"कुशीनगर": अवतरणों में अंतर

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बुद्ध के कथनानुसार कुशीनगर पूर्व-पश्चिम में १२ योजन लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में ७ योजन चौड़ा था। किन्तु [[राजगृह]], [[वैशाली]] अथवा [[श्रावस्ती]] नगरों की भाँति यह बहुत बड़ा नगर नहीं था। यह बुद्ध के शिष्य [[आनन्द (बुद्ध के शिष्य)|आनन्द]] के इस वाक्य से पता चलता है- "अच्छा हो कि भगवान की मृत्यु इस क्षुद्र नगर के जंगलों के बीच न हो।" भगवान बुद्ध जब अन्तिम बार रुग्ण हुए तब शीघ्रतापूर्वक कुशीनगर से [[पावा]] गए किन्तु जब उन्हें लगा कि उनका अन्तिम क्षण निकट आ गया है तब उन्होंने आनन्द को कुशीनारा भेजा। कुशीनारा के संथागार में मल्ल अपनी किसी सामाजिक समस्या पर विचार करने के लिये एकत्र हुए थे। संदेश सुनकर वे शालवन की ओर दौड़ पड़े जहाँ बुद्ध जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे। मृत्यु के पश्चात् वहीं तथागत की अंत्येष्टि क्रिया चक्रवर्ती राजा की भाँति की गई। बुद्ध के अवशेष के अपने भाग पर कुशीनगर के मल्लों ने एक [[स्तूप]] खड़ा किया। कसया गाँव के इस स्तूप से [[ताम्रपत्र]] प्राप्त हुआ है, जिसमें उसे "परिनिर्वाण चैत्याम्रपट्ट" कहा गया है। अतः इसके तथागत के [[महापरिनिर्वाण]]-स्थान होने में कोई सन्देह नहीं है।
 
[[मौर्य राजवंश|मौर्य युग]] में कुशीनगर की उन्नति विशेष रूप से हुई। किन्तु उत्तर मौर्यकाल में इस नगर की महत्ता कम हो गई। [[गुप्त साम्राज्य|गुप्तयुग]] में इस नगर ने फिर अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त किया। [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] विक्रमादित्य के काल में यहाँ अनेक विहारों और मंदिरों का निर्माण हुआ। गुप्त शासकों ने यहाँ जीर्णोद्वार कार्य भी कराए। खुदाई से प्राप्त लेखों से ज्ञात होता है कि [[कुमारगुप्त]] (प्रथम) (४१३-४१५ ई.) के समय [[हरिबल]] नामक बौद्ध [[भिक्षु]] ने भगवान् बुद्ध की महापरिनिर्वाणावस्था की एक विशाल मूर्ति की स्थापना की थी और उसने [[महापरिनिर्वाण स्तूप]] का जीर्णोद्वार कर उसे ऊँचा भी किया था और स्तूप के गर्भ में एक ताँबे के घड़े में भगवान की अस्थिधातु तथा कुछ मुद्राएँ रखकर एक अभिलिखित ताम्रपत्र से ढककर स्थापित किया था।<ref>Gina Barns (1995). "An Introduction to Buddhist Archaeology". World Archaeology. 27 (2): 166–168. doi:10.1080/00438243.1995.9980301.</ref><ref>Robert Stoddard (2010). [http://digitalcommons.unl.edu/geographyfacpub/27 "The Geography of Buddhist Pilgrimage in Asia"]. Pilgrimage and Buddhist Art. Yale University Press. 178: 3–4.</ref>

गुप्तों के बाद इस नगर की दुर्दशा हो गई। प्रसिद्ध चीनी यात्री [[हुएन त्सांग|हुएन्त्सांग]] ने इसकी दुर्दशा का वर्णन किया है। वह लिखता है-
:'' इस राज्य की राजधानी बिल्कुल ध्वस्त हो गई है। इसके नगर तथा ग्राम प्रायः निर्जन और उजाड़ हैं, पुरानी ईटों की दीवारों का घेरा लगभग १० मीटर रह गया है। इन दीवारों की केवल नीवें ही रह गई हैं। नगर"

कुशीनगर के उत्तरीपूर्वी कोने पर [[सम्राट अशोक|सम्राट् अशोक]] द्वारा बनवाया एक स्तूप है।<ref>Akira Hirakawa; Paul Groner (1993). [https://books.google.com/books?id=XjjwjC7rcOYC A History of Indian Buddhism: From Śākyamuni to Early Mahāyāna]. Motilal Banarsidass. p. 101. ISBN 978-81-208-0955-0.</ref> यहाँ पर ईटों का विहार है जिसके भीतर भगवान् के परिनिर्वाण की एक मूर्ति बनी है। सोते हुए पुरुष के समान उत्तर दिशा में सिर करके भगवान् लेटे हुए है। विहार के पास एक अन्य स्तूप भी सम्राट् अशोक का बनवाया हुआ है। यद्यपि यह खंडहर हो रहा है, तो भी २०० फुट ऊँचा है। इसके आगे एक स्तंभ है जिसपर तथागत के निर्वाण का इतिहास है।''
 
११वीं-१२वीं शताब्दी में [[कलचुरि राजवंश|कलचुरी]] तथा [[पाल राजवंश|पाल नरेशों]] ने इस नगर की उन्नति के लिए पुनः प्रयास किया था, यह माथाबाबा की खुदाई में प्राप्त काले रंग के पत्थर की मूर्ति पर उत्कीर्ण लेख से ध्वनित होता है।
 
१२०० ई के आसपास मुसलमान आक्रमणकारी सेनाओं के अत्याचार से भयभीत भिक्षु अपने जीवनरक्षा के लिए कुशीनगर छोड़कर भाग गए। इसके बाद पूरे मुसलमानी शासन में यह स्थान उपेक्षित होकर नष्ट होता रहा। <ref>Richard H. Robinson; Sandra Ann Wawrytko; Ṭhānissaro Bhikkhu (1996). [https://books.google.com/books?id=LhUSAQAAIAAJ The Buddhist Religion: A Historical Introduction]. Thomson. p. 50. ISBN 978-0-534-20718-2.</ref><ref>Mark Juergensmeyer; Wade Clark Roof (2011). [https://books.google.com/books?id=WwJzAwAAQBAJ Encyclopedia of Global Religion]. SAGE Publications. p. 148. ISBN 978-1-4522-6656-5.</ref>
 
१९वीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में ब्रितानी पुरातत्त्वविद [[अलेक्ज़ैंडर कन्निघम]] ने पुनः कुशीनगर की खोज की। उनके साथी सी एल कार्लाइल ने धरती के अन्दर से १५०० वर्ष पुरानी बुद्ध का चित्र खोद निकाला। <ref>Robert Stoddard (2010). [http://digitalcommons.unl.edu/geographyfacpub/27 "The Geography of Buddhist Pilgrimage in Asia"]. Pilgrimage and Buddhist Art. Yale University Press. 178: 3–4.</ref><ref>Asher, Frederick (2009). "From place to sight: locations of the Buddha´s life". Artibus Asiae. 69 (2): 244.</ref><ref>Himanshu Prabha Ray (2014). [https://books.google.com/books?id=l3s9BAAAQBAJ&pg=PA74 The Return of the Buddha: Ancient Symbols for a New Nation]. Routledge. pp. 74–75, 86. ISBN 978-1-317-56006-7.</ref> उसके बाद से यह स्थान एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ बन गया है। ईसापूर्व तीसरी शताब्दी के पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि यह स्थान (कुशीनगर) एक प्राचीन तीर्थस्थल था।
 
==मैत्रेय-बुद्ध परियोजना==