"शालिवाहन शक": अवतरणों में अंतर
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'''शालिवाहन शक''' जिसे '''[[शक संवत]]''' भी कहते हैं, हिंदू कैलेंडर, [[भारतीय राष्ट्रीय पंचांग|भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर]] और कम्बोडियन बौद्ध कैलेंडर के रूप मे प्रयोग किया जाता है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत वर्ष 78 के वसंत विषुव के आसपास हुई थी।{{fact}}
शालिवाहन राजा, [[शालिवाहन]] (जिसे कभी कभी गौतमीपुत्र शताकर्णी के रूप में भी जाना जाता है) को ''शालिवाहन शक'' के शुभारम्भ का श्रेय दिया जाता है विक्रमी संवत ईसवी से 57 वर्ष पूर्व उज्जैन के परमार राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने प्रारंभ किया था उस समय काल की
एक मत है कि, शक् युग उज्जैन, मालवा के राजा विक्रमादित्य के वंश पर शकों की जीत के साथ शुरु हुआ।राजा शालीवाहन को वरदान था कि वे किसी भी मिट्टी की मूरत को जीवित कर सकते थे उन्होंने मिट्टी की सेना बना कर उसे छिपा दिया था इन्द्र देव ने कई प्रयास किए सेना को नस्ट करने के लिए पर पूर्ण सफलता नहीं मिली । युद्ध के लिए राजा ने मिट्टी की सेना पर पानी के छीटें डालकर उसे जीवित कर लिया और विजय का विगुल बाजा दिया । इस जीत के बाद, शकों ने उस [[पश्चिमी क्षत्रप]] राज्य की स्थापना की जिसने तीन से अधिक सदियों तक इस क्षेत्र पर शासन किया।उनका पालन पोषण कुम्हार के घर हुआ था पर वे कुम्हार नहीं थे वर्तमान में उनका एक वंश वर्दिया के नाम से जाना जाता है जो कि विशुद्ध कुम्हार है अर्थात् इन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाना प्रारंभ कर दिया था। परन्तु वास्तविक रूप से ये क्षत्रिय है <ref>"The dynastic art of the Kushans", John Rosenfield, p130</ref>
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