"१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम": अवतरणों में अंतर

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1857/58 का भारत का स्वाधीनता संग[[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के कई ऐसे कदम जिन्होने सैनिकों को विद्रोह के लिए मजबूर किया, कई स्थानों पर इन विद्रोही सैनिकों को आम जनता का समर्थन मिला.
|conflict= 1857/58 का भारत का स्वाधीनता संग्राम
|image= [[चित्र:Indian Rebellion of 1857.jpg|250px]]
|casus= [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के कई ऐसे कदम जिन्होने सैनिकों को विद्रोह के लिए मजबूर किया, कई स्थानों पर इन विद्रोही सैनिकों को आम जनता का समर्थन मिला.
|image= [[File:KotwalDhanSinghGurjarMeerut.jpg|thumb|कमिशनरी चौक, [[मेरठ]] में विद्यमान कोतवल धन सिंह गुर्जर की प्रतिमा]]
|caption=1857-59' के दौरान हुये भारतीय विद्रोह के प्रमुख केन्द्रों: [[मेरठ]], [[दिल्ली]], [[कानपुर]], [[लखनऊ]], [[झाँसी]] और [[ग्वालियर]] को दर्शाता सन 1912 का नक्शा।
|date= 10 मई 1857
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* स्वतंत्र राज्य [[झांसी]] की अपदस्थ रानी, [[रानी लक्ष्मीबाई]] की सेना
*कुछ भारतीय नागरिक; मुख्यत: अवध के ताल्लुकेदारों (सामंती जमींदार) और ग़ाज़ियों (धर्मयोद्धा) के अनुचर।
|combatant2= {{flagicon|यूनाइटेडसंयुक्त किंगडमराजशाही}} [[ब्रिटिश सेना]]<br />
[[चित्र:Flag of the British East India Company (1801).svg|22px]] [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के [[सिपाही]]<br /> देशी उपद्रवी <br /> और ईस्ट इंडिया कंपनी के ब्रिटिश सैनिक
{{flagicon|यूनाइटेडसंयुक्त किंगडमराजशाही}} बंगाल प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश नागरिक स्वयंसेवक<br />
21 [[रियासत|रियासतें]]
*[[चित्र:Flag of Jaipur.svg|22px]] [[जयपुर]]
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|commander1=दुगवा नरेश मंगल पाण्डेय
{{flagicon|मुग़ल साम्राज्य}} [[बहादुर शाह द्वितीय]]<br />[[नाना साहेब]]<br />{{flagicon| मुग़ल साम्राज्य }} [[मिर्ज़ा मुग़ल]]<br />[[चित्र:Flag of the British East India Company (1801).svg|22px]] [[बख़्त खान]]<br />[[रानी लक्ष्मीबाई]]<br />[[चित्र:Flag of the British East India Company (1801).svg|22px]] [[तात्या टोपे]]<br />[[चित्र:अवध ध्वज.gif|22px]] [[बेगम हजरत महल]]
|commander2= [[प्रधान सेनापति, भारत]]:<br />{{flagicon|यूनाइटेडसंयुक्त किंगडमराजशाही}} [[जॉर्ज एनसोन (1797-1857)|जॉर्ज एनसोन]] (मई 1857 से)<br />{{flagicon|यूनाइटेडसंयुक्त किंगडमराजशाही }} सर [[पैट्रिक ग्रांट]] <br />{{flagicon|यूनाइटेडसंयुक्त किंगडमराजशाही }} [[कॉलिन कैंपबैल]] (अगस्त 1857 से)<br />[[चित्र:Pre 1962 Flag of Nepal.png|22px]] [[जंग बहादुर]]<ref>''The Gurkhas'' by W. Brook Northey, John Morris. ISBN 81-206-1577-8. Page 58</ref>
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}}
[[चित्र:1857Swatantrata sangram.jpg|thumb|300px|right|१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट।]]
'''१८५७ का भारतीय विद्रोह''', ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीयों द्वारा किया गया एक सशस्त्र विद्रोह था। इसेजिसे '''प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम''', '''सिपाहीगुर्जर विद्रोह''' और '''भारतीय विद्रोह''' के नाम से भी जाना जाता है। यह विद्रोह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दो वर्षों तक चला। इस विद्रोह का आरम्भ [[छावनी]] क्षेत्रों में छोटी झड़पों तथा आगजनी से हुआ था परन्तु जनवरी १८५७ तक इसने एक बड़ा रूप ले लिया। विद्रोह का अन्त भारत में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] के शासन की समाप्ति के साथ हुआ और पूरे भारत पर ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष शासन आरम्भ हो गया जो अगले ९० वर्षों तक चला। <ref>http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2007142.cms</ref>.है
इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद [[धन सिंह गुर्जर|कोतवाल धनसिंह गुर्जर]] को जाता है <ref>मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1963 पृष्ठ संख्या 52</ref>
10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।1 सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए।
इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे। <ref>मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1963 पृष्ठ संख्या 52</ref>मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी। <ref>पांचली, घाट, गगोल आदि ग्रामों में प्रचलित किवदन्ती, बिन्दु क्रमांक 191, नैरेटिव ऑफ इवेन्टस अटैन्डिग द आऊट ब्रैक ऑफ डिस्टरबैन्सिस एण्ड दे रेस्टोरेशन ऑफ औथरिटी इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ 1857-58, नवम्बर 406, दिनांक 15 नवम्बर 1858, फ्राम एफ0 विलयम्बस म्.59 सैकेट्री टू गवर्नमेंट नार्थ-वैस्टर्न प्राविन्स, इलाहाबाद, राष्ट्रीय अभिलेखागार, दिल्ली।
आचार्य दीपांकर, स्वाधीनता संग्राम और मेरठ, 1993 पृष्ठ संख्या 143</ref> जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया।
मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 8 अप्रैल को फासी दे दी गई थी। 10 मई, 1857 को मेरठ में हुए जनक्रान्ति के विस्फोट से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है।
 
क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई। <ref> वही, नैरेटिव इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ</ref> मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धन सिंह कोतवाल ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था। <ref>मैमोरेन्डम ऑन द म्यूंटनी एण्ड आऊटब्रेक ऐट मेरठ इन मई 1857, बाई मेजर विलयम्स, कमिश्नर ऑफ द मिलेट्री पुलिस, नार्थ-वेस्टर्न प्राविन्सिस, इलाहाबाद, 15 नवम्बर 1858; जे0ए0बी0 पामर, म्यूटनी आऊटब्रेक एट मेरठ, पृष्ठ संख्या 90-91</ref> धन सिंह कोतवाल को पुलिस नियंत्रण के छिन्न-भिन्न हो जाने के लिए दोषी पाया गया। क्रान्तिकारी घटनाओं से दमित लोगों ने अपनी गवाहियों में सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गूजर है इसलिए उसने क्रान्तिकारियों, जिनमें गूजर बहुसंख्या में थे, को नहीं रोका। उन्होंने धन सिंह पर क्रान्तिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप भी लगाया। <ref>डेपाजिशन नम्बर 54, 56, 59 एवं 60, आफ डेपाजिशन </ref>एक गवाही के अनुसार क्रान्तिकरियों ने कहा कि धन सिंह कोतवाल ने उन्हें स्वयं आस-पास के गांव से बुलाया है <ref>वही, डेपाजिशन नम्बर 66</ref>
== भारत में ब्रितानी विस्तार का संक्षिप्त इतिहास ==
[[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने [[रॉबर्ट क्लाइव]] के नेतृत्व में सन 1757 में [[प्लासी का युद्ध]] जीता। युद्ध के बाद हुई संधि में अंग्रेजों को बंगाल में कर मुक्त व्यापार का अधिकार मिल गया। सन 1764 में [[बक्सर का युद्ध]] जीतने के बाद अंग्रेजों का बंगाल पर पूरी तरह से अधिकार हो गया। इन दो युद्धों में हुई जीत ने अंग्रेजों की ताकत को बहुत बढ़ा दिया और उनकी सैन्य क्षमता को परम्परागत भारतीय सैन्य क्षमता से श्रेष्ठ सिद्ध कर दिया। कंपनी ने इसके बाद सारे भारत पर अपना प्रभाव फैलाना आरंभ कर दिया।
[[चित्र:Indian revolt of 1857 states map.svg|thumb|250px|1857 की क्रांति के समय के भारतीय राज्य।]] सन 1843 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने [[सिन्ध]] क्षेत्र पर रक्तरंजित लडाई के बाद अधिकार कर लिया। सन १८३९ में [[महाराजा रणजीत सिंह]] की मृत्यु के बाद कमजोर हुए [[पंजाब]] पर अंग्रेजों ने अपना हाथ बढा़या और सन 1848 में [[द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध|दूसरा अंग्रेज-सिख युद्ध]] हुआ। सन 1849 में कंपनी का [[पंजाब]] पर भी अधिकार हो गया। सन 1853 में आखरी मराठा पेशवा बाजी राव के दत्तक पुत्र [[नाना साहेब]] की पदवी छीन ली गयी और उनका वार्षिक खर्चा बंद कर दिया गया।
 
यदि मेजर विलियम्स द्वारा ली गई गवाहियों का स्वयं विवेचन किया जाये तो पता चलता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट काई स्वतः विस्फोट नहीं वरन् एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी, जो परिस्थितिवश समय पूर्व ही घटित हो गई। नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था। <ref>वही, बिन्दु क्रमांक 152, म्यूटनी नैरेटिव इन मेरठ डिस्ट्रिक्ट</ref> विद्रोही सैनिक, मेरठ शहर की पुलिस, तथा जनता और आस-पास के गांव के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेरठ के आर्य समाजी, इतिहासज्ञ एवं स्वतन्त्रता सेनानी आचार्य दीपांकर के अनुसार यह साधु स्वयं दयानन्द जी थे और वही मेरठ में 10 मई, 1857 की घटनाओं के सूत्रधार थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही के अनुसार कोतवाल स्वयं इस साधु से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे। <ref>वहीं, डेपाजिशन नम्बर 8</ref> हो सकता है ऊपरी तौर पर यह कोतवाल की सरकारी भेंट हो, परन्तु दोनों के आपस में सम्पर्क होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में कोतवाल सहित पूरी पुलिस फोर्स इस योजना में साधु (सम्भवतः स्वामी दयानन्द) के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो चुकी थी। 10 मई को जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़, जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं। धन सिंह कोतवाल ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया। <ref>डेपाजिशन नम्बर 8,सौन्ता सिंह की गवाही</ref> आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पिट्ठू पुलिसकर्मी क्रान्ति के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। इस प्रकार अंग्रेजों के वफादारों की तरफ से क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयास नहीं हो सका, दूसरी तरफ उसने क्रान्तिकारी योजना से सहमत सिपाहियों को क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया। <ref>11. वही, डेपाजिशन संख्या 22, 23, 24, 25 एवं 26</ref> धन सिंह कोतवाल अपने गांव पांचली और आस-पास के क्रान्तिकारी गूजर बाहुल्य गांव घाट, नंगला, गगोल आदि की जनता के सम्पर्क में थे, धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गूजर क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। मेरठ के आस-पास के गांवों में प्रचलित किवंदन्ती के अनुसार इस क्रान्तिकारी भीड़ ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया <ref>डेपाजिशन संख्या 22, 23, 24, 25 एवं 26,बिन्दु क्रमांक 191, नैरेटिव इन मेरठ डिस्ट्रिक्ट; पांचली, नंगला, घाट, गगोल आदि ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती</ref> और जेल को आग लगा दी। मेरठ शहर और कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था उसे यह क्रान्तिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी।
सन 1854 में [[बरार]] और सन 1856 में [[अवध]] को कंपनी के राज्य में मिला लिया गया।
 
उपरोक्त वर्णन और विवेचना के आधार पर हम निःसन्देह कह सकते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने 10 मई, 1857 के दिन मेरठ में मुख्य भूमिका का निर्वाह करते हुए क्रान्तिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया था।1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है, इनका निष्कर्ष है कि 1857 के विद्रोह को कही भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था, इसलिए इसे स्वतन्त्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है। समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बन्जारो, रांघड़ों और गूजर किसानों ने 1857 की क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई ? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही 1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं।
== विद्रोह के कारण ==
सन 1857 के विद्रोह के विभिन्न राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, सैनिक तथा सामाजिक कारण बताये जाते हैं।
 
10, मई 1857 को मेरठ में जो महत्वपूर्ण भूमिका धन सिंह और उनके अपने ग्राम पांचली के भाई बन्धुओं ने निभाई उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य सिर्फ अधिक से अधिक लगान वसूलना था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने महलवाड़ी व्यवस्था लागू की थी, जिसके तहत समस्त ग्राम से इकट्ठा लगान तय किया जाता था और मुखिया अथवा लम्बरदार लगान वसूलकर सरकार को देता था। लगान की दरें बहुत ऊंची थी, और उसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। कर न दे पाने पर किसानों को तरह-तरह से बेइज्जत करना, कोड़े मारना और उन्हें जमीनों से बेदखल करना एक आम बात थी, किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी। धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से सम्बन्धित थे। किसानों के इन हालातों से वे बहुत दुखी थे। धन सिंह के पिता पांचली ग्राम के मुखिया थे, अतः अंग्रेज पांचली के उन ग्रामीणों को जो किसी कारणवश लगान नहीं दे पाते थे, उन्हें धन सिंह के अहाते में कठोर सजा दिया करते थे, बचपन से ही इन घटनाओं को देखकर धन सिंह के मन में आक्रोष जन्म लेने लगा। <ref>पांचली, नंगला, घाट, गगोल आदि ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती</ref>ग्रामीणों के दिलो दिमाग में ब्रिटिष विरोध लावे की तरह धधक रहा था।
=== वैचारिक मतभेद ===
1857 की क्रान्ति में धन सिंह और उनके ग्राम पांचली की भूमिका का विवेचन करते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि धन सिंह गूजर जाति में जन्में थे, उनका गांव गूजर बहुल था। 1707 ई0 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गूजरों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी राजनैतिक ताकत काफी बढ़ा ली थी। <ref>नेविल, सहारनपुर ए गजेटेयर, 1857 की घटना से सम्बंधित पृष्ठ</ref> लढ़ौरा, मुण्डलाना, टिमली, परीक्षितगढ़, दादरी, समथर-लौहा गढ़, कुंजा बहादुरपुर इत्यादि रियासतें कायम कर वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक गूजर राज्य बनाने के सपने देखने लगे थे। <ref>मेरठ के मजिस्ट्रेट डनलप द्वारा मेजर जनरल हैविट कमिश्नर मेरठ को 28 जून 1857 को लिखा पत्र, एस0ए0ए0 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश्, खण्ड टए लखनऊ, 1960 पृष्ठ संख्या 107-110</ref> 1803 में अंग्रेजों द्वारा दोआबा पर अधिकार करने के वाद गूजरों की शक्ति क्षीण हो गई थी, गूजर मन ही मन अपनी राजनैतिक शक्ति को पुनः पाने के लिये आतुर थे, इस दषा में प्रयास करते हुए गूजरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गूजर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये। <ref>नेविल, वही; एच0जी0 वाटसन, देहरादून गजेटेयर के सम्बन्धित पृष्ठ</ref> पश्चिमी उत्तर प्रदेष के गूजरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1857 के सैनिक विद्रोह ने उन्हें एक और अवसर प्रदान कर दिया। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेष में देहरादून से लेकिन दिल्ली तक, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी तक। पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गूजर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। हजारों की संख्या में गूजर शहीद हुए और लाखों गूजरों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेषों में कृषि मजदूर के रूप में निर्वासित कर दिया। इस प्रकार धन सिंह और पांचली, घाट, नंगला और गगोल ग्रामों के गूजरों का संघर्ष गूजरों के देशव्यापी ब्रिटिष विरोध का हिस्सा था। यह तो बस एक शुरूआत थी।
कई इतिहासकारों का मानना है कि उस समय के जनमानस में यह धारणा थी कि, अंग्रेज उन्हें जबर्दस्ती या धोखे से [[ईसाई]] बनाना चाहते हैं। यह पूरी तरह से गलत भी नहीं था, कुछ कंपनी अधिकारी धर्म परिवर्तन के कार्य में जुटे थे। हालांकि कंपनी ने धर्म परिवर्तन को स्वीकृति कभी नहीं दी। कंपनी इस बात से अवगत थी कि धर्म, पारम्परिक भारतीय समाज में विद्रोह का एक कारण बन सकता है। इससे पहले सोलहवीं सदी में [[भारत]] तथा [[जापान]] से पुर्तगालियों के पतन का एक कारण यह भी था कि उन्होंने जनता पर ईसाई धर्म बलात लादने का प्रयास किया था।
 
