"भारतीय संसद": अवतरणों में अंतर

→‎संसद में प्रश्न पूछना: अनर्थक जानकारी हटाई
पंक्ति 188:
संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल के ठीक बाद का समय आमतौर पर ‘शून्यकाल’ अथवा जीरो आवर के नाम से जाना जाने लगा है। यह एक से अधिक अर्थों में शून्यकाल होता है। 12 बजे दोपहर का समय न तो मध्याह्न पूर्व का समय होता है और न ही मध्याह्न पश्चात का समय। ‘शून्यकाल’ 12 बजे प्रारंभ होने के कारण इस नाम से जाना जाता है इसे ‘आवर’ भी कहा गया क्योंकि पहले ‘शून्यकाल’ पूरे घंटे तक चलता था, अर्थात 1 बजे दिन में सदन का दिन के भोजन के लिए अवकाश होने तक।
 
यह कोई नहीं कह सकता कि इस काल के दौरान कौन-सा मामला उठ खड़ा हो या सरकार पर किस तरह का आक्रमण कर दिया जाए।अतः नियमों मेंकी ‘शून्यकाल’दृष्टि कासे कहींतथाकथित भीशून्यकाल कोईएक उल्लेख नहींअनियमितता है। प्रश्नकाल के समाप्त होते ही सदस्यगण ऐसे मामले उठाने के लिए खड़े हो जाते हैं जिनके बारे में वे महसूस करते हैं कि कार्यवाही करने में देरी नहीं की जा सकती। हालाँकि इस प्रकार मामले उठाने के लिए नियमों में कोई उपबंध नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रथा के पीछे यही विचार रहा है कि ऐसे नियम जो राष्ट्रीय महत्व के मामले या लोगों की गंभीर शिकायतों संबंधी मामले सदन में तुरंत उठाए जाने में सदस्यों के लिए बाधक होते हैं, वे निरर्थक हैं। आजकल, शून्यकाल में उठाये जाने वाले कुछ मामलों की पहले से दी गई सूचना के आधार पर, अध्यक्ष की अनुमति से, एक सूची भी बनने लगी है।{{citation needed}}
 
नियमों की दृष्टि से तथाकथित ‘शून्यकाल’ एक अनियमितता है। मामले चूंकि बिना अनुमति के या बिना पूर्व सूचना के उठाए जाते हैं अतः इससे सदन का बहुमूल्य समय व्यर्थ जाता है। इससे सदन के विधायी, वित्तीय और अन्य नियमित कार्य का अतिक्रमण होता है। अब तो शून्यकाल में उठाये जाने वाले कुछ मामलों की पहले से दी गई सूचना के आधार पर, अध्यक्ष की अनुमति से, एक सूची भी बनने लगी है।
 
=== संसद में जनहित के मामले ===