"सोन नदी": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
यह म.प्र. की एक प्रमुख नदी है। इस नदी का नाम सोन पड़ा क्योंकि इस नदी के [[बालू]] (रेत) पीले रंग के हैँ जो सोने कि तरह चमकते हैँ। इस नदी के रेत भवन निर्माण आदी के लिए बहुत उपयोगी हैं यह रेत पूरे बिहार शहडोल,सीधी, रीवा में भवन निर्माण के लिए उपयोग में लाया जाता है तथा यह रेत उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में अवि राठौड़ द्वारा भी निर्यात किया जाता है। सोन नदी का उल्लेख रामायण आदि पुराणो में आता है ।
 
गंगा नदी की सहायक नदियों में सोन का प्रमुख स्थान है। इसका पुराना नाम संभवत: 'सोहन' था जो पीछे बिगड़कर सोन बन गया। यह नदी मध्यप्रदेश के [[अमरकंटक]] नामक पहाड़ से निकलकर 350 मील का चक्कर काटती हुई [[पटना]] से पश्चिम गंगा में मिलती है। इस नदी का पानी मीठा, निर्मल और स्वास्थ्यवर्धक होता है। इसके तटों पर अनेक प्राकृतिक दृश्य बड़े मनोरम हैं। अनेक फारसी, उर्दू और हिंदी कवियों ने नदी और नदी के जल का वर्णन किया है। इस नदी में [[डेहरी आन सोन|डिहरी-आन-सोन]] पर [[बाँध]] बाँधकर 296 मील लंबी नहर निकाली गई है जिसके जल से शाहाबाद, गया और पटना जिलों के लगभग सात लाख एकड़ भूमि की सिंचाई होती है। यह बाँध 1874 ई. में तैयार हो गया था। इस नदी पर ही एक लंबा पुल, लगभग 3 मील लंबा, डिहरी-ऑन-सोन पर बना हुआ है।
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ऐसे यह नदी शांत रहती है। इसका तल अपेक्षया छिछला है और पानी कम ही रहता है पर बरसात में इसका रूप विकराल हो जाता है, पानी मटियाले रंग का, लहरें भयंकर और झाग से भरी हो जाती हैं। तब इसकी धारा तीव्र गति और बड़े जोर शोर से बहती है।
बघोर गाँव मे पानी के मुख्य स्रोत के लिए प्रसिद्धि है
 
== सोन जल विवाद ==