"आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास": अवतरणों में अंतर
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हिन्दी गद्य के उद्भव को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान हिन्दी गद्य की शुरूआत
:*(1) राजस्थानी में हिन्दी गद्य:-राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम रुप 10 वीं शताब्दी के दान पत्रों, पट्टे-परवानों, टीकाओं व अनुवाद ग्रंथों में देखने को मिलता है.आराधना, अतियार, बाल शिक्षा, तत्व विचार, धनपाल कथा आदि रचनाओं में राजस्थानी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग दृष्टिगत होते हैं.
*(2) मैथिली में हिन्दी गद्य:-कालक्रम की दृष्टि से राजस्थानी के बाद मैथिली में हिन्दी गद्य के प्रयोग दृष्टिगत होते हैं. मैथिली में प्राचीन हिन्दी गद्य ग्रन्थ ज्योतिरिश्वर की रचना वर्ण रत्नाकर है. इसका रचना काल 1324 ईस्वी सन् है.
*(3) ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य:- ब्रजभाषा में हिन्दी गद्य की प्राचीनतम रचनाएँ 1513 ईस्वी से पूर्व की प्रतीत नही होती. इनमें गोस्वामी विट्ठलनाथ कृत "श्रृंगार रस मंडन", "यमुनाष्टाक", " नवरत्न सटीक ", चतुर्भुज दास कृत
" षड्ऋतु वार्ता ", गोकुल नाथ कृत " चौरासी वैष्णवन की वार्ता ", " दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता " गोस्वामी हरिराम कृत "कृष्णावतार स्वरूप निर्णय",
"सातों स्वरूपों की भावना", "द्वादश निकुंज की भावना", नाभादास कृत " अष्टयाम ", बैकुंठ मणि शुक्ल कृत "अगहन माहात्म्य", "वैशाख माहात्म्य" तथा लल्लू लाल कृत "माधव विलास" विशेष रूप से उल्लेखनीय है.
*(4) दक्खिनी में हिन्दी गद्य:-मोहम्मद तुगलक के साथ दौलताबाद में गये उत्तर भारत के कुछ लोग वहीं बस गये और कालांतर में दक्खिनी हिन्दी का विकास किये. इसे खड़ी बोली हिन्दी के पूर्व रुप में देखा जाता है. गेसुदराज कृत "मेराजुलआशिकीन" तथा मूल्ला वजही कृत "सबरस"
में प्राचीन दक्खिनी हिन्दी गद्य रुप को देखा जा सकता है.
== भारतेंदु पूर्व युग ==
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