1857 की क्रान्ति के कुछ समय पूर्व की एक घटना ने भी धन सिंह और ग्रामवासियों को अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। पांचली और उसके निकट के ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार घटना इस प्रकार है, ”अप्रैल का महीना था। किसान अपनी फसलों को उठाने में लगे हुए थे। एक दिन करीब 10 11 बजे के आस-पास बजे दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में थोड़ा आराम करने के लिए रूके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह (अथवा भज्जड़ सिंह) थे, कृषि कार्यो में लगे थे। अंग्रेजों ने इन किसानों से पानी पिलाने का आग्रह किया। अज्ञात कारणों से इन किसानों और अंग्रेजों में संघर्ष हो गया। इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया। एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक दायं हंकवाई। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ वापस लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे। अंग्रेजों की दण्ड नीति बहुत कठोर थी, इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी धन सिंह के पिता, जो कि गांव के मुखिया थे, को सौंपी गई। ऐलान किया गया कि यदि मुखिया ने तीनों बागियों को पकड़कर अंग्रेजों को नहीं सौपा तो सजा गांव वालों और मुखिया को भुगतनी पड़ेगी। बहुत से ग्रामवासी भयवश गाँव से पलायन कर गए। अन्ततः नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया। धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छः माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया। <ref>वही, किंवदन्ती यह किवदन्ती पांचली ग्राम के खजान</ref> जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरूआत कर इतिहास रच दिया।
लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नाति (डाक्ट्रिन औफ़ लैप्स) के अन्तर्गत अनेक राज्य जैसे [[झाँसी]], [[अवध]], [[सतारा]], [[नागपुर]] और [[संबलपुर]] को अंग्रेजी़ राज्य में मिला लिया गया और इनके उत्तराधिकारी राजा से अंग्रेजी़ राज्य से पेंशन पाने वाले कर्मचारी बन गये। शाही घराने, जमींदार और सेनाओं ने अपने आप को बेरोजगार और अधिकारहीन पाया। ये लोग अंग्रेजों के हाथों अपनी शर्मिंदगी और हार का बदला लेने के लिये तैयार थे। [[लॉर्ड डलहौजी]] के शासन के आठ वर्षों में दस लाख वर्गमील क्षेत्र को कंपनी के अधिकार में ले लिया गया। इसके अतिरिक्त ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल सेना में बहुत से सिपाही अवध से भर्ती होते थे, वे [[अवध]] में होने वाली घटनाओं से अछूते नहीं रह सके। [[नागपुर]] के शाही घराने के आभूषणों की [[कलकत्ता]] में बोली लगायी गयी इस घटना को शाही परिवार के प्रति अनादर के रूप में देखा गया।
 
क्रान्ति मे अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई। <ref>बिन्दु क्रमांक 265, 266, 267, वही, नैरटिव इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ</ref>आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता।
भारतीय, कंपनी के कठोर शासन से भी नाराज थे जो कि तेजी से फैल रहा था और पश्चिमी सभ्य्ता का प्रसार कर रहा था। अंग्रेजों ने हिन्दुओं और मु्सलमानों के उस समय माने जाने वाले बहुत से रिवाजों को गैरकानूनी घोषित कर दिया जो कि अंग्रेजों द्वारा असमाजिक माने जाते थे। इसमें [[सती प्रथा]] पर रोक लगाना शामिल था। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि [[सिख|सिखों]] ने यह बहुत पहले ही बंद कर दिया था और [[बंगाल]] के प्रसिद्ध समाज सुधारक [[राजा राममोहन राय]] इस प्रथा को बंद करने के पक्ष में प्रचार कर रहे थे। इन कानूनों ने समाज के कुछ पक्षों मुख्यतः बंगाल में क्रोध उत्पन्न कर दिया। अंग्रेजों ने [[बाल विवाह]] प्रथा को समाप्त किया तथा [[कन्या भ्रूण हत्या]] पर भी रोक लगायी। अंग्रेजों द्वारा ठगी की समाप्ति भी की गई परन्तु यह सन्देह अभी भी बना हुआ है कि ठग एक धार्मिक समुदाय था या केवल साधारण डकैतों का समुदाय।
 
संदर्भ एवं टिप्पणी
ब्रितानी न्याय व्यवस्था भारतीयों के लिये अन्यायपूर्ण मानी जाती थी। सन १८५३ में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लौर्ड अब्रेडीन ने प्रशासनिक सेवा को भारतीयों के लिये खोल दिया परन्तु कुछ प्रबुद्ध भारतीयों के हिसाब से यह सुधार पर्याप्त नहीं था। कंपनी के अधिकारियों को भारतीयों के विरुद्ध न्यायालयों में अनेक अपीलों का अधिकार प्राप्त था। कंपनी भारतीयों पर भारी कर भी लगाती थी जिसे न चुकाने की स्थिति में उनकी संपत्ति अधिग्रहित कर ली जाती थी। कंपनी के आधुनिकीकरण के प्रयासों को पारम्परिक भारतीय समाज में सन्देह की दृष्टि से देखा गया। लोगो ने माना कि रेलवे जो [[बाम्बे]] से सर्वप्रथम चला एक दानव है और लोगो पर विपत्ति लायेगा।
 
1. मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1963 पृष्ठ संख्या 52
परन्तु बहुत से इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इन सुधारों को बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है क्योंकि कंपनी के पास इन सुधारों को लागू करने के साधन नहीं थे और कलकत्ता से दूर उनका प्रभाव नगण्य था<ref>Eric Stokes “The First Century of British Colonial Rule in India: Social Revolution or Social Stagnation?” ''Past and Present'' №.58 (Feb. 1973) pp136-160</ref>।
 
2. वही
=== आर्थिक कारण ===
१८५७ के विद्रोह का एक प्रमुख कारण कंपनी द्वारा भारतीयों का आर्थिक शोषण भी था। कंपनी की नीतियों ने भारत की पारम्परिक अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त कर दिया था। इन नीतियों के कारण बहुत से किसान, कारीगर, श्रमिक और कलाकार कंगाल हो गये। इनके साथ साथ जमींदारों और बड़े किसानों की स्थिति भी बदतर हो गयी। सन १८१३ में कंपनी ने एक तरफा मुक्त व्यापार की नीति अपना ली इसके अन्तर्गत ब्रितानी व्यापारियों को आयात करने की पूरी छूट मिल गयी, परम्परागत तकनीक से बनी हुई भारतीय वस्तुएं इसके सामने टिक नहीं सकी और भारतीय शहरी हस्तशिल्प व्यापार को अकल्पनीय क्षति हुई।
 
3. पांचली, घाट, गगोल आदि ग्रामों में प्रचलित किवदन्ती, बिन्दु क्रमांक 191, नैरेटिव ऑफ इवेन्टस अटैन्डिग द आऊट ब्रैक ऑफ डिस्टरबैन्सिस एण्ड दे रेस्टोरेशन ऑफ औथरिटी इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ 1857-58, नवम्बर 406, दिनांक 15 नवम्बर 1858, फ्राम एफ0 विलयम्बस म्.59 सैकेट्री टू गवर्नमेंट नार्थ-वैस्टर्न प्राविन्स, इलाहाबाद, राष्ट्रीय अभिलेखागार, दिल्ली।
[[भारतीय रेल|रेल सेवा]] के आने के साथ ग्रामीण क्षेत्र के लघु उद्यम भी नष्ट हो गये। रेल सेवा ने ब्रितानी व्यापारियों को दूर दराज के गावों तक पहुँच दे दी। सबसे अधिक क्षति कपड़ा उद्योग (कपास और रेशम) को हुई। इसके साथ लोहा व्यापार, बर्तन, कांच, कागज, धातु, बन्दूक, जहाज और रंगरेजी के उद्योगों को भी बहुत क्षति हुई। १८ वीं और १९ वीं शताब्दी में [[ब्रिटेन]] और
आचार्य दीपांकर, स्वाधीनता संग्राम और मेरठ, 1993 पृष्ठ संख्या 143
[[यूरोप]] में आयात कर और अनेक रोकों के चलते भारतीय निर्यात समाप्त हो गया। पारम्परिक उद्योगों के नष्ट होने और साथ साथ आधुनिक उद्योगों का विकास न होने की कारण यह स्थिति और भी विषम हो गयी। साधारण जनता के पास खेती के अलावा कोई और साधन नहीं बचा।
 
4. वही, नैरेटिव इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ।
खेती करने वाले किसानो की हालत भी खराब थी। ब्रितानी शासन के प्रारम्भ में किसानों को जमीदारों की दया पर छोड़ दिया गया, जिन्होने लगान को बहुत बढा़ दिया और [[बेगार]] तथा अन्य तरीकों से किसानो का शोषण करना प्रारम्भ कर दिया। कंपनी ने खेती के सुधार पर बहुत कम खर्च किया और अधिकतर लगान कंपनी के खर्चों को पूरा करने में प्रयोग होता था। फसल के खराब होने
की दशा में किसानो को साहूकार अधिक ब्याज पर कर्जा देते थे और अनपढ़ किसानो को कई तरीकों से ठगते थे। ब्रितानी कानून व्यवस्था के अन्तर्गत भूमि हस्तांतरण वैध हो जाने के कारण किसानों को अपनी भूमि से भी हाथ धोना पड़ता था। इन समस्याओं के कारण समाज के हर वर्ग में असंतोष व्याप्त था।
 
5. मैमोरेन्डम ऑन द म्यूंटनी एण्ड आऊटब्रेक ऐट मेरठ इन मई 1857, बाई मेजर विलयम्स, कमिश्नर ऑफ द मिलेट्री पुलिस, नार्थ-वेस्टर्न प्राविन्सिस, इलाहाबाद, 15 नवम्बर 1858; जे0ए0बी0 पामर, म्यूटनी आऊटब्रेक एट मेरठ, पृष्ठ संख्या 90-91।
=== राजनैतिक कारण ===
सन १८४८ और १८५६ के बीच [[डलहौजी|लार्ड डलहोजी]] ने डाक्ट्रिन औफ़ लैप्स के कानून के अन्तर्गत अनेक राज्यों पर अधिकार कर लिया। इस सिद्धांत अनुसार कोई राज्य, क्षेत्र या ब्रितानी प्रभाव का क्षेत्र कंपनी के अधीन हो जायेगा, यदि क्षेत्र का राजा निसन्तान मर जाता है या शासक कंपनी की दृष्टि में अयोग्य साबित होता है। इस सिद्धांत पर कार्य करते हुए लार्ड डलहोजी और उसके उत्तराधिकारी लार्ड कैन्निग ने सतारा,[[नागपुर]],[[झाँसी]],[[अवध]] को कंपनी के शासन में मिला लिया। कंपनी द्वारा तोडी गय़ी सन्धियों और वादों के कारण कंपनी की राजनैतिक विश्वसनियता पर भी प्रश्नचिन्ह लग चुका था। सन १८४९ में लार्ड डलहोजी की घोषणा के अनुसार बहादुर शाह के उत्तराधिकारी को ऐतिहासिक [[लाल किला]] छोड़ना पडेगा और शहर के बाहर जाना होगा और सन १८५६ में लार्ड कैन्निग की घोषणा कि [[बहादुर शाह]] के उत्तराधिकारी राजा नहीं कहलायेंगे ने [[मुगल|मुगलों]] को कंपनी के विद्रोह में खडा कर दिया।
 
6. डेपाजिशन नम्बर 54, 56, 59 एवं 60, आफ डेपाजिशन टेकन एट मेरठ बाई जी0 डबल्यू0 विलयम्बस, वही म्यूटनी नैरेटिव इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ।
=== सिपाहियों की आशंका ===
सिपाही मूलत: कंपनी की बंगाल सेना में काम करने वाले भारतीय मूल के सैनिक थे। बम्बई, मद्रास और बंगाल प्रेसीडेन्सी की अपनी अलग सेना और सेनाप्रमुख होता था। इस सेना में ब्रितानी सेना से अधिक सिपाही थे। सन १८५७ में इस सेना में २,५७,००० सिपाही थे। बम्बई और मद्रास प्रेसीडेन्सी की सेना में अलग अलग क्षेत्रों के लोग होने की कारण ये सेनाएं विभिन्नता से पूर्ण थी और इनमे किसी एक क्षेत्र के लोगो का प्रभुत्व नहीं था। परन्तु बंगाल प्रेसीडेन्सी की सेना में भर्ती होने वाले सैनिक मुख्यत: अवध और गन्गा के मैदानी इलाको के
भूमिहार ब्राह्मण और राजपूत थे। कंपनी के प्रारम्भिक वर्षों में बंगाल सेना में जातिगत विशेषाधिकारों और रीतिरिवाजों को महत्व दिया जाता था
परन्तु सन १८४० के बाद कलकत्ता में आधुनिकता पसन्द सरकार आने के बाद सिपाहियों में अपनी जाति खोने की आशंका व्याप्त हो गयी। <ref>Seema Alavi The Sepoys and the Company (Delhi: Oxford University Press) 1998 p5</ref>
सेना में सिपाहियों को जाति और धर्म से सम्बन्धित चिन्ह पहनने से मना कर दिया गया। सन १८५६ में एक आदेश के अन्तर्गत सभी नये भर्ती सिपाहियों को विदेश में कुछ समय के लिये काम करना अनिवार्य कर दिया गया। सिपाही धीरे-धीरे सेना के जीवन के विभिन्न पहलुओं से असन्तुष्ट हो चुके थे। सेना का वेतन कम था। भारतीय सैनिकों का वेतन महज सात रूपये प्रतिमाह था। और अवध और पंजाब जीतने के बाद सिपाहियों का भत्ता भी समाप्त कर दिया गया था। एनफ़ील्ड बंदूक के बारे में फ़ैली अफवाहों ने सिपाहियों की आशन्का को और बढा़ दिया कि कंपनी उनकी धर्म और जाति परिवर्तन करना चाहती है।
 
7. वही, डेपाजिशन नम्बर 66
=== एनफ़ील्ड बंदूक ===
[[चित्र:3BandEnfiled 2.jpg|right|thumb|200px|सन १८५३ की ३-बैण्ड इनफिल्ड बन्दूक]]
विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न १८५३ एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि ०.५७७ कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी।
 
