"मौर्य राजवंश": अवतरणों में अंतर

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== साम्राज्य विस्तार ==
उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था। मगध पर कब्जा होने के बाद चन्द्रगुप्त सत्ता के केन्द्र पर काबिज़ हो चुका था। चन्द्रगुप्त ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ किया। इसकी जानकारी अप्रत्यक्ष साक्ष्यों से मिलती है। [[रूद्रदामन]] के [[जूनागढ़]] शिलालेख में लिखा है कि सिंचाई के लिए सुदर्शन झील पर एक बाँध पुष्यगुप्त द्वारा बनाया गया था। पुष्यगुप्त उस समय अशोक का प्रांतीय राज्यपाल था। पश्चिमोत्तर भारत को यूनानी शासन से मुक्ति दिलाने के बाद उसका ध्यान दक्षिण की तरफ गया।{{cn}}
 
चन्द्रगुप्त ने सिकन्दर ([[अलेक्ज़ेन्डर]]) के सेनापति [[सेल्युकस प्रथम निकेटर|सेल्यूकस]] को ३०५ ईसापूर्व के आसपास हराया था। ग्रीक विवरण इस विजय का उल्ले़ख नहीं करते हैं पर इतना कहते हैं कि चन्द्रगुप्त (यूनानी स्रोतों में ''सैंड्रोकोटस'' नाम से ) और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई थी जिसके अनुसार सेल्यूकस ने [[कांधार|कंधार ]], [[काबुल]], [[हेरात]] और [[बलूचिस्तान (पाकिस्तान)|बलूचिस्तान]] के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए थे। इसके साथ ही चन्द्रगुप्त ने उसे ५०० हाथी भेंट किए थे। इतना भी कहा जाता है चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस की बेटी [[कर्नालिया ([[हेलना]])]] से वैवाहिक संबंध स्थापित किया था। यह‌ प्रथम [[अन्तर्राष्ट्रीय विवाह]] था। सेल्यूकस ने [[मेगस्थनीज|मेगास्थनीज़]] को चन्द्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा था। प्लूटार्क के अनुसार "सैंड्रोकोटस उस समय तक सिंहासनारूढ़ हो चुका था, उसने अपने ६,००,००० सैनिकों की सेना से सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला और अपने अधीन कर लिया"। यह टिप्पणी थोड़ी अतिशयोक्ति कही जा सकती है क्योंकि इतना ज्ञात है कि [[कावेरी नदी]] और उसके दक्षिण के क्षेत्रों में उस समय [[चोल राजवंश|चोलों]], [[पाण्ड्य राजवंश|पांड्यों]], सत्यपुत्रों तथा केरलपुत्रों का शासन था। अशोक के शिलालेख [[कर्नाटक]] में [[चित्तलदुर्ग]], [[येरागुडी]] तथा [[मास्की]] में पाए गए हैं। उसके शिलालिखित धर्मोपदेश प्रथम तथा त्रयोदश में उनके पड़ोसी चोल, पांड्य तथा अन्य राज्यों का वर्णन मिलता है। चुंकि ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती कि अशोक या उसके पिता [[बिन्दुसार|बिंदुसार]] ने दक्षिण में कोई युद्ध लड़ा हो और उसमें विजय प्राप्त की हो अतः ऐसा माना जाता है उनपर चन्द्रगुप्त ने ही विजय प्राप्त की थी। अपने जीवन के उत्तरार्ध में उसने [[जैन धर्म]] अपना लिया था और सिंहासन त्यागकर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में अपने गुरु [[जैनमुनि भद्रबाहु]] के साथ संन्यासी जीवन व्यतीत करने लगा था।{{cn}}
 
[[चित्र:Chandragupta mauryan empire.GIF|thumb|left|चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य]]
=== बिन्दुसार ===
{{main|बिंदुसार}}
चन्द्रगुप्त के बाद उसका पुत्र [[बिंदुसार]] सत्तारूढ़ हुआ पर उसके बारे में अधिक ज्ञात नहीं है। दक्षिण की ओर साम्राज्य विस्तार का श्रेय यदा कदा बिंदुसार को दिया जाता है हँलांकि उसके विजय अभियान का कोई साक्ष्य नहीं है। जैन परम्परा के अनुसार उसकी माँ का नाम दुर्धर था और पुराणों में वर्णित बिंदुसार ने २५ वर्षों तक शासन किया था। उसे ''अमित्रघात'' (दुश्मनों का संहार करने वाला) की उपाधि भी दी जाती है जिसे यूनानी ग्रंथों में ''अमित्रोकेडीज़" का नाम दिया जाता है। बिन्दुसार आजिवक धरम को मानता था। उसने एक युनानी शासक एन् टियोकस प्रथम से सूखी अन्जीर, मीठी शराब व एक दार्शनिक की मांग की थी। उसे अंजीर व शराब दी गई किन्तु दार्शनिक देने से इंकार कर दिया गया।{{cn}}
 
===चक्रवर्ती सम्राट अशोक ===
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[[चित्र:Mauryan Empire Map.gif|thumb|left|अशोक का राज्य]]
 
[[सम्राट अशोक]], भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक हैं। साम्राज्य के विस्तार के अतिरिक्त प्रशासन तथा धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में उन का नाम [[अक़बर]] जैसे महान शासकों के साथ लिया जाता है। हालांकी वे [[अकबर]] से बहूत शक्तिशाली एवं महान सम्राट रहे है। कई विद्वान तो [[सम्राट अशोक]] को विश्व इतिहास के सबसे सफल शासक भी मानते हैं। अपने राजकुमार के दिनों में उन्होंने [[उज्जैन]] तथा [[तक्षशिला]] के विद्रोहों को दबा दिया था। पर [[कलिंग युद्ध|कलिंग की लड़ाई]] उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई और उनका मन युद्ध में हुए नरसंहार से ग्लानि से भर गया। उन्होंने [[बौद्ध धर्म]] अपना लिया तथा उसके प्रचार के लिए बहूत कार्य किये। [[सम्राट अशोक]] को बौद्ध धर्म मे उपगुप्त ने दीक्षित किया था। उन्होंने देवानांप्रिय, प्रियदर्शी, जैसी उपाधि धारण की। सम्राट अशोक के शिलालेख तथा शिलोत्कीर्ण उपदेश [[भारतीय उपमहाद्वीप]] में जगह-जगह पाए गए हैं। उसने ''धम्म'' का प्रचार करने के लिए विदेशों में भी अपने प्रचारक भेजे। जिन-जिन देशों में प्रचारक भेजे गए उनमें [[सीरिया]] तथा पश्चिम एशिया का एंटियोकस थियोस, [[मिस्र]] का टोलेमी फिलाडेलस, [[मकदूनिया]] का एंटीगोनस गोनातस, [[साईरीन]] का मेगास तथा [[एपाईरस]] का एलैक्जैंडर शामिल थे। अपने पुत्र [[महेंद्र]] और एक बेटी को उन्होंने राजधानी पाटलिपुत्र से [[श्रीलंका]] जलमार्ग से रवाना किया। पटना (पाटलिपुत्र) का ऐतिहासिक महेन्द्रू घाट उसी के नाम पर नामकृत है। युद्ध से मन उब जाने के बाद भी सम्राट अशोक ने एक बड़ी सेना को बनाए रखा था। ऐसा विदेशी आक्रमण से साम्राज्य के पतन को रोकने के लिए आवश्यक था।{{cn}}
 
== प्रशासन ==