"केवल ज्ञान": अवतरणों में अंतर
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[[Image:Kevalajnana.jpg|thumb|200px|महावीर स्वामी जी के केवल ज्ञान का चित्रण]]
{{जैन धर्म}}
[[जैन दर्शन]] के अनुसार '''केवल''' विशुद्धतम ज्ञान को कहते हैं। इस ज्ञान के चार प्रतिबंधक कर्म होते हैं- मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनवरण तथा अंतराय। इन चारों कर्मों का क्षय होने से केवलज्ञान का उदय होता हैं। इन कर्मों में सर्वप्रथम मोहकर का, तदनन्तर इतर तीनों कर्मों का एक साथ ही क्षय होता है। केवलज्ञान का विषय है- सर्वद्रव्य और सर्वपर्याय (''सर्वद्रव्य पर्यायेषु केवलस्य''-तत्वार्थसूत्र, १.३०)। इसका तात्पर्य यह है कि ऐसी कोई भी वस्तु नहीं, ऐसा कोई पर्याय नहीं जिसे केवलज्ञान से संपन्न व्यक्ति नहीं जानता। फलत: आत्मा की ज्ञानशक्ति का पूर्णतम विकास या आविर्भाव केवलज्ञान में लक्षित होता
[[जैन दर्शन]] के अनुसार जीव १३वें [[गुणस्थान]] में '''केवल ज्ञान''' की प्राप्ति करता है। १४ गुणस्थान इस प्रकार है।
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