8. वही, बिन्दु क्रमांक 152, म्यूटनी नैरेटिव इन मेरठ डिस्ट्रिक्ट।
सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। यह हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों दोनों की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध था ब्रितानी अफ़सरों ने इसे अफ़वाह बताया और सुझाव दिया कि सिपाही नये कारतूस बनाये जिसमे बकरे या मधुमक्क्खी की चर्बी प्रयोग की जाये। इस सुझाव ने सिपाहियों के बीच फ़ैली इस अफ़वाह को और पुख्ता कर दिया। दूसरा सुझाव यह दिया गया कि सिपाही कारतूस को दांतों से काटने की बजाय हाथों से खोलें। परंतु सिपाहियों ने इसे ये कहते हुए अस्विकार कर दिया कि वे कभी भी नयी कवायद को भूल सकते हैं और दांतों से कारतूस को काट सकते हैं।
 
9. वहीं, डेपाजिशन नम्बर 8
तत्कालीन ब्रितानी सेना प्रमुख (भारत) जार्ज एनसन ने अपने अफ़सरों की सलाह को दरकिनार हुए इस कवायद और नयी बंदूक से उत्पन्न हुई समस्या को सुलझाने से
 
10. वही, सौन्ता सिंह की गवाही।
=== अफ़वाहें ===
ऐक और अफ़वाह जो कि उस समय फ़ैली हुई थी, कंपनी का राज्य सन १७५७ में [[प्लासी का युद्ध]] से प्रारम्भ हुआ था और सन १८५७ में १०० वर्षों बाद समाप्त हो जायेगा। चपातियां और कमल के फ़ूल भारत के अनेक भागों में वितरित होने लगे। ये आने वाले विद्रोह के लक्ष्ण थे।
 
11. वही, डेपाजिशन संख्या 22, 23, 24, 25 एवं 26।
== युद्ध का प्रारम्भ ==
विद्रोह प्रारम्भ होने के कई महीनो पहले से तनाव का वातावरण बन गया था और कई विद्रोहजनक घटनायें घटीं। २४ जनवरी १८५७ को [[कलकत्ता]] के निकट आगजनी की कई घटनाएँ हुई। २६ फ़रवरी १८५७ को १९ वीं बंगाल नेटिव इनफ़ैन्ट्री ने नये कारतूसों को प्रयोग करने से मना कर दिया। रेजीमेण्ट् के अफ़सरों ने तोपखाने और घुडसवार दस्ते के साथ इसका विरोध किया पर बाद में सिपाहियों की मांग मान ली।
 
12. वही, बिन्दु क्रमांक 191, नैरेटिव इन मेरठ डिस्ट्रिक्ट; पांचली, नंगला, घाट, गगोल आदि ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती।
=== मंगल पाण्डेय ===
 
[[मंगल पाण्डेय]] ३४ वीं बंगाल नेटिव इनफ़ैन्ट्री में एक सिपाही थे। २९ मार्च १८५७ को बैरकपुर परेड मैदान [[कलकत्ता]] के निकट मंगल पाण्डेय जो दुगवा रहीमपुर ([[फैजाबाद]]) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे। जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। ६ अप्रैल १८५७ को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और ८ अप्रैल को [[फ़ांसी]] दे दी गयी।
13. वही किंवदन्ती।
 
14. नेविल, सहारनपुर ए गजेटेयर, 1857 की घटना से सम्बंधित पृष्ठ।
 
15. मेरठ के मजिस्ट्रेट डनलप द्वारा मेजर जनरल हैविट कमिश्नर मेरठ को 28 जून 1857 को लिखा पत्र, एस0ए0ए0 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश्, खण्ड टए लखनऊ, 1960 पृष्ठ संख्या 107-110।
 
16. नेविल, वही; एच0जी0 वाटसन, देहरादून गजेटेयर के सम्बन्धित पृष्ठ।
 
17. वही, किंवदन्ती यह किवदन्ती पांचली ग्राम के खजान सिंह, उम्र 90 वर्ष के साक्षात्कार पर आधारित है।
 
18. बिन्दु क्रमांक 265, 266, 267, वही, नैरटिव इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ।
संदर्भ ग्रन्थ
 
1. आचार्य दीपांकर, स्वाधीनता संग्राम और मेरठ, जनमत प्रकाषन, मेरठ 1993
 
2. मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेनट प्रैस, इलाहाबाद, 1963
 
3. मयराष्ट्र मानस, मेरठ।
 
4. रमेश चन्द्र मजूमदार, द सिपोय म्यूटनी एण्ड रिवोल्ट ऑफ 1857
 
5. एस0 बी0 चैधरी, सिविल रिबैलयन इन इण्डियन म्यूटनीज 1857-59
 
6. एस0 एन0-सेन, 1857
 
7. पी0सी0 जोशी रिबैलयन 1857।
 
8. एरिक स्ट्रोक्स, द पीजेण्ट एण्ड द राज।
 
9. जे0ए0बी0 पामर, द म्यूटनी आउटब्रैक एट मेरठ
<ref>http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2007142.cms</ref>
 
== 1857 की क्रान्ति के अग्रिम क्रान्तिकारी ==
 
{| class="wikitable sortable
!स॰ !!10 मई 1857 की क्रान्ति के मुख्य क्रान्तिकारी !! जगह !! निधन !! गतिविधियाँ और कार्य
|-
| 1. || [[धन सिंह गुर्जर|कोतवाल धनसिंह गुर्जर]] || मेरठ || 4 जुलाई 1857 को फांसी || 10 मई 1857 को क्रान्ति की शूरूआत की।
|-
| 2. || राव कदमसिंह गुर्जर || मेरठ || 28 अप्रैल || मेरठ के क्रान्तिकारियो का सरताज
|-
|3.|| राव उमराव सिंह गुर्जर || दादरी || काले आम पर फांसी || दादरी क्षेत्र के क्रान्तिकारियो के राजा,
|-
|4. || फतुआ सिंह गुर्जर || गंगोह, सहारनपुर || फांसी || गंगोह के क्रान्तिकारियो का नेता
|-
|5. || राजा उमराव सिंह माणकपुरिया || माणकपुर || फांसी || माणकपुर के राजा
|-
|6. || सिब्बा सिंह गुर्जर || सीकरी खुर्द, मोदीनगर || फांसी || सीकरी के क्रान्तिकारियो का नेता
|-
|7. || नम्बरदार झंडु सिंह गुर्जर || गगोल, मेरठ || फांसी || गगोल व आसपास के गावों का नेता
|-
|8. || हिम्मत सिंह खटाणा || रिठोज, गुडगाँव || फांसी || सोहना क्षेत्र के क्रान्तिकारिया का नेता
|-
|9. || भजन सिंह गुर्जर || बहलपा, गुडगांव || [[महरौली]] मे फांसी || खटाणा खाप का नेता
|-
|10. || सुबा देवहंस कषाणा || गांव कुदिन्ना, [[धौलपुर]], राजस्थान ||
|-
|11. || दयाराम गुर्जर || चंद्रावल, दिल्ली || फांसी || दिल्ली के क्रान्तिकारियो का नेता
|-
|12. || चौ. कन्हैया सिंह गुर्जर || भदौला, हापुड || फांसी || हापुड के ग्रामीणो का नेता
|-
|13. || चौ. फूलसिंह गुर्जर || भदौला, हापुड || फांसी || भदौला गांव को एकत्र कर विद्रोह करदिया
|-
|14. || राव दरगाही तंवर || फतेहपुर बेरी, दिल्ली || 2 oct 1857 को महरौली मे फांसी || तंवर खाप के गूजरो का नेता
|-
|15. || राव बिशन सिंह गुर्जर || दादरी || काले आम पर फांसी | शाहदरा से सुरजपुर क्षेत्र मे प्रमुख क्रान्तिकारी
|-
|16. || जैतसिंह गुर्जर || गांव नीमका, हरियाणा ||
|-
|17. || अचल सिंह गुर्जर || बाघु [[बागपत]] || फांसी || दिल्ली-यमुना पुल को दो बार तोडा
|-
|18. || भीखाराम गुर्जर || दरबारीपुर, गुडगावं || महरौली मे फांसी ||
|-
|19. || वीरांगना आशादेवी गूजरी || शामली, उ.प्र || 250 महिलाओ के साथ फांसी || हजारो महिलाओ की सैना की संगठित सैना बनाकर विद्रोह कर दिया
|-
|20. || रानी लक्ष्मीबाई || झांसी || 18 जून 1858 को मृत्यू || झांसी की रानी
|}
 
===मेरठ के क्रान्तिकारियों का सरताज - राव कदम सिंह गुर्जर===
 
1857 ई0 के स्वतंत्रता संग्राम मे '''राव कदमसिंह गुर्जर''' मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों का नेता था। उसके साथ दस हजार क्रान्तिकारी थे, जो कि प्रमुख रूप से मवाना, हिस्तानपुर और बहसूमा क्षेत्र के थे। ये क्रान्तिकारी कफन के प्रतीक के तौर पर सिर पर सफेद पगड़ी बांध कर चलते थे।
 
मेरठ के तत्कालीन कलक्टर आर0 एच0 डनलप द्वारा मेजर जनरल हैविट को 28 जून 1857 को लिखे पत्र से पता चलता है कि क्रान्तिकारियों ने पूरे जिले में खुलकर विद्रोह कर दिया और परीक्षतगढ़ के राव कदम सिंह को पूर्वी परगने का राजा घोषित कर दिया। राव कदम सिंह और दलेल सिंह के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने परीक्षतगढ़ की पुलिस पर हमला बोल दिया और उसे मेरठ तक खदेड दिया। उसके बाद, अंग्रेजो से सम्भावित युद्व की तैयारी में परीक्षतगढ़ के किले पर तीन तोपे चढ़ा दी। ये तोपे तब से किले में ही दबी पडी थी जब सन् 1803 में अंग्रेजो ने दोआब में अपनी सत्ता जमाई थी। इसके बाद हिम्मतपुर ओर बुकलाना के क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह के नेतृत्व में गठित क्रान्तिकारी सरकार की स्थापना के लिए अंग्रेज परस्त गाॅवों पर हमला बोल दिया और बहुत से गद्दारों को मौत के घाट उतार दिया। क्रान्तिकारियों ने इन गांव से जबरन लगान वसूला।
<ref>डनलप, सर्विस एण्ड एडवैन्चर ऑफ खाकी रिसाला इन इण्डिया इन 1857-58</ref>
 
राव कदम सिंह बहसूमा परीक्षतगढ़ रियासत के अंतिम राजा नैनसिंह गुर्जर के भाई का पौत्र था। राजा नैनसिंह गुर्जरके समय रियासत में 349 गांव थे और इसका क्षेत्रफल लगभग 800 वर्ग मील था। 1818 में नैन सिंह के मृत्यू के बाद अंग्रेजो ने रियासत पर कब्जा कर लिया था। इस क्षेत्र के लोग पुनः अपना राज चाहते थे, इसलिए क्रान्तिकारियों ने कदम सिंह को अपना राजा घोषित कर दिया।
 
10 मई 1857 को मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह के निर्देश पर सभी सड़के रोक दी और अंग्रेजों के यातायात और संचार को ठप कर दिया। मार्ग से निकलने वाले सभी यूरोपियनो को लूट लिया। मवाना-हस्तिनापुर के क्रान्तिकारियों ने राव कदम सिंह के भाई दलेल सिंह, पिर्थी सिंह और देवी सिंह के नेतृत्व में बिजनौर के विद्रोहियों के साथ साझा मोर्चा गठित किया और बिजनौर के मण्डावर, दारानगर और धनौरा क्षेत्र में धावे मारकर वहाँ अंग्रेजी राज को हिला दिया। इनकी अगली योजना मण्डावर के क्रान्तिकारियों के साथ बिजनौर पर हमला करने की थी। मेरठ और बिजनौर दोनो ओर के घाटो, विशेषकर दारानगर और रावली घाट, पर राव कदमसिंह का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। ऐसा प्रतीत होता है कि कदम सिंह विद्रोही हो चुकी बरेली बिग्रेड के नेता बख्त खान के सम्पर्क में था क्योकि उसके समर्थकों ने ही बरेली बिग्रेड को गंगा पर करने के लिए नावे उपलब्ध कराई थी। इससे पहले अंग्रेजो ने बरेली के विद्रोहियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए गढ़मुक्तेश्वर के नावो के पुल को तोड दिया था। <ref> नैरेटिव ऑफ इवैनटस अटैन्डिग दि आउटब्रेक ऑफ डिस्टरबैन्सिस एण्ड रैस्टोरशन ऑफ अथारिटी इन दि डिस्ट्रिक्ट ऑफ मेरठ इन 1857-58</ref>
 
27 जून 1857 को बरेली बिग्रेड का बिना अंग्रेजी विरोध के गंगा पार कर दिल्ली चले जाना खुले विद्रोह का संकेत था। जहाँ बुलन्दशहर मे विद्रोहियों का नेता वलीदाद खान वहाँ का स्वामी बन बैठा, वही मेरठ में क्रान्तिकारियों ने कदम सिंह को राजा घोषित किया और खुलकर विद्रोह कर दिया। 28 जून 1857 को मेजर नरल हैविट को लिखे पत्र में कलक्टर डनलप ने मेरठ के हालातो पर चर्चा करते हुये लिखा कि यदि हमने शत्रुओ को सजा देने और अपने दोस्तों की मदद करने के लिए जोरदार कदम नहीं उठाए तो जनता हमारा पूरी तरह साथ छोड़ देगी और आज का सैनिक और जनता का विद्रोह कल व्यापक क्रान्ति में परिवर्तित हो जायेगा।
<ref>एरिक स्ट्रोक, पीजेन्ट आम्र्ड</ref>
मेरठ के क्रान्तिकारी हालातो पर काबू पाने के लिए अंग्रेजो ने मेजर विलयम्स के नेतृत्व में खाकी रिसाले का गठन किया। जिसने 4 जुलाई 1857 को पहला हमला पांचली गांव पर किया। इस घटना के बाद राव कदम सिंह ने परीक्षतगढ़ छोड दिया और बहसूमा में मोर्चा लगाया, जहाँ गंगा खादर से उन्होने अंग्रेजो के खिलाफ लडाई जारी रखी।
 
18 सितम्बर को राव कदम सिंह के समर्थक क्रान्तिकारियों ने मवाना पर हमला बोल दिया और तहसील को घेर लिया। खाकी रिसाले के वहाँ पहुचने के कारण क्रान्तिकारियों को पीछे हटना पडा। 20 सितम्बर को अंग्रेजो ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। हालातों को देखते हुये राव कदम सिंह एवं दलेल सिंह अपने हजारो समर्थको के साथ गंगा के पार बिजनौर चले गए जहाँ नवाब महमूद खान के नेतृत्व में अभी भी क्रान्तिकारी सरकार चल रही थी। थाना भवन के काजी इनायत अली और दिल्ली से तीन मुगल शहजादे भी भाग कर बिजनौर पहुँच गए। <ref>एस0 ए0 ए0 रिजवी, फीड स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश खण्ड-5</ref>
 
राव कदम सिंह आदि के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने बिजनौर से नदी पार कर कई अभियान किये। उन्होने रंजीतपुर मे हमला बोलकर अंग्रेजो के घोडे छीन लिये। 5 जनवरी 1858 को नदी पार कर मीरापुर मुज़फ्फरनगर मे पुलिस थाने को आग लगा दी। इसके बाद हरिद्वार क्षेत्र में मायापुर गंगा नहर चौकी पर हमला बोल दिया। कनखल में अंग्रेजो के बंगले जला दिये। इन अभियानों से उत्साहित होकर नवाब महमूद खान ने कदम सिंह एवं दलेल सिंह आदि के साथ मेरठ पर आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु उससे पहले ही 28 अप्रैल 1858 को बिजनौर में क्रान्तिकारियों की हार हो गई और अंग्रेजो ने नवाब को रामपुर के पास से गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद बरेली मे मे भी क्रान्तिकारी हार गए। कदम सिंह एवं दलेल सिंह का उसके बाद क्या हुआ कुछ पता नही चलता। <ref>ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर</ref>
 
=== दादरी के राजा - राव उमरावसिंह गुर्जर ===
 
क्रान्तिवीर राव उमराव सिहँ गुर्जर दादरी भटनेर रियासत के राजा। इनका जन्म सन् 1832 मे दादरी (उ.प्र) के निकट ग्राम कटेहडा मे राव किशनसिंह गुर्जर के पुत्र के रूप मे हुआ था।सन सत्तावन १८५७ की जनक्रान्ति में राव रोशन सिहँ ,उनके बेटे राव बिशन सिहँ व उनके भतीजे राव उमराव सिहँ का महत्वपूर्ण योगदान था।<ref>शिव कुमार गोयल, ऐसे शुरू हुई मेरठ में क्रान्ति (लेख)दैनिक प्रभात, मेरठ, दिनांक 10 मई 2007।</ref> 10 मई को मेरठ से 1857 की जन-क्रान्ति की शुरूआत कोतवाल धनसिंह गुर्जर द्वारा हो चुकी थी
तत्कालीन राष्टृीय भावना से ओतप्रोत उमरावसिंह गुर्जर ने आसपास के ग्रामीणो को प्रेरित कर 12 मई 1857 को सिकन्द्राबाद तहसील पर धावा बोल दिया। वहाँ के हथ्यार और खजानो को अपने अधिकार मे कर लिया। <ref> एस0 ए0 ए0 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश, खण्ड टए लखनऊ, 1960, पृष्ठ सं0 45 पर मुंशी लक्ष्मण स्वरूप का बयान।</ref> सूचना मिलते ही बुलन्दशहर से सिटी मजिस्ट्रेट सैनिक बल सिकनद्राबाद आ धमका। 7 दिन तक क्रान्तिकारी सैना अंग्रेज सैना से ट्क्कर लेती रही ।अंत मे 19 मई को सश्स्त्र सैना के सामने क्रान्तिकारी वीरो को हथियार डालने पडे 46 लोगो को बंदी बनाया गया। उमरावसिंह बच निकले । इस क्रान्तिकारी सैना मे गुर्जर समुदाय की मुख्य भूमिका होने के कारण उन्हे ब्रिटिश सत्ता का कोप भोजन होना पडा।उमरावसिंह अपने दल के साथ 21 मई को बुलन्दशहर पहुचे एवं जिला कारागार पर घावा बोलकर अपने सभी राजबंदियो को छुडा लिया । बुलन्दशहर से अंग्रेजी शासन समाप्त होने के बिंदु पर था लेकिन बाहर से सैना की मदद आ जाने से यह संभव नही हो सका
हिंडन नदी के तट पर 30 व 31 मई को क्रान्तिकारी सैना और अंग्रेजी सैना के बीच एक ऐतिहासिक भीषण युद्ध हुआ।<ref> ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1963, पृष्ठ संख्या 53</ref> <ref>ई0 बी0 जोशी</ref> जिसकी कमान क्रान्तिनायक धनसिहँ गुर्जर, राव उमराव सिहँ गुर्जर, राव रोशन सिहँ गुर्जर इस युद्ध में अंग्रेजो को मुहँ की खानी पडी थी। 26 सितम्बर, 1857 को कासना-सुरजपुर के बीच उमरावसिंह की अंग्रेजी सैना से भारी टक्कर हुई ।<ref>उमेश त्यागी, 1857 की महाक्रान्ति में गाजियाबाद जनपद (लेख), दी जर्नल आफ मेरठ यूर्निवर्सिटी हिस्ट्री एलमनी, खण्ड 2006, पृष्ठ संख्या 311</ref> लेकिन दिल्ली के पतन के कारण सैना का उत्साह भंग हो चुका था । भारी जन हानी के बाद राव-सैना ने पराजय श्वीकार करली ।उमरावसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया ।इस जनक्रान्ति के विफल हो जाने पर बुलंदशहर के काले आम पर बहुत से गुर्जर क्रान्तिवीरो के साथ राजा राव उमराव सिहँ भाटी, राव रोशन सिहँ भाटी,राव बिशन सिहँ भाटी को बुलन्दशहर मे कालेआम के चौहराहे पर फाँसी पर लटका दिया गया <ref>विघ्नेष त्यागी, मेरठ के ऐतिहासिक क्रान्ति स्थल और घटनाएं (लेख), दैनिक जागरण, मेरठ, दिनांक 5 मई 2007</ref>
 
=== फतुआ सिंह गुर्जर - गंगोह, सहारनपुर ===
 
भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम में आम से लेकर ख़ास तक ने भाग लिया।किसान से लेकर जमींदार तक। कोतवाल धन सिंह गुर्जर से लेकर राव देवहंश कसाना तक ऐसे ही एक विस्मृत वीर थे जो वीरभूमि सहारनपुर के गंगोह क़स्बे के बड़े जमींदार थे और जिन्होंने 1857 के ग़दर में अपने प्राणों की आहुति दी।उनका नाम था राव फतुआ सिंह गुर्जर। फतुआ सिंह गुर्जर ने गंगोह क़स्बे से अंग्रेज़ी राज़ ख़त्म कर दिया और लगभग आधे सहारनपुर को अंग्रेजमुक्त कर दिया। गंगोह कस्बें में उनकी वीरता के किस्से आज भी लोगों की ज़ुबान पर प्रचलित हैं। राव फतुआ सिंह एक वीर,साहसी और ख़ुद्दार जमींदार थे जिन्होंने गुलामी को सदा ही उतार फेंकने का प्रयास किया और फिर एक दिन यह शुभ अवसर भी मई,1857 में आ गया जब मेरठ से [[|धन सिंह गुर्जर|कोतवाल धन सिंह गुर्जर]] ने क्रांति का शंखनाद किया और फिर वीरों की टोलियों ने कम्पनी राज की ईंट से ईंट बजा दी।<ref> ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1963, पृष्ठ संख्या 53</ref> राव फतुआ सिंह सहारनपुर में राजा 'उमराव सिंह मानिकपुरी' के साथ क्रांतिकारियों की अगुवाई कर रहे थे। गंगोह की जनता ने फतुवा गुर्जर को अपना नेता बना कर इस क्षेत्र में भारी उपद्रव व अशान्ति पैदा कर दी थी।<ref>उमेश त्यागी, 1857 की महाक्रान्ति में गाजियाबाद जनपद (लेख), दी जर्नल आफ मेरठ यूर्निवर्सिटी हिस्ट्री एलमनी, खण्ड 2006, पृष्ठ संख्या 311</ref> नुकड़ तहसील, थाणा, मंगलौर में भी वही हाल, सरसावा पर भी अधिकार सहारनपुर के सुरक्षा अधिकारी स्पनकी तथा रार्बटसन के साथ राजा उमराव सिंह मणिकुरी के नेतृत्व में डटकर टक्कर हुई । इस अंग्रेंज अधिकारियों ने गुर्जरों का दमन करने के लिए सेना का प्रयोग किया । गांवों पर बाकायदा तैयारी कर के सेना, स्पनकी और राबर्टसन के नेतृत्व में चढ़ाई करती थी, लेकिन गुर्जर बड़े हौंसले से टक्कर लेते थे उपरोक्त जिन गांवों का विशेषकर जिक्र किया है उनके जवाबी हमले भी होते रहे । आधुकिनतम हथियारों से लैस अंग्रेंजी सेना व उनके पिटू भारतीय सेना ने इन गांवों को जलाकर राख कर दिया, इनकी जमीन जायदाद जब्त की गई । माणिकपुर के राजा उमराव सिंह, गंगोह के फतुआ गुर्जर तथा इनके प्रमुख साथियों को फांसी दी गई और अनेक क्रान्तिकारियो को गांवों में ही गोली से उड़ा दिया गया और अनेको को वृक्षों पर फांसी का फन्दा डालकर लटका दिया गया। <ref>विघ्नेष त्यागी, मेरठ के ऐतिहासिक क्रान्ति स्थल और घटनाएं (लेख), दैनिक जागरण, मेरठ, दिनांक 5 मई 2007</ref>
 
=== शिब्बा सिंह गुर्जर - सीकरी खुर्द ===
मेरठ से 13 मील दूर, दिल्ली जाने वाले राज मार्ग पर मोदीनगर से सटा हुआ एक गुमनाम गाँव है-सीकरी खुर्द। 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में इस गाँव ने एक अत्यन्त सक्रिय भूमिका अदा की थी। <ref>गौतम भद्रा, फोर रिबेल्स ऑफ ऐट्टीन फिफ्टी सैवन (शोध पत्र), सब आल्ट्रन स्टडीज, खण्ड प्ट सम्पादक रणजीत गुहा, पृष्ठ 239</ref> 10 मई 1857 को देशी सैनिक ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सरकार के विरूद्ध संघर्ष की शुरूआत कर दिल्ली कूच कर गये थे। जब मेरठ के क्रान्तिकारी सैनिक मौहिउद्दीनपुर होते हुए बेगमाबाद (वर्तमान मोदीनगर) पहुंचे तो सीकरी खुर्द के लोगों ने इनका भारी स्वागत-सत्कार किया। इस गाँव के करीब 750 गुर्जर नौजवान की टोली में शामिल हो गये और दिल्ली रवाना हो गये। अगले ही दिन इस जत्थे की दिल्ली के तत्कालीन खूनी दरवाजे पर अंग्रेजी फौज से मुठभेड़ हो गई जिसमें अनेक नौजवान गुर्जर क्रान्तिकारी शहीद हो गए। <ref>उमेश त्यागी, 1857 की महाक्रान्ति में गाजियाबाद जनपद (शोध पत्र), दी जर्नल  ऑफ  मेरठ यूनिवर्सिटी हिस्ट्री अलएमनी, खण्ड टप्प्ए मेरठ 2006, पृष्ठ 308-309</ref>
 
1857 के इस स्वतन्त्रता समर के प्रति अपने उत्साह और समर्पण के कारण सीकरी खुर्द क्रान्तिकारियों का एक महत्वपूर्ण ठिकाना बन गया। गाँव के बीचोबीच स्थित एक किलेनुमा मिट्टी की दोमंजिला हवेली को क्रान्तिकारियों ने तहसील का स्वरूप प्रदान किया। यह हवेली सिब्बा सिंह गुर्जर की थी जो सम्भवतः क्रान्तिकारियों का नेता था। आसपास के अनेक गाँवों के क्रान्तिकारी सीकरी खुर्द में इकट्ठा होने लगे। मेरठ के कुछ क्रान्तिकारी सैनिक भी इनके साथ थे। इस कारण यह दोमंजिला हवेली क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र बन गयी।
 
उस समय सीकरी खुर्द, लालकुर्ती मेरठ में रहने वाले बूचड़वालों की जमींदारी में आता था। लालकुर्ती के जमींदार ने स्वयं जाकर सिब्बा मुकद्दम से बातचीत की। उसने सिब्बा को, अंग्रेजों के पक्ष में करने के लिए, लालच देते हुए कहा कि-”मुकद्दम जितने इलाके की ओर तुम उँगली उठाओगे, मैं वो तुम्हे दे दूँगा तथा जो जमीन तुम्हारे पास है उसका लगान भी माफ कर दिया जायेगा। लेकिन सिब्बा ने जमींदार की बात नहीं मानी।<ref>विधनेष कुमार मुदित कुमार, 1857 का विप्लव, मेरठ, 2007 पृष्ठ संख्या 110</ref>अब सीकरी खुर्द के गुर्जर खुलेआम अंग्रेजों के विरूद्ध हो गये।
 
क्रान्तिकारियों ने आसपास के क्षेत्रों में राजस्व वसूल कर क्रान्तिकारी सरकार के प्रमुख, सम्राट बहादुरशाह जफर को भेजने का निश्चय किया। व्यवस्था को लागू करने के लिए सीकरी के क्रान्तिकारियों ने अंग्रेज परस्त ग्राम काजिमपुर पर हमला बोल 7 गद्दारों को मौत के घाट उतार दिया।<ref>डनलप, सर्विस एण्ड ऐडवेनचर आॅफ खाकी रिसाला इन इण्डिया 1857-58, पृष्ठ संख्या 71</ref> अंग्रेज परस्तों को सबक सिखाने का सिलसिला यहीं समाप्त नहीं हुआ। सीकरी खुर्द में स्थित इन क्रान्तिकारियों ने बेगमाबाद (वर्तमान मोदीनगर) और आसपास के अंग्रेज समर्थक गद्दारों पर बड़े हमले की योजना बनाई। बेगमाबाद कस्बा सीकरी खुर्द से मात्र दो मील दूर था। वहाँ अंग्रेजों की एक पुलिस चैकी थी, जिस कारण सीकरी खुर्द में बना क्रान्तिकारियों का ठिकाना सुरक्षित नहीं था। इस बीच बेगमाबाद के अंग्रेज परस्तों ने गाजियबााद और दिल्ली के बीच हिण्डन नदी के पुल को तोड़ने का प्रयास किया। वास्तव में वो दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार और पश्चिम उत्तर प्रदेश में उसके नुमाईन्दे बुलन्दशहर के बागी नवाब वलिदाद खान के बीच के सम्पर्क माध्यम, इस पुल को समाप्त करना चाहते थे। जिससे कि वलिदाद खान को सहायता हीन कर हराया जा सके। <ref>उमेश त्यागी, पृष्ठ संख्या 309,डनलप, सर्विस एण्ड ऐडवेनचर आॅफ खाकी रिसाला इन इण्डिया 1857-58, पृष्ठ संख्या 71</ref>इस घटना ने सीकरी खुर्द में स्थित क्रान्तिकारियों की क्रोधाग्नि में घी का काम किया और उन्होंने 8 जुलाई सन् 1857 को बेगमाबाद पर हमला कर दिया। सबसे पहले बेगमाबाद में स्थित पुलिस चैकी को नेस्तनाबूत कर अंग्रेज परस्त पुलिस को मार भगाया। इस हमले की सूचना प्राप्त होते ही आसपास के क्षेत्र में स्थित अंग्रेज समर्थक काफी बड़ी संख्या में बेगमाबाद में एकत्रित हो गये। <ref>डनलप, सर्विस एण्ड ऐडवेनचर आॅफ खाकी रिसाला इन इण्डिया 1857-58, पृष्ठ संख्या 71</ref> प्रतिक्रिया स्वरूप '''सीकरी खुर्द, नंगला, दौसा, डीलना, चुडियाला''' और अन्य गाँवों के, क्रान्तिकारी गुर्जर इनसे भी बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए। आमने सामने की इस लड़ाई में क्रान्तिकारियों ने सैकड़ों गद्दारों को मार डाला।<ref>(क) उमेश त्यागी, 1857 की महाक्रान्ति में गाजियाबाद जनपद (शोध पत्र), दी जर्नल  ऑफ  मेरठ यूनिवर्सिटी हिस्ट्री अलएमनी, खण्ड टप्प्ए मेरठ 2006, पृष्ठ 309,ख) ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, पृष्ठ संख्या 4
(ग) वही, डनलप, पृष्ठ संख्या 71-72</ref> चन्द गद्दार बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भाग सके। क्रान्तिकारियों ने इन अंग्रेज परस्तों का धनमाल जब्त कर कस्बे को आग लगा दी।
 
बेगमाबाद की इस घटना की खबर जैसे ही मेरठ स्थित अंग्रेज अधिकारियों को मिली, तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। अंग्रेजी खाकी रिसाले ने रात को दो बजे ही घटना स्थल के लिए कूच कर दिया। मेरठ का कलेक्टर डनलप स्वयं रिसाले की कमान ण्ध्एसम्भालते हुए था, उसके अतिरिक्त मेजर विलियम, कैप्टन डीवायली एवं कैप्टन तिरहट रिसाले के साथ थे। खाकी रिसाला अत्याधुनिक हथियारों - मस्कटों, कारबाईनों और तोपों से लैस था। भौर में जब रिसाला बेगमाबाद पहुँचा तो बूंदा-बांदी होने लगी, जो पूरे दिन चलती रही। बाजार में आग अभी भी सुलग रही थी, अंग्रेजी पुलिस चैकी और डाक बंगला वीरान पड़े थे। उनकी दीवारें आग से काली पड़ चुकी थी और फर्श जगह-जगह से खुदा पड़ा था। कस्बे से भागे हुए कुछ लोग यहाँ-वहाँ भटक रहे थे। <ref>डनलप, सर्विस एण्ड ऐडवेनचर आॅफ खाकी रिसाला इन इण्डिया 1857-58, पृष्ठ संख्या 72-73</ref>
 
अपने समर्थकों की ऐसी दुर्गति देख अंग्रेज अधिकारी अवाक रह गये। यहाँ एक पल भी बिना रूके, खाकी रिसाले को ले, सीधे सीकरी खुर्द पहुँच गये और चुपचाप पूरे गाँव का घेरा डाल दिया। अंग्रेजों के अचानक आने की खबर से क्रान्तिकारी हैरान रह गये परन्तु शीघ्र ही वो तलवार और भाले लेकर गाँव की सीमा पर इकट्ठा हो गये। भारतीयों ने अंग्रेजों को ललकार कर उन पर हमला बोल दिया। खाकी रिसाले ने कारबाईनों से गोलियाँ बरसा दी, जिस पर क्रान्तिकारियों ने पीछे हटकर आड़ में मोर्चा सम्भाल लिया। क्रान्तिकारियों के पास एक पुरानी तोप थी जो बारिश के कारण समय पर दगा दे गयी, वही अंग्रेजी तोपखाने ने कहर बरपा दिया <ref>डनलप, सर्विस एण्ड ऐडवेनचर आॅफ खाकी रिसाला इन इण्डिया 1857-58, पृष्ठ संख्या 73-74</ref>और अंग्रेज क्रान्तिकारियों की प्रथम रक्षा पंक्ति को भेदने में में कामयाब हो गये। गाँव की सीमा पर ही 30 क्रान्तिकारी शहीद हो गये। <ref>एफ विलयम्स (कमिश्नर), नैरेटिव आॅफ इवेंटस अटैण्डिंग दी आउटब्रेक आफ डिस्टर बैंसिस एण्ड दी रिस्टोरेशन आॅफ अथारिटी इन दी डिस्ट्रिक्ट मेरठ इन 1857, 58 (म्यूटिनी नैरेटिव), पृष्ठ संख्या 263</ref>
 
अन्ततः क्रान्तिकारियों ने सीकरी खुर्द के बीचोबीच स्थित किलेनुमा दोमजिला हवेली में मोर्चा लगा लिया। क्रान्तिकारियों ने यहाँ अपने शौर्य का ऐसा प्रदर्शन किया कि अंग्रेजों को भी उनके साहस और बलिदान का लोहा मानना पड़ा। कैप्टल डीवयली के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना की टुकड़ी ने हवेली के मुख्य दरवाजे को तोप से उड़ाने का प्रयास किया। क्रान्तिकारियों के जवाबी हमले में कैप्टन डीवायली की गर्दन में गोली लग गयी और वह बुरी तरह जख्मी हो गया।<ref>(क) डनलप, सर्विस एण्ड ऐडवेनचर आॅफ खाकी रिसाला इन इण्डिया 1857-58, पृष्ठ संख्या 74,एफ विलयम्स (कमिश्नर), नैरेटिव आॅफ इवेंटस अटैण्डिंग दी आउटब्रेक आफ डिस्टर बैंसिस एण्ड दी रिस्टोरेशन आॅफ अथारिटी इन दी डिस्ट्रिक्ट मेरठ इन 1857, 58 (म्यूटिनी नैरेटिव), पृष्ठ संख्या 264</ref> इस बीच कैप्टन तिरहट के नेतृत्व वाली सैनिक टुकड़ी हवेली की दीवार से चढ़कर छत पर पहुँचने में कामयाब हो गयी। हवेली की छत पर पहुँच कर इस अंग्रेज टुकड़ी में नीचे आंगन में मोर्चा ले रहे क्रान्तिकारियों पर गोलियों की बरसात कर दी। तब तक हवेली का मुख्य द्वारा भी टूट गया, भारतीय क्रान्तिकारी बीच में फंस कर रह गये। हवेली के प्रांगण में 70 क्रान्तिकारी लड़ते-लड़ते शहीद हो गये।<ref>एफ विलयम्स (कमिश्नर), नैरेटिव आॅफ इवेंटस अटैण्डिंग दी आउटब्रेक आफ डिस्टर बैंसिस एण्ड दी रिस्टोरेशन आॅफ अथारिटी इन दी डिस्ट्रिक्ट मेरठ इन 1857, 58 (म्यूटिनी नैरेटिव), पृष्ठ संख्या 264</ref>
इनके अतिरिक्त गाँव के घरों और गलियों में अंग्रेजों से लड़ते हुए 70 लोग और शहीद हो गये। अंग्रेजों ने अशक्त बूढ़ों और औरतों को भी नहीं छोड़ा। कहते हैं कि सीकरी खुर्द स्थित महामाया देवी के मंदिर के निकट एक तहखाने में गाँव के अनेक वृद्ध एवं बच्चे छिपे हुए थे तथा गाँव के पास एक खेत में सूखी पुराल व लकडियों में गाँव की महिलाएँ छिपी हुई थीं। जब खाकी रिसाला सीकरी खुर्द से वापिस जाने ही वाला था कि तभी किसी गद्दार ने यह बात अंग्रेज अफसरों को बता दी। अंग्रेजों ने तहखाने से निकाल कर 30 व्यक्तियों को गोली मार दी और बाकी लोगों को मन्दिर के पास खड़े वट वृक्ष पर फांसी पर लटका दिया।<ref>उमेश त्यागी, 1857 की महाक्रान्ति में गाजियाबाद जनपद (शोध पत्र), दी जर्नल  ऑफ  मेरठ यूनिवर्सिटी हिस्ट्री अलएमनी, खण्ड टप्प्ए मेरठ 2006, पृष्ठ 309</ref> गाँव की स्त्रियों ने अपने सतीत्व को बचाने के लिए खेत के पुराल में आग लगा कर जौहर कर लिया। आज भी इस खेत को सतियों का खेत कहते हैं।
<ref>शिवकुमार गोयल, ऐसे शुरू हुई मेरठ से क्रान्ति (लेख), दैनिक प्रभात, दिनांक 10 मई 2007, मेरठ</ref>
मेरठ के तत्कालीन कमिश्नर एफ0 विलियमस् की शासन को भेजी रिपोर्ट के अनुसार गुर्जर बाहुल्य गाँव सीकरी खुर्द का संघर्ष पूरे पाँच घंटे चला और इसमें 170 क्रान्तिकारी शहीद हुए।<ref>एफ विलयम्स (कमिश्नर), नैरेटिव आॅफ इवेंटस अटैण्डिंग दी आउटब्रेक आफ डिस्टर बैंसिस एण्ड दी रिस्टोरेशन आॅफ अथारिटी इन दी डिस्ट्रिक्ट मेरठ इन 1857, 58 (म्यूटिनी नैरेटिव), पृष्ठ संख्या 264</ref>ग्राम में स्थित महामाया देवी का मन्दिर, वहाँ खड़ा वट वृक्ष और सतियों का खेत आज भी सीकरी के शहीदों की कथा की गवाही दे रहे हैं। परन्तु इस शहीदी गाथा को कहने वाला कोई सरकारी या गैर-सरकारी स्मारक वहाँ नही है।
 
=== नम्बरदार झंडुसिंह गुर्जर - गगोल गांव का बलिदान ===
 
10 मई 1857 को मेरठ में क्रान्ति के विस्फोट के बाद मेरठ के आस-पास स्थित गुर्जरो के गांवों ने अंग्रेजी राज की धज्जिया उड़ा दी। अंग्रेजों ने सबसे पहले उन गांवों को सजा देने पर विचार किया जिन्होंने 10 मई की रात को मेरठ में क्रान्ति में बढ़ चढ़कर भाग लिया था और उसके बाद मेरठ के बाहर जाने वाले आगरा, दिल्ली आदि मार्गो को पूरी तरह से रेाक दिया था। जिसकी वजह से मेरठ का सम्पर्क अन्य केन्द्रों से कट गया था। <ref>डनलप, सर्विस एण्ड एडवैन्चर आफ खाकी रिसाला इन इण्डिया इन 1857-58</ref> इस क्रम में सबसे पहले 24 मई को 'इख्तयारपुर' पर और उसके तुरन्त बाद 3 जून को 'लिसाड़ी' , 'नूर नगर' और 'गगोल गांव' पर अंग्रेजों ने हमला किया। ये तीनों गांव मेरठ के दक्षिण में स्थित 3 से 6 मील की दूरी पर स्थित थे। लिसारी और नूरनगर तो अब मेरठ महानगर का हिस्सा बन गए हैं। गगोल प्राचीन काल में श्रषि विष्वामित्र की तप स्थली रहा है और इसका पौराणिक महत्व है। नूरनगर, लिसाड़ी और गगोल के किसान उन क्रान्तिवीरों में से थे जो 10 मई 1857 की रात को घाट, पांचली, नंगला आदि के किसानों के साथ कोतवाल धनसिंह गुर्जर के बुलावे पर मेरठ पहुँचे थे। अंग्रेजी दस्तावेजों से यह साबित हो गया है कि [[धन सिंह गुर्जर| कोतवाल धनसिंह गुर्जर]] के नेतृत्व में सदर कोतवाली की पुलिस और इन किसनों ने क्रान्तिकारी घटनाओं का अंजाम दिया था।<ref>नैरेटिव आफ इवैनटस अटैन्डिग दि आउटब्रेक आफ डिस्टरबैन्सिस एण्ड रैस्टोरेशन आफ अथारिटी इन दि डिस्ट्रिक्ट आफ मेरठ इन 1857-58</ref> इन किसानों ने कैण्ट और सदर में भारी तबाही मचाने के बाद रात 2 बजे मेरठ की नई जेल तोड़ कर 839 कैदियों को रिहा कर दिया। 10 मई 1857 को सैनिक विद्रोह के साथ-साथ हुए इस आम जनता के विद्रोह से अंग्रेज ऐसे हतप्रभ रह गए कि उन्होंने अपने आप को मेरठ स्थित दमदमें में बन्द कर लिया। वह यह तक न जान सके विद्रोही सैनिक किस ओर गए हैं ? इस घटना के बाद नूरनगर, लिसाड़ी, और गगोल के क्रान्तिकारियों बुलन्दशहर आगरा रोड़ को रोक दिया और डाक व्यवस्था भंग कर दी। आगरा उस समय उत्तरपश्चिम प्रांत की राजधानी थी। अंग्रेज आगरा से सम्पर्क टूट जाने से बहुत परेषान हुए। गगोल आदि गाँवों के इन क्रान्तिकारियों का नेतृत्व गगोल के झण्डा सिंह गुर्जर उर्फ झण्डू दादा कर रहे थे। उनके नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने बिजली बम्बे के पास अंग्रेज़ी सेना के एक कैम्प को ध्वस्त कर दिया था। आखिरकार 3 जून को अंग्रेजो ने नूरनगर लिसाड़ी और गगोल पर हमला बोला।<ref>ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर</ref> अंग्रेजी सेना के पास काराबाइने थी और उसका नेतृत्व टर्नबुल कर रहा था। मेरठ शहर के कोतवाल बिशन सिंह, जो कि रेवाड़ी के क्रान्तिकारी नेता राजा तुलाराव का भाई था, को अंग्रेजी सेना को गाईड का काम करना था।
परन्तु वह भी क्रान्ति के प्रभाव में आ चुका था। उसने गगोल पर होने वाले हमले की खबर वहां पहुँचा दी और जानबूझ कर अंग्रेजी सेना के पास देर से पहुँचा। इसका नतीजा भारतीयों के हक में रहा, जब यह सेना गगोल पहुँची तो सभी ग्रामीण वहाँ से भाग चुके थे। अंग्रेजो ने पूरे गाँव को आग लगा दी।<ref>एस0 ए0 ए0 रिजवी, फीड स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश खण्ड-5</ref> बिशन सिंह भी सजा से बचने के लिए नारनौल, हरियाणा भाग गए जहाँ वे अग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गए।कुछ दिन बाद अंग्रेजों ने फिर से गगोल पर हमला किया और बगावत करने के आरोप में 9 लोग रामसहाय, घसीटा सिंह, रम्मन सिंह, हरजस सिंह, हिम्मत सिंह, कढेरा सिंह, शिब्बा सिंह बैरम और दरबा सिंह को गिरफ्तार कर लिया।<ref>एरिक स्ट्रोक, पीजेन्ट आम्र्ड।</ref> इन क्रान्तिवीरों पर राजद्रोह का मुकदमा चला और दषहरे के दिन इन 9 क्रान्तिकारियों को चैराहे पर फांसी से लटका दिया गया। तब से लेकर आज तक गगोल गांव में लोग दशहरा नहीं मनाते हैं। <ref>आचार्य दीपांकर, स्वाधीनता संग्राम और मेरठ, जनमत प्रकाशन, मेरठ 1993</ref>
 
=== हिम्मत सिंह खटाणा - गुडगाँव ===
 
चौधरी हिम्मत सिंह खटाणा का गांव रिठौज गुडगांव जिले में आबाद है। हिम्मत सिंह ने 1857 की क्रान्ति में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। 13 मई 1857 के दिन सिलानी गांव में गुर्जरों और अंग्रेंजी फौज की डट कर टक्कर हुई थी। गुर्जरों का नेता चौ0 हिम्मत सिंह खटाणा था और अंग्रेंजो का सेनापति विलियम फोर्ड था। हिम्मतसिंह के साथ निकट गावों के खटाणे व बैंसले तथा इनके समीपस्थ रहने वाले मेव भी थे ।
विलियम फोर्ड क्रान्तिकारी गांवों के दमन चक्र के लिए ही निकला था, '''मोहम्मदपुर, नरसिंह पुर, बेगमपुर, खटोला, दरबारी हसनपुर, रामगढ़ तंवर भोआपुर नया गांव, कादरपुर तिगरा उल्हावास, बहरमपुर, घाटा, बालियाबाद, बन्धवाड़ी, गुआलपहाड़ी, नाथूपुर, अहिया नगर, घिटरौनी, फतेहपुर बेरी''' आदि गांवों के तंवर, हरषाणें, भाटी, लोहमोड़, घोड़ा रोप, बोकन, खटाने, बैंसले आदि वंश के गुर्जरों ने विलियम फोर्ड का 300 सैनिक दस्ती पर जो हथियारों से लैस था अपना दुश्मन समझ कर सिलानी के पास जोरदार हमला कर दिया था। इस लड़ाई में अनेक अंग्रेंज मारे गए थे । बहुत से बन्दी बना लिए गए । अंग्रेंजों से बैलों की दांय चलवाई । 784000रू0 लड़ाई में गुर्जरों के हाथ लगा । गुर्जरों का नेता हिम्मत सिंह खटाणा इस लड़ाई में शहीद हुआ । हिम्मत सिंह खटाणा बहादुर देश भक्त तथा स्वाधीनता प्रिय था। सारे इलाके में इनके निधन पर शोक छा गया था। रिठौज गांव के बड़े ताल के पास इनका स्मारक बनाया गया । जिसे छतरी कहते हैं। दिवाली के दिन यहा हर वर्ष मेला लगता है।
 
=== शहीद भजन सिंह गुर्जर - बहलपा ===
 
भजन सिंह गुर्जर गुडगांव जिले के बहलपा गांव का निवासी था। उसका गोत्र खटाणा था । वह भजन गुर्जर के नाम से मशहूर था। स्थानीय लोग उसे '''डाफा''' भी कहते थे । उसने 1857 ई0 की क्रान्ति में खटाणा खाप के गुर्जरों का नेतृत्व किया था। 1857 की क्रान्ति के दमन स्वरूप जब खटाणे गुर्जरों को जो '''रिठौज, सहजावास, बहलपा, खेलड़ा तथा बेरका''' गांव के निवासी थे उन्होने [[महरौली]] फांसी लगाने के लिए लेजा कर फांसी दी गई और उनके गांवों को ही तोप से उड़ा दिया गया था। उनकी जमीन जायदादें जब्त करके अपने वफादारों को पुरस्कार स्वरूप दी गई थी।<ref>एस0 ए0 ए0 रिजवी, फीड स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश खण्ड-5</ref>क्षेत्र का एक-एक वृक्ष इस बात का साक्षी है कि उन पर शहीदों को लटकाया गया था। इस क्षेत्र के गुर्जरों को गोली से उड़ाने के लिए पहचान यह की गई थी कि गुर्जर ’ए’ स्थान पर ’ओ’ का उच्चाण करता है। जो गुर्जर पकड़ा जाता है उसकी यही पहचान की जाती है और गोली से उड़ा दिया जाता था । इस तरह की मिसाल दुनियां के इतिहास में कहीं नहीं मिलती है कि बिना दोषारोपण किए सरेआम गोली का निशाना बनाया जा सके और दोषी की पहचान उच्चारण हो । '''सबसुख फागना''' निवासी भौखरी को कोले खां थाणेदार 1857 में उसे पकड़ कर ले गया था जो वापिस नहीं आया । यह नहीं कहा सकता कि उसे गोली से उड़ाया गया अथवा काला पानी भेज दिया गया। ऐसी कहानी गांव-गांव में मौजूद है जो 1857 की क्रान्ति की अमर यश गाथा की याद दिलाती है।
<ref>विघ्नेष त्यागी, मेरठ के ऐतिहासिक क्रान्ति स्थल और घटनाएं (लेख), दैनिक जागरण, मेरठ, दिनांक 5 मई 2007</ref>
 
=== आशादेवी गूजरी - मुजफ्फरनगर ===
 
आशादेवी का जन्म सन् 1829 मे
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फनगर(अब शामली जिला) मे हआ था। [[शामली]] की कल्श्यान खाप मे चौहान गौत्र के गुर्जरो के 84 गावं के ये आजादी की लडाई मे '''कल्श्सान खाप''' की सिर्फ सैनिको का लडना ही काफी नही है बल्कि समाज के हर तबके के लोगो को कंधे से कंधा मिलाकर जंगे आजादी मे शामिल होना चाहिए । इस क्रान्तिकारी सोच के तहत गांव की इस साधारण सी महिला ने महिलाओ को सगठित कर अपनी सैना बना ली ।
1857 के संग्राम मे आशादेवी ने अंग्रेजो को काफी मश्किलो मे डाला ओर आस-पास के क्षेत्रो मे अपना दबदबा कायम करलिया। आशादेवी के संगठन की ताकत का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता हे कि संगठन की 250 महिला सैनिको की शहादत के बाद ही अंग्रेजी सैना आशादैवी को युद्धभूमि मे जिन्दा पकड सकी थी। 11 अन्य महिला सैनिको के साथ बर्बर अंग्रेजो ने आशादेवी को फासी पर लटका दिया । अपनी बहादुरी से सोये हुए भारत मे शोर्य ओर पराक्रम का आशादेवी ने एक बार फिर नया सचांर किया
<ref>सुरेश नीरव, कादम्बिनी :
अगस्त - 2006 पृष्ट - 82</ref>
 
=== दयाराम गुर्जर - चंद्रावल, दिल्ली ===
 
दयाराम गुर्जर चन्द्रावल गांव का रहने वाला था। चन्द्रावल गांव दिल्ली शहर के बिल्कुल समीप है जो कमलानगर से मिला हुआ है। 1857 ई0 क्रान्ति मे दिल्ली के आसपास के गुर्जर अपनी ऐतिहासिक परम्परा के अनुसार विदेशी हकूमत से टकराने के लिये उतावले हो गये थे । दिल्ली के चारों ओर बसे हुए '''तंवर, चपराने, कसाने, बैंसले, विधुड़ी, अवाने खारी, बासटटे, लोहमोड़, बैसाख तथा डेढ़िये''' वंशों के गुर्जर संगठित होकर अंग्रेंजी हकूमत को भारत से खदेड़ने और दिल्ली के मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को पुनः भारत का सम्राट बनाने के लिए प्राणपण से जुट गये थे।<ref>विघ्नेष त्यागी, मेरठ के ऐतिहासिक क्रान्ति स्थल और घटनाएं (लेख), दैनिक जागरण, मेरठ, दिनांक 5 मई 2007</ref> गुर्जरो ने शेरशाहपुरी मार्ग मथुरा रोड़ यमुना नदी के दोनों किनारों के साथ-साथ अधिकार करके अंग्रेंजी सरकार के डाक, तार तथा संचार साधन काट कर कुछ समय के लिए दिल्ली अंग्रेंजी राज समाप्त कर दिया था। दिल्ली के गुर्जरों ने मालगुजारी बहादुरशाह जफर मुगल बादशाह को देनी शुरू कर दी थी। <ref>शिव कुमार गोयल, ऐसे शुरू हुई मेरठ में क्रान्ति (लेख)दैनिक प्रभात, मेरठ, दिनांक 10 मई 2007।</ref>
दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में गुर्जरों ने दिल्ली के मेटकाफ हाउस को कब्जे में ले लिया । जो अंग्रेंजों का निवास स्थान था, यहां पर सैनिक व सिविलियम उच्च अधिकारी अपने परिवारों सहित रहा करते थे । जैसे ही क्रान्ति की लहर मेरठ से दिल्ली पहुंची, दिल्ली के गुर्जरों में भी वह जंगल की आग की तरफ फैल गई । दिल्ली के मेटकाफ हाउस में जो अंग्रेंज बच्चे और महिलायें उनको जीवनदान देकर गुर्जरों ने अपनी उच्च परम्परा का परिचय दिया था। महिलाओं और बच्चों को मारना पाप समझ कर उन्होने जीवित छोड़ दिया था और मेटकाफ हाउस पर अधिकार कर लिया ।दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में दिल्ली के समीप [[वजीराबाद]] जो अंग्रेंजों का गोला बारूद का जखीरा था उस पर अधिकार करके बहादुरशाह जफर के हवाले कर दिया जिसमें एक लाख रू0 की बन्दूके थी। इसी तरह अंग्रेंजी सेना की 16 गाड़ियां 7 जून 1857 को रास्ते में जाती हुई रोक कर उनको अपने कब्जे में लेकर मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को लाल किले में जा कर भेंट कर दी थी।
<ref>एरिक स्ट्रोक, पीजेन्ट आम्र्ड</ref>
विलियम म्योर के इन्टेलिजेन्स रिकार्ड के अनुसार, गुर्जरों ने अंग्रेंजों के अलावा उन लोगों को भी नुकसान पहुंचाया जो अंग्रेजों का साथ दे रहे थे। 1857 की क्रान्ति के दमन चक्र के दौरान चन्द्रावल गांव को जला कर खाक कर दिया गया था सभी स्त्री पुरूषों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया था। क्रान्तिकारियो पर मेटकाफ हाउस और वजीराबाद के शस्त्रागार को लूटने का गंभीर आरोप था । अंग्रेजों को मारने का तो आरोप था ही। <ref>Intelligence Record of William myor</ref>
 
इंडियन एम्पायर क लेखक मार्टिन्स ने दिल्ली के गुर्जरों के 1857 के क्रान्ति में भाग लेने पर लिखा है, मेरठ से जो सवार दिल्ली आए थे, वे संख्या में अधिक नहीं थे । दिल्ली की साधारण जनता ने यहा तक मजदूरों ने भी इनका साथ दिया पर इस समय दिल्ली के चारों ओर की बस्तियों में फैले गुर्जर विद्रोहियों के साथ हो गए। <ref>Indian Empire, Martins</ref> इसी प्रकार 38वीं बिग्रेड के कमाण्डर ने लिखा है हमारी सबसे अधिक दुर्गति दिल्ली के गुर्जरों ने की है।<ref>British Commander of 38th Brigade, 1857 </ref> सरजान वैलफोर ने भी लिखा है ’चारों ओर के गुर्जरों के गांव 50 वर्ष तक शांत रहने के पश्चात एकदम बिगड़ रहे और मेरठ से गदर होने के चन्द घंटों के भीतर उन्होने तमाम जिलों को लूट लिया । यदि कोई महत्वपूर्ण अधिकारी उनके गांवों में शरण के लिए गया तो उसे नहीं छोड़ा और खुले आम बगावत कर दी। <ref>sir john Welfare, British India</ref>
 
=== बाबा शाहमल सिंह - बिजरोल ===
सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में 4 जुलाई को पांचली और 9 जुलाई को सीकरी में हुई शहादत के बाद, मेरठ के आसपास माहौल कुछ शान्त हुआ, तो अंग्रेजों पश्चिम की ओर मुडे जिससे कि वे दिल्ली की फील्ड फोर्स के साथ अपने संचार को सुरक्षित कर सकें। बागपत में यमुना पर बना नावों का पुल इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण था। बाबा शाहमल मेरठ के पश्चिमी क्षेत्र बागपत। बडौत में क्रान्तिकारियो के सर्वमान्य नेता थे, उनके निर्देश पर 3 हजार गूजरों ने 21 जून 1857 को बागपत के यमुना पुल को तोड दिया। जींद का राजा जो कि अंग्रेजों का सहयोगी था, उसके सैनिकों ने फिर से इस पुल का निर्माण किया परन्तु 27 जून को दिल्ली से आये विद्रोही सैनिकों और गूजरों नेे इसे फिर तोड दिया। इस प्रकार मेरठ और दिल्ली के बीच अंग्रेजों का सम्पर्क भंग हो गया था। <ref>गौतम भद्रा, फोर रिबेल्स ऑफ एट्टनी फिफटी सेवन ;लेख, सब - आल्टरन स्टडीज, खण्ड.4सम्पादक. रणजीत गुहा</ref>
 
बाबा शाहमल बिजरोल गांव का मावी [[जाट]] जंमीदार था। इससे पहले भी वह बेगम समरू के समय किसानो के हको के लिये बगावत कर चुका था। मेरठ में कोतवाल धनसिंह गुर्जर द्वारा सैनिक विद्रोह के तुरन्त बाद बागपत बडौत क्षेत्र के लोगों ने बाबा शाहमल को क्रान्ति का नेता चुन लिया। 10 मई की रात में ही मेरठ जेल से छूटे हूए लोग, बाबा शाहमल के गांव पहुच गये 11 मई को निबाली गांव में चौधरी गुलाब सिंह के घेर में एक पंचायत हुई। जिसमें बाबा शाहमल के अतिरिक्त बाघू के अचल सिंह और निबाली के माधू सिंह प्रमुख रूप से उपस्थित थे। इस पंचायत में सिसाना, बाघू, बली, खट्टादृडोला, टीकरी, सिंगावली, सैढभर, बालैनी, बूढ सैनी आदि गांवों के किसानों की उत्साही भीड इक्कठी हो गई। पंचायत में धाट पांचली से आये विद्राही भी थे। इस पंचायत में बाबा शाहमल को क्रान्तिकारियों ने अपना सर्वमान्य नेता चुना और उनके एक इशारे पर 10 हजार गुर्जरो ने जान की बाजी लडा देने का आश्वासन दिया।<ref>डनलप, सर्विस एण्ड एडवैन्चर ऑफ खाकी रिसाला इन इण्डिया इन 1857.58</ref>
 
अगले ही दिन बाबा शाहमल ने बंजारों के एक कारवां पर हमला कर 500 खच्चरो पर लदा सामान अपने कब्जे में ले लिया। उसके तुरन्त बाद बडौत तहसील पर घावा बोल इसे नेस्तनाबूत कर दिया और बाजार को लूट लिया। इस धावे में अहैडा गांव के क्रान्तिकारी शाहमल सिंह के साथ थे। इस घटना के बाद बाबा शाहमल को मुगल बादशाह ने बागपतदृबडौत परगने को सूबेदार बना दिया। मई जून के महीने में बावली आदि गांवों के जाट भी उसके साथ जुड गये। मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर के अनुसार मीतल के नेतृत्व में 800 गूजरों ने बागपत पर हमला कर दिया। बागपत के लोगों ने आरम्भ में प्रतिरोघ किया और मीतल घायल हो गया। अततः जबरदस्त संघर्ष के बाद बागपत के लोगों ने बाबा शाहमल की सत्ता को स्वीकार कर लिया।
<ref> नैरेटिव ऑफ इवैन्ट्स अटैन्डिंग दि आउटब्रेक ऑफ डिस्टरबैन्सिस एण्ड रेस्टोरेषन आॅफ अथारिटी इन दि डिस्ट्रिक्ट ऑफ मरेठ इन 1857.58</ref>
बागपत बडौत क्षेत्र में दिन पर दिन फैलते विद्रोह ने अंग्रेजों की चिन्ता बढ दी। बागपत में नावों का पुंल टूटने के अतिरिक्त एक बात जिसने अंग्रेजो की मुश्किलों को सबसे ज्यादा बढा दिया वह यह थी कि बागपत बडौत क्षेत्र से लगातार, अनाज आदि रसद इक्कठा करके दिल्ली के विद्रोहियो को भेजी जा रही थी। इस रसद की आपूर्ति के बिना दिल्ली के विद्रोही क्रान्तिकारी अधिक दिन तक नही टिक सकते थे।इस स्थिति में अंग्रेज और अधिक दिन तक बाबा शाहमल की तरफ से बेपरवाह नहीं रह सकते थे। 16 जुलाई को खाकी रिसाले ने डनलप के नेतृत्व में बागपत क्षेत्र के लिये मार्च किया। रिसाले में लगभग 200 सिपाही थे, जिसमे 2 तोप, 8 गोलन्दाज, 40 राइफल धारी, 50 घुडसवार, 27 नजीब एव अन्य सिपाही थे। जब रिसाला हिन्डन के पास पहुचा तो उन्हे पता चला कि शाहमल सिंह अपने 3000 साथियों के साथ बासौद गांव मे है और अंग्रेजों के सहयोगी गांव डोला पर कल सुबह हमला करने वाले हैं। अंग्रेज 17 जुलाई की भौर में बासौद पहुॅच गये। लेकिन तब तक बाबा शाहमल अपने साथियों के साथ जा चुके थे। अंग्रेजों को बासौद में 8000 मन गेहूंदृदाल आदि मिला जो दिल्ली क विद्रोहियों को भेजा जाने वाले था। अंग्रेजों को गांव में जो भी मिला उसे गोली मार दी या फिर तलवार से काट दिया और गांव को आग के हवाले कर दिया। मुस्लिम गांव बासौद में लगभग 150 व्यक्ति शहीद हुए। <ref>रेस्टोरेषन आॅफ अथारिटी इन दि डिस्ट्रिक्ट ऑफ मरेठ इन 1857.58</ref>
 
18 जुलाई की सुबह खाकी रिसाला डौला से पूर्वी यमुना नहर के किनारे किनारे बडौत की तरफ चल दिया। यह रास्ता जाटों की सलकलैन गौत्र के चौरासी गांवों की तरफ जाता है, इसे लोग चैरासी देस कहते है। डनलप कुछ सहयोगियों के साथ बर्का गांव में पहुचा, तो लोगों ने उन्हे चेेताया कि जितनी तेज भाग सकते हो भाग कर अपनी जान बचा लो क्योंकि शाहमल सिंह ने अपने साथ चैरासी देस को खडा कर लिया है। तभी शाहमल सिंह का भतीजा भगत सिंह उर्फ भगता अपने साथियों के साथ वहाँ पहुच गया और उसके साथ एक छोटे से मुकाबले में डनलप की जान पर बन आई और वह अपनी जान बचाने के लिए बडौत की तरफ भाग लिया। भगता ने उसका बडौत तक पीछा किया। अंग्रेजो ने देखा कि पूरा क्षेत्र उनके खिलाफ खडा हो गया है। चारों तरफ ढोल नगाडे बज रहे थे और हथियारबन्द लोगों के झुण्ड के झुण्ड बडौत की तरफ बढ रहे थे। <ref>एरिक स्ट्रोक, पीजेन्ट आम्र्ड</ref>
 
बडौत में क्रान्तिकारियों ने एक बाग में मोर्चा लगा रखा था, करीब 3500 क्रान्तिकारी बाबा शाहमल के साथ वहां अंग्रेजों से भिडने को तैयार थे। भारतीय बहादुरी से लडे परन्तु भारतीयों की देशी बंदूकें अंग्रेजी राइफलेऔर तोपों का मुकाबला न कर सकी। भारतीय जान हथेली पर लेकर लडे पर विजय आघुनिक हथियारों की हुई। इस लडाई में करीब 200 भारतीय शहीद हुए। जिनमें बाबा शाहमल भी थे, जिन्हे एक अंग्रेज मि. तोन्नाकी ने दो भारतीय सिपाहियों की मदद से मारा था।
अंग्रेजों ने बाबा शाहमल का सिर काट कर एक लम्बे भाले पर लटका दिया। बाबा का सिर जहाँ अंग्रेजों के लिए विजयी चिन्ह था, वहीं भारतीयों के लिए वह क्रान्तिकारी ललकार और सम्मान का प्रतीक था। इसलिए उन्होनें इसे वापिस पाने के लिए अंग्रेजो का हिंडन तक पीछा किया।
बाबा शाहमल शहीद हो गये किन्तु क्रान्ति जिंदा रही, एक महीने बाद उनके पोते लिज्जामल के नेतृत्व में बागपतदृबडौत क्षेत्र में फिर से विद्रोह हो गया। <ref> एस0 ए0 ए0 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश खण्ड.5।6. ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर</ref>
 
=== सूबा देवहंस कषाणा (देवा गुर्जर) - धौलपुर ===
 
देवहंस कषाणा ने मल्ल विद्या, लाठी, बनैती की कला सीखी और देवहंस की बाड़ी, बरोड़ी , धौलपुर, राजाखेड़ा, सेंपऊ-आगरा, मथुरा के दंगलेां में कुश्ती लड़ने की धाक जम गई। देवहंस के शरीर सौष्टव व वीरता की प्रशंसा सुनकर राणा भागवत सिंह ने उसे अंग्रेंजी फौज में भर्ती कराके प्रशिक्षण दिलाया । अंग्रेंजों को यह मालूम नहीं था कि यह सैनिक ट्रेनिंग लेकर 1857 ई0 में आगरे क्षेत्र से उनके राज्य को समाप्त कर देगा । धौलपुर के राणा भगवत सिंह ने अपनी फौज का उसे सर्वोच्च सेनापति बना दिया। धौलपुर का शासक भगवंत सिंह था जिसने अंग्रेजो का साथ दिया देवहंस ने अश्वारोही दल बढ़ा कर फौजी छावनी का रूप दे दिया और देवहंस टंटकोर नामक की अलग ट्रांसपोर्ट कमान कायम की । जिसे धौलपुर के अंग्रेंज पोलिटिकल ऐजेंट ने वेलेजली की सहायक प्रथा नीति के विरूद्ध माना था। जिसकी शिकायत उसने बड़े लाट साहब से की थी ।
 
देवहंस ने 6 महीने में गूजरों की विशेष फौज तैयार की उसे प्रशिक्षण देकर और फौज साथ लेकर सरमथुरा पर धावा बोल दिया । किले को ध्वस्त करके धूल में मिला दिया और राजा को कैद कर लिया। झिरी सरमथुरा के किले की किवाड़ उतार लाए थे जो बाद में इन्होने अपने किले देवहंस गढ़ में लगाए गए थे जो आज भी देवहंस की विजय गाथा के प्रतीक हैं।
 
देवहंस ने 1857 की क्रान्ति में आगरा जिले की 3/4 तहसीलों पर अधिकार करके इस क्षेत्र में अंग्रेंजी राज को समाप्त सा कर दिया था। दमनचक्र के दौरान अंग्रेज हकूमत ने अपने वफादार जमीदार हर नारायण की सहायता लेकर देवहंस को हराना चाहा मगर उसे स्वयं नीचा देखना पड़ा । इस लड़ाई में 3000 बन्दूकें, 2 स्टेनगन तथा 2 लाख की सम्पति सूबा देवहंस के हाथ लगी । इण्डियन एम्पायर के लेखक मार्टिन्स ने इस सम्बन्ध में लिखा है गुर्जरों के सिवाय हिन्दू जनता में किसी ने भी विद्रोहियों का साथ नहीं दिया । विद्रोह की आग घंटों में मेरठ से दिल्ली, दादरी, बुलन्दशहर, आगरा, सहारनपुर तक सामूहिक रूप से फैल गई । धौलपुर के सूबा देवहंस ने आगरे की तहसीलों पर कब्जा कर लिया ।
 
झिरी सरमथुरा की विजय के पश्चात देवहंस को धौलपुर राज्य का सूबा नियुक्त हुआ और धौलपुर का राजा बन गया और वह सूबा देवहंस के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
 
सूबा देवहंस ने देवहंसगढ़ नामका किला बनाया जो धौलपुर से लगभग 15 मील दूर है। किला बहुत भव्य एवं सुन्दर है। किले का मुख्य द्वार मुगलकालीन जैसा है परन्तु उसकी बनावट भारतीय हिन्दू किलों के समान है। द्वार पर द्वारपालों के लिए प्रकोष्ट बने हैं। इस द्वार के उपर पंचखंडा महल जो दरबार हाल रहा होगा । दुर्ग लाल पत्थर का बना है, खम्भों पर नक्काशी शहतीर डालकर पटिटयों से छत बनाई गई है। शिल्पकला देखते ही बनती है। सारे चैक में चैकोर बावड़ी है जिसमें पानी भरा हुआ है। इस चैक से लगी के बाद एक तीन हवेली है जो रनिवास और रहवास के लिए काम में लाई जाती थी हवेली के अन्दर अनाज के लिए पत्थर की कोठी बनी हुई है। किले की चारदीवारी 20 फुट चैड़ी हैं चारों और गुम्बज है। किले के पश्चिम में अर्ध कलाकार एक लम्बा चैड़ा खाल है जिसे उतर पूर्व की ओर बांध की तरह बांधा है। इसमें पानी भरा रहता था। पूर्व की ओर भी एक तालाब है। दक्षिण का भाग खुला है। सामरिक दृष्टि से सूबा देवहंस का किला बहुत महत्वपूर्ण है। यह किला देवहंस के गांव कुदिन्नना से लगभग 3 मील दूर है। {{sfn| Janitihas, Dr.Sushil Bhati}}
 
== हिंडन का युध्द ==
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में मेरठ और दिल्ली की सीमा पर [[हिण्डन नदी|हिंडन नदी]] के किनारे 30, 31 मई 1857 को राष्ट्रवादी सेना और अंग्रेजों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध हुआ था जिसमें भारतीयों ने मुगल शहजादा मिर्जा अबू बक्र,<ref> ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर, गवर्नमेन्ट प्रेस, 1963, पृष्ठ संख्या 53</ref> दादरी के राजा [[उमराव सिंह (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी)|राव उमराव सिंह गुर्जर]] और मालागढ़ के नबाब वलीदाद खाँन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना के दांत खट्टे कर दिये थे।
<ref>शिव कुमार गोयल, ऐसे शुरू हुई मेरठ में क्रान्ति (लेख)दैनिक प्रभात, मेरठ, दिनांक 10 मई 2007।</ref> जैसा कि विदित है कि 10 मई 1857 को मेरठ में देशी सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया और रात में ही वो दिल्ली कूच कर गए थे। 11 मई को इन्होंने अन्तिम मुगल [[बहादुर शाह ज़फ़र|बादशाह बहादुर शाह जफर]] को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया <ref>शिव कुमार गोयल, ऐसे शुरू हुई मेरठ में क्रान्ति (लेख)दैनिक प्रभात, मेरठ, दिनांक 10 मई 2007,ई0 बी0 जोशी</ref> और अंग्रेजों को दिल्ली के बाहर खदेड़ दिया। अंग्रेजों ने दिल्ली के बाहर रिज क्षेत्र में शरण ले ली।
तत्कालीन परिस्थितियों में दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार के लिए मेरठ क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण था। क्योकिं मेरठ से [[धन सिंह गुर्जर|कोतवाल धनसिंह गुर्जर]] द्वारा विद्रोह की शुरूआत हुई थी जो पूरे मेरठ क्षेत्र में, [[सहारनपुर]] से लेकर [[बुलन्दशहर]] तक का हिन्दू-मुस्लिम, किसान-मजदूर सभी आमजन, इस अंग्रेज विरोधी संघर्ष में कूद पड़े थे। ब्रिटिश विरोधी संघर्ष ने यहाँ जन आन्दोलन और जनक्रान्ति का रूप धारण कर लिया था। मेरठ क्षेत्र दिल्ली के क्रान्तिकारियों को जन, धन एवं अनाज (रसद) की भारी मदद पहुँच रहा था। स्थिति को देखते हुए मुगल बादशाह ने मालागढ़ के नवाब वलीदाद खान को इस क्षेत्र का नायब सूबेदार बना दिया, <ref>एस0 ए0 ए0 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश, खण्ड टए लखनऊ, 1960, पृष्ठ सं0 45 पर मुंशी लक्ष्मण स्वरूप का बयान</ref> उसने इस क्षेत्र की क्रान्तिकारी गतिविधियों को गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिये दादरी में क्रान्तिकारियों के नेता '''राजा उमराव सिंह गुर्जर''' से सम्पर्क साधा <ref> एस0 ए0 ए0 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश, खण्ड टए लखनऊ, 1960, पृष्ठ सं0 45 पर मुंशी लक्ष्मण स्वरूप का बयान।</ref>, जिसने दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार का पूरा साथ देने का वादा किया। मेरठ में अंग्रेजों के बीच अफवाह थी कि विद्रोही सैनिक, बड़ी भारी संख्या में, मेरठ पर हमला कर सकते हैं। <ref>बिन्दु क्रमांक 221, नैरेटिव ऑफ इवेन्टस अटैन्डिग द आऊटब्रैक ऑफडिस्टरबैन्सिस एण्ड द रेस्टोरेशन ऑफ ऑथोरिटी इन डिस्ट्रिक्ट मेरठ 1857-58, राष्ट्रीय अभिलेखागार, दिल्ली</ref> अंग्रेज मेरठ को बचाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे क्योंकि मेरठ पूरे डिवीजन का केन्द्र था। मेरठ को आधार बनाकर ही अंग्रेज इस क्षेत्र में क्रान्ति का दमन कर सकते थे। अंग्रेज इस सम्भावित हमले से रक्षा की तैयारी में जुए गए। मेरठ होकर वापिस गए दो व्यक्तियों ने बहादुर शाह जफर को बताया कि 1000 यूरोपिय सैनिकों ने सूरज कुण्ड पर एक किले का निर्माण कर लिया है। <ref>वही ई0 बी0 जोशी</ref>
इस प्रकार दोनों और युद्ध की तैयारियां जोरो पर थी। तकरीबन 20 मई 1857 को भारतीयों ने '''हिंडन नदी''' का पुल तोड़ दिया जिससे दिल्ली के रिज क्षेत्र में शरण लिए अंग्रेजों का सम्पर्क मेरठ और उत्तरी जिलो से टूट गया। <ref>ई0 बी0 जोशी</ref>
इस बीच युद्ध का अवसर आ गया जब दिल्ली को पुनः जीतने के लिए अंगे्रजों की एक विशाल सेना प्रधान सेनापति बर्नाड़ के नेतृत्व में अम्बाला छावनी से चल पड़ी। सेनापति बर्नाड ने दिल्ली पर धावा बोलने से पहले मेरठ की अंग्रेज सेना को साथ ले लेेने का निर्णय किया। अतः 30 मई 1857 को जनरल आर्कलेड विल्सन की अध्यक्षता में मेरठ की अंगे्रज सेना बर्नाड का साथ देने के लिए [[गाजियाबाद]] के निकट हिंडन नदी के तट पर पहुँच गई। किन्तु इन दोनों सेनाओं को मिलने से रोकने के लिए क्रान्तिकारी सैनिकों और आम जनता ने भी हिन्डन नदी के दूसरी तरफ मोर्चा लगा रखा था। <ref>उमेश त्यागी, 1857 की महाक्रान्ति में गाजियाबाद जनपद (लेख), दी जर्नल आफ मेरठ यूर्निवर्सिटी हिस्ट्री एलमनी, खण्ड 2006, पृष्ठ संख्या 311</ref>
जनरल विल्सन की सेना में 60वीं शाही राइफल्स की 4 कम्पनियां, कार्बाइनरों की 2 स्क्वाड्रन, हल्की फील्ड बैट्री, ट्रुप हार्स आर्टिलरी, 1 कम्पनी हिन्दुस्तानी सैपर्स एवं माईनर्स, 100 तोपची एवं हथगोला विंग के सिपाही थे। <ref> वही, बिन्दु क्रमांक 232, नैरेटिव इन डिस्ट्रक्ट मेरठ</ref>अंग्रेजी सेना अपनी सैनिक व्यवस्था बनाने का प्रयास कर रही थी कि क्रान्तिकारी सेना ने उन पर तोपों से आक्रमण कर दिया। <ref> बिन्दु क्रमांक 232, नैरेटिव इन डिस्ट्रक्ट मेरठ। उमेश त्यागी</ref> भारतीयों की राष्ट्रवादी सेना की कमान मुगल शहजादे मिर्जा अबू बक्र दादरी के राजा उमरावसिंह एवं नवाब वलीदाद खान के हाथ में थी। भारतीयों की सेना में बहुत से घुड़सवार, पैदल और घुड़सवार तोपची थे। <ref>वही, ई0 बी0 जोशी</ref> भारतीयों ने तोपे पुल के सामने एक ऊँचे टीले पर लगा रखी थी। भारतीयों की गोलाबारी ने अंग्रेजी सेना के अगले भाग को क्षतिग्रस्त कर दिया।
अंग्रेजों ने रणनीति बदलते हुए भारतीय सेना के बायें भाग पर जोरदार हमला बोल दिया। इस हमले के लिए अंग्रेजों ने 18 पौंड के तोपखाने, फील्ड बैट्री और घुड़सवार तोपखाने का प्रयोग किया। इससे क्रान्तिकारी सेना को पीछे हटना पड़ा और उसकी पाँच तोपे वही छूट गई। जैसे ही अंग्रेजी सेना इन तोपों को कब्जे में लेने के लिए वहाँ पहुँची, वही छुपे एक भारतीय सिपाही ने बारूद में आग लगा दी, जिससे एक भयंकर विस्फोट में अंग्रेज सेनापति कै. एण्ड्रूज और 10 अंग्रेज सैनिक मारे गए। इस प्रकार इस वीर भारतीय ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजों से भी अपने साहस और देशभक्ति का लोहा मनवा लिया। एक अंग्रेज अधिकारी ने लिखा था कि ”ऐसे लोगों से ही युद्ध का इतिहास चमत्कृत होता है। <ref> वही, उमेश त्यागी</ref>
अगले दिन भारतीयों ने दोपहर में अंग्रेजी सेना पर हमला बोल दिया यह बेहद गर्म दिन था और अंग्रेज गर्मी से बेहाल हो रहे थे। भारतीयों ने हिंडन के निकट एक टीले से तोपों के गोलों की वर्षा कर दी। अंग्रेजों ने जवाबी गोलाबारी की। 2 घंटे चली इस गोलाबारी में लै0 नैपियर और 60वीं रायफल्स के 11 जवान मारे गए तथा बहुत से अंग्रेज घायल हो गए। <ref>विघ्नेष त्यागी, मेरठ के ऐतिहासिक क्रान्ति स्थल और घटनाएं (लेख), दैनिक जागरण, मेरठ, दिनांक 5 मई 2007</ref>अंग्रेज भारतीयों से लड़ते-लडते पस्त हो गए, हालांकि अंग्रेज सेनापति जनरल विल्सन ने इसके लिए भयंकर गर्मी को दोषी माना। भारतीय भी एक अंग्रेज परस्त गांव को आग लगाकर सुरक्षित लौट गए।
1 जून 1851 को अंग्रेजों की मदद को गोरखा पलटन हिंडन पहुँच गई तिस पर भी अंग्रेजी सेना आगे बढ़ने का साहस नहीं कर सकी और [[बागपत]] की तरफ मुड़ गई। <ref>वही, उमेश त्यागी</ref>इस प्रकार भारतीयों ने 30, 31 मई 1857 को लड़े गए हिंडन के युद्ध में साहस और देशभक्ति की एक ऐसी कहानी लिख दी, जिसमें दो अंग्रेजी सेनाओं के ना मिलने देने के लक्ष्य को पूरा करते हुए, उन्होंने अंग्रेजी बहादुरी के दर्प को चूर-चूर कर दिया।
 
