है। सन 1374 तक उन्होंने बहमनी सेना को हराकर तुंगभद्रा-कृष्णा दोआब के नियंत्रण प्राप्त कर लिया था और साथ ही [[गोआ|गोवा]], ओडिशा (ओरया) के राज्य पर भी अधिकार कर लिया था तथा बुक्क ने सिलोन के जाफ़ना राज्य एवं मालाबार के ज़ेमोरिनों को भी परास्त किया।
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