"सुचेता कृपलानी": अवतरणों में अंतर

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}}
'''सुचेता कृपलानी''' (जन्ममूल नाम: '''सुचेता मजूमदार''') ([[२५ जून]],[[१९०८]]<ref>{{citation | year=2004 | title = Eminent Indian Freedom Fighters | author=S K Sharma | publisher=Anmol Publications PVT. LTD. | isbn=9788126118908 | page=560 | url=http://books.google.com/books?id=pMfpg66gIREC&pg=PA560}}</ref> - [[१ दिसम्बर]], [[१९७४]]<ref>http://www.sandesh.org/Story_detail.asp?pageID=1&id=48</ref><ref>http://indiancoastguard.nic.in/indiancoastguard/history/morehistory.html</ref>) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ थीं। ये [[उत्तर प्रदेश]] की मुख्य मंत्री बनीं और भारत की प्रथम महिला मुख्यमुख्यमंत्री मंत्रीथीं। वे प्रसिद्ध गांधीवादी नेता [[जे॰ बी॰ कृपलानी|आचार्य कृपलानी]] की पत्नी थीं।
 
==जीवनी==
सुचेता कृपलानी का जन्म [[पंजाब]] के [[अंबाला]] शहर में सम्पन्न बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता सरकारी चिकित्सक थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कई स्कूलों में पूरी हुई क्योंकि हर दो-तीन वर्ष में पिता का तबादला होता रहता था। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें [[दिल्ली]] भेज दिया गया। [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से उन्होंने [[इतिहास]] विषय में स्नातक की डिग्री हासिल की।
 
कॉलेज से निकलने के बाद, 21 वर्ष की उम्र में ही ये स्वतंत्रता संग्राम में कूदना चाहती थीं पर दुर्भाग्यवश वह ऐसा कर नहीं पायीं क्योंकि 1929 में उनके पिता और बहन की मृत्यु हो गयी और परिवार को संभालने की जिम्मदारी सुचेता के कंधो पर आ गयी। इसके बाद, वे [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] (बीएचयू) में संवैधानिक इतिहास की व्याख्याता बन गईं।
 
सन १९३६ में अठाइस साल की उम्र में उन्होंने [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के मुख्य नेता [[जेबी कृपलानी]] से [[विवाह]] किया। सुचेता के इस कदम का उनके घर वालों के साथ [[महात्मा गांधी]] ने भी विरोध किया था। जेबी कृपलानी सिन्धी थे और उम्र में सुचेता कृपलानी से बीस साल बड़े थे। इसके अलावा गाँधीजी को डर था कि इस विवाह के कारण आचार्य जो उनके “दाहिने हाथ” थे, कहीं स्वतंत्रता संग्राम से पीछे न हट जाँय। आचार्य कृपलानी का साथ पाकर सुचेता पूरी तरह से राजनीति में कूद पड़ीं। 1940 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की महिला शाखा – ‘अखिल भारतीय महिला काँग्रेस’ की स्थापना की। 1942 में [[भारत छोड़ो आंदोलन]] में सक्रिय होने के कारण उन्हें एक साल के लिए जेल जाना पड़ा। १९४६ में वह [[संविधान सभा]] की सदस्य चुनी गई। 1949 में उन्हें [[संयुक्त राष्ट्र महासभा]] में एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था।
 
भारत के स्वतंत्र होने के बाद वह भारतीय राजनीति में सक्रिय हो गयीं। जब उनके पति व्यक्तिगत व राजनीतिक मतभेदों के कारण [[जवाहरलाल नेहरू]] से अलग हो गए और अपनी खुद की पार्टी [[किसान मजदूर प्रजा पार्टी]] बनाई तब सुचेता भी इनके साथ हो लीं। 1952 में सुचेता किसान मजदूर पार्टी की ओर से न्यू दिल्ली से चुनाव लड़ी और जीतीं भी। पर शीघ्र ही राजनैतिक मतभेदों के कारण वह काँग्रेस में लौट आयीं। 1957 में काँग्रेस के टिकिट पर इसी सीट से वह दुबारा चुनाव जीतीं। १९५८ से १९६० तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थी।
 
1962 में सुचेता कृपलानी ने [[उत्तर प्रदेश]] विधानसभा का चुनाव लड़ा। वे [[कानपुर]] निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गयीं और उन्हें श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। १९६३ ई में उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। १९६३ से १९६७ तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 1967 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के [[गोंडा]] जिले से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ कर जीत हासिल की।
 
स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती '''सुचेता कृपलानी''' के योगदान को भी हमेशा याद किया जाएगा। १९०८ में जन्मी सुचेता जी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सजा हुई। १९४६ में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गई। १९५८ से १९६० तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थी। १९६३ से १९६७ तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 1 दिसम्बर १९७४ को उनका निधन हो गया। अपने शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि "सुचेता जी ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थीं, जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है।"
[[Image:Ulla Lindstrom, Sucheta Kripalani, Sucheta Kripalani, Cairine Wilson and Eleanor Roosevelt.jpg|right|thumb|300px|सुचेता कृपलानी, अन्य वैश्विक नेत्रियों के साथ ; बाएँ से दाएं- उल्ला लैंडस्ट्रोम, बार्बरा कैसिल, कैराइन विल्सन, एलीनोर रूसवेल्ट (सन १९४९ में)]]
 
'''सुचेता कृपलानी''' देश की पहली महिला [[मुख्य मंत्री]] थीं। ये बंटवारे की त्रासदी में [[महात्मा गांधी]] के बेहद करीब रहीं। सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने बापू के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गई। सुचेता दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुई, जब उनके रुख में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे।
सन १९७१ में उन्होने राजनीति से संन्यास ले लिया। राजनीति से सन्यास लेने के बाद वे अपने पति के साथ [[दिल्ली]] में बस गयीं। निःसन्तान होने के कारण उन्होंने अपना सारा धन और संसाधन लोक कल्याण समिति को दान कर दिया। इसी समय, उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘एन अनफिनिश्ड ऑटोबायोग्राफी’ लिखनी शुरू की, जो तीन भागों में में प्रकाशित हुई। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरता गया और 1 दिसम्बर 1974 को [[हृदय]] गति रूक जाने से उनका निधन हो गया।
 
'''सुचेता कृपलानी''' देशभारत के किसी प्रदेश की पहली महिला [[मुख्य मंत्री]] थीं। ये बंटवारे की त्रासदी में [[महात्मा गांधी]] के बेहद करीब रहीं। सुचेता कृपलानीवे उन चंद महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने बापू के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी। वह [[नोवाखली]] यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गई। सुचेतावे दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईहुईं, जब उनके रुख में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे।
 
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