[[चित्र:Indian revolt of 1857 states map.svg|thumb|250px|1857 की क्रांति के समय के भारतीय राज्य।]]
 
== 1824 का विशाल विद्रोह (1857 की क्रान्ति का पूर्वाभ्यास) ==
 
1757 ई0 में प्लासी के युद्व के फलस्वरूप भारत में अग्रेंजी राज्य की स्थापना के साथ ही भारत में उसका विरोध प्रारम्भ हो गया <ref>{{cite web|last1=Robins|first1=Nick|title=This Imperious Company — The East India Company and the Modern Multinational — Nick Robins — Gresham College Lectures|url=http://www.gresham.ac.uk/lectures-and-events/this-imperious-company-the-east-india-company-and-the-modern-multinational|website=Gresham College Lectures|publisher=Gresham College|accessdate=19 June 2015}}</ref>और 1857 की क्रान्ति तक भारत में अनेक संघर्ष हुए, जैसे सन् 1818 में खानदेश के भीलों और राजस्थान के मेरो ने संघर्ष किया। {{sfn|Prakash|2002|p=300}}{{sfn|Sinclair|1884|pp=194–195}} सन् 1824 में वर्मा युद्व में अंग्रेजो की असफलता और उसके साथ ही बैरकपुर छावनी में 42-नैटिव इन्फैन्ट्री द्वारा किये गये विद्रोह में उत्साहित होकर भारतीयों ने एकसाथ सहारनपुर-हरिद्वार क्षेत्र, रोहतक और गुजरात में कोली बाहुल्य क्षेत्र में जनविद्रेाह कर स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रयास किये।<ref>जन इतिहास, डा.सुशील भाटी</ref><ref>http://www.roorkeeweb.com/blog/why-beg-established-in-roorkee/</ref> तीनो स्थानों पर भारतीयों ने जमकर अंग्रेजी राज्य से टक्कर ली और अपने परम्परागत सामती वर्ग के नेतृत्व में अंग्रेजी राज्य को उखाड-फेकने का प्रयास किया। जिस प्रकार सन् 1857 में क्रान्ति सैनिक विद्रोह से शुरू हुई थी और बाद में जन विद्रोह में परिवर्तित हो गयी थी। इसी प्रकार का एक घटना क्रम सन् 1824 में घटित हुआ।<ref name=":0">{{cite web|url=https://www.dailypioneer.com/STATE-EDITIONS/dehradun/cm-pays-tribute-to-freedom-fighter-vijay.html|title=CM pays tribute to freedom fighter Vijay|last=|first=|date=2015-10-04|website=The Pioneer|publisher=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref><ref name=":1">{{cite book
| title = "Mutiny at the Margins: New Perspectives on the Indian Uprising of 1857"
| publisher = Crispin Bates
|ISBN=9788132110514}}</ref> कुछ इतिहासकारों ने इन घटनाओं के साम्य के आधार पर सन 1824 की क्रान्ति को सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का अग्रगामी और पुर्वाभ्यास भी कहा है। सन् 1824 में [[सहारनपुर]]-[[हरिद्वार]] क्षेत्र मे स्वतन्त्रता-संग्राम की ज्वाला उपरोक्त अन्य स्थानों की तुलना में अधिक तीव्र थी। <ref>जनइतिहास, डाँ सुशिल भाटी</ref><ref>http://sudarshannews.in/religion/know-about-raja-vijay-singh-ji/</ref>
 
आधुनिक हरिद्वार जनपद में रूडकी शहर के पूर्व में लंढौरा नाम का एक कस्बा है यह कस्बा सन् 1947 तक पंवार वंश के गुर्जर राजाओ की राजधानी रहा है।<ref>http://www.publicguidetips.com/about-city/जानिए-रूड़की-का-इतिहास</ref> अपने चरमोत्कर्ष में लंढौरा रियासत में 804 गाँव थे और यहां के शासको का प्रभाव समूचे पश्चिम उत्तर प्रदेश में था। हरियाणा के करनाल क्षेत्र और गढ़वाल में भी इस वंश के शासकों का व्यापक प्रभाव था। सन् 1803 में अंग्रेजो ने ग्वालियर के सिन्धियाओं को परास्त कर समस्त उत्तर प्रदेश को उनसे युद्व हजीने के रूप में प्राप्त कर लिया। अब इस क्षेत्र में विधमान पंवार वंश की लंढौरा, नागर गुर्जर वंश की बहसूमा (मेरठ), भाटी गुर्जर वंश की दादरी (गौतम बुद्व नगर), जाटो की कुचेसर (गढ क्षेत्र) इत्यादि सभी ताकतवर रियासते अंग्रेजो की आँखों में कांटे की तरह चुभले लगी। सन् 1813 में लंढौरा के राजा रामदयाल सिंह गुर्जर की मृत्यू हो गयी। उनके उत्तराधिकारी के प्रश्न पर राज परिवार में गहरे मतभेद उत्पन्न हो गये। स्थिति का लाभ उठाते हुये अंग्रेजी सरकार ने रिायसत कोभिन्न दावेदारों में बांट दिया और रियासत के बडे हिस्से को अपने राज्य में मिला लिया। लंढौरा रियासत का ही ताल्लुका था, कुंजा-बहादरपुर, जोकि सहारनपुर-रूडकी मार्ग पर भगवानपुर के निकट स्थित है, इस ताल्लुके मे 44 गाँव थे सन् 1819 में विजय सिंह गुर्जर यहां के ताल्लुकेदार बने।<ref>https://www.jagran.com/uttarakhand/haridwar-cm-announces-many-plan-the-name-of-martyr-king-vijay-singh-12977722.html</ref> विजय सिंह लंढौरा राज परिवार के निकट सम्बन्धी थे। विजय सिंह के मन में अंग्रेजो की साम्राज्यवादी नीतियों के विरूद्व भयंकर आक्रोश था। वह लंढौरा रियासत के विभाजन को कभी भी मन से स्वीकार न कर सके थे। <ref>https://dailyhunt.in/news/india/hindi/only+news+24-epaper-onlynews/shaury+gatha+1824+me+aajadi+ki+pahali+ladai+me+kunja+bana+kunja+bahadurapur-newsid-94626668</ref>
 
दूसरी ओर इस क्षेत्र में शासन के वित्तीय कुप्रबन्ध और कई वर्षों के अनवरत सूखे ने स्थिति को किसानों के लिए अति विषम बना दिया, बढते राजस्व और अंग्रेजों के अत्याचार ने उन्हें विद्रोह करने के लिए मजबूर कर दिया। क्षेत्र के किसान अंग्रेजों की शोषणकारी कठोर राजस्व नीति से त्रस्त थे और संघर्ष करने के लिए तैयार थे। किसानों के बीच में बहुत से क्रान्तिकारी संगठन जन्म ले चुके थे। जो ब्रिटिश शासन के विरूद्व कार्यरत थे। ये संगठन सैन्य पद्वति पर आधारित फौजी दस्तों के समान थे, इनके सदसय भालों और तलवारों से सुसज्जित रहते थे, तथा आवश्यकता पडने पर किसी भी छोटी-मोटी सेना का मुकाबला कर सकते थे। अत्याचारी विदेशी शासन अपने विरूद्व उठ खडे होने वाले इन सैनिक ढंग के क्रान्तिकारी संगठनों को डकैतो का गिरोह कहते थे। लेकिन अंग्रेजी राज्य से त्रस्त जनता का भरपूर समर्थन इन संगठनों केा प्राप्त होता रहा। इन संगठनों में एक क्रान्तिकारी संगठन का प्रमुख नेता कल्याण सिंह गुर्जर उर्फ कलुआ गुर्जर था। यह संगठन देहरादून क्षेत्र में सक्रिय था, और यहां उसने अंग्रेजी राज्य की चूले हिला रखी थी दूसरे संगठन के प्रमुख कुवर गुर्जर और भूरे गुर्जर थें। यह संगठन सहारनपुर क्षेत्र में सक्रिय था और अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बना हुआ था। सहारनपुर-हरिद्वार-देहरादून क्षेत्र इस प्रकार से बारूद का ढेर बन चुका था।<ref>http://uttarainformation.gov.in/news.php?id=13203</ref> जहां कभी भी ब्रिटिश विरोधी विस्फोट हो सकता था।
 
कुंजा-बहादरपुर के ताल्लुकेदार विजय सिंह स्थिति पर नजर रखे हुए थें। विजय सिंह के अपनी तरफ से पहल कर पश्चिम उत्तर प्रदेश के सभी अंग्रेज विरोधी जमीदारों, ताल्लुकेदारों, मुखियाओं, क्रान्तिकारी संगठनों से सम्पर्क स्थापित किया और एक सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से अंग्रेजों को खदेड देने की योजना उनके समक्ष रखी। विजय सिंह के आवहान पर ब्रिटिश किसानों की एक आम सभा भगवानपुर जिला-सहारनपुर में बुलायी गयी। सभा में सहारनपुर हरिद्वार, [[देहरादून]]-[[मुरादाबाद]], [[मेरठ]] और यमुना पार [[हरियाणा]] के किसानों ने भाग लिया। सभा में उपस्थित सभी किसानों ने हर्षोउल्लास से विजय सिंह की क्रान्तिकारी योजना को स्वीकारकर लिया। सभा ने विजय सिंह को भावी मुक्ति संग्राम का नेतृत्व सभालने का आग्रह किया, जिसे उन्हौने सहर्ष स्वीकार कर लिया। समाज के मुखियाओं ने विजय सिंह को भावी स्वतन्तत्रा संग्राम में पूरी सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया। कल्याण सिंह उर्फ कलुआ गुर्जर ने भी विजय सिंह का नेतृत्व स्वीकार कर लिया। अब विजय सिंह अंग्रेजों से दो-दो हाथ करने के लिए किसी अच्छे अवसर की ताक में थे। सन् 1824 में बर्मा के युद्व में अंग्रेजो की हार के समाचार ने स्वतन्त्रता प्रेमी विजय सिंह के मन में उत्साह पैदा कर दिया। तभी बैरकपुर में भारतीय सेना ने अंग्रेजी सरकार के विरूद्व विद्रोह कर दिया। समय को अपने अनुकूल समझ विजयसिंह की योजनानुसार क्षेत्री किसानों ने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी।<ref name=":14">{{cite book
| title = "Mutiny at the Margins: New Perspectives on the Indian Uprising of 1857"
| publisher = Crispin Bates
|ISBN=9788132110514}}</ref>
 
स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक दौर में कल्याण सिंह अपने सैन्य दस्ते के साथ शिवालिक की पहाडियों में सक्रिय रहा और देहरादून क्षेत्र में उसने अच्छा प्रभाव स्थापित कर लिया। नवादा गाँव के शेखजमां और सैयाजमां अंग्रेजो के खास मुखबिर थे, और क्रान्तिकारियों की गतिविधियों की गुप्त सूचना अंग्रेजो को देते रहते थे। कल्याणसिंह ने नवादा गाँव पर आक्रमण कर इन गददारों को उचित दण्ड प्रदान किया, और उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली। नवादा ग्राम की इसघटना से सहायक मजिस्ट्रेट शोर के लिये चेतावनी का कार्य किया और उसे अंग्रेजी राज्य के विरूद्व एक पूर्ण सशस्त्र क्रान्ति के लक्षण दिखाई पडने लगें। 30 मई 1824 को कल्याण सिंह ने रायपुर ग्राम पर आक्रमण कर दिया और रायपुर में अंग्रेज परस्त गददारों को गिरफ्तार कर देहरादून ले गया तथा देहरादून के जिला मुख्यालय के निकट उन्हें कडी सजा दी। कल्याण सिंह के इस चुनौती पूर्ण व्यवहार से सहायक मजिस्ट्रेट शोर बुरी तरह बौखला गया स्थिति की गम्भीरता को देखते हुये उसने सिरमोर बटालियन बुला ली। कल्याण सिंह के फौजी दस्ते की ताकत सिरमौर बटालियन से काफी कम थी अतः कल्याण सिंह ने देहरादून क्षेत्र छोड दिया, और उसके स्थान पर सहारनपुर, ज्वालापुर और करतापुर को अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र बनाया। 7 सितम्बर सन 1824 को करतापुर पुलिस चैकी को नष्ट कर हथियार जब्त कर लियो। पांच दिन पश्चात उसने भगवानपुर पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। सहारनपुर के ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट ग्रिन्डल ने घटना की जांच के आदेश कर दिये। जांच में क्रान्तिकारी गतिविधियों के कुंजा के किले से संचालित होने