"शास्त्रीय नृत्य": अवतरणों में अंतर

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[[भारत]] में नृत्‍य की जड़ें प्राचीन परंपराओं में है। इस विशाल उपमहाद्वीप में नृत्‍यों की विभिन्‍न विधाओं ने जन्‍म लिया है। प्रत्‍येक विधा ने विशिष्‍ट समय व वातावरण के प्रभाव से आकार लिया है। राष्‍ट्रय नृत्‍य की कई विधाओं को पेश करता है, जिनमें से प्रत्‍येक का संबंध देश के विभिन्‍न भागों से है। प्रत्‍येक विधा किसी विशिष्‍ट क्षेत्र अथ। मुख्यतः 8 शास्त्रीय नृत्य हैं। भारत मुनि ने अपनी पुस्तक नाट्यशास्त्र में [https://wifistudy.xyz/2020/02/Classical-dance.html?m=1 शास्त्रीय नृत्य] का वर्णन किया है। शा स्त्रीय नृत्‍य इस प्रकार हैं -
 
== भरतनाट्यम् ==
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{{मुख्य|कथक}}
[[चित्र:Sharmila Sharma et Rajendra Kumar Gangani 2.jpg|thumb|right|200px|शर्मीला शर्मा और राजेन्द्र कुमार कथक करते हुए]]
उत्तर भारत का एक प्रमुख [https://wifi study.xyz/2020/02/Classical-dance.html?m=1 लोक नृत्य] के रूप में प्रसिद्ध है ।कथक का नृत्‍य रूप 100 से अधिक घुंघरु‍ओं को पैरों में बांध कर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्‍कर द्वारा पहचाना जाता है और हिन्‍दु धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और उर्दू कविता से ली गई विषयवस्‍तुओं का नाटकीय प्रस्‍तुतीकरण किया जाता है। कथक का जन्‍म उत्तर में हुआ किन्‍तु पर्शियन और मुस्लिम प्रभाव से यह मंदिर की रीति से दरबारी मनोरंजन तक पहुंच गया।
 
कथक की शैली का जन्‍म [[ब्राह्मण]] पुजारियों द्वारा हिन्‍दुओं की पारम्‍परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्‍हें क‍थिक कहते थे, जो नाटकीय अंदाज में हाव भावों का उपयोग करते थे। क्रमश: इसमें कथा कहने की शैली और अधिक विकसित हुई तथा एक नृत्‍य रूप बन गया। उत्तर भारत में मुगलों के आने पर इस नृत्‍य को शाही दरबार में ले जाया गया और इसका विकास ए परिष्कृत कलारूप में हुआ, जिसे मुगल शासकों का संरक्षण प्राप्‍त था और कथक ने वर्तमान स्‍वरूप लिया। इस नृत्‍य में अब धर्म की अपेक्षा सौंदर्य बोध पर अधिक बल दिया गया।