"संस्कृत साहित्य": अवतरणों में अंतर

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[[ऋग्वेद]]काल से लेकर आज तक [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। [[हिमालय]] से लेकर [[कन्याकुमारी]] के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। [[भारत की संस्कृति|भारतीय संस्कृति]] और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से [[धर्मनिरपेक्षता|धर्मनिरपेक्ष]] (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैरनविकी (ह्यूमैनिटी) आदि प्राय: समस्त प्रकार के वाङ्मय की रचना हुई।
 
संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। नमस्ते मैं अमित कुमार सिंह दरभंगा बिहार भारत से हूँ । by AKS
 
== संस्कृत साहित्य का महत्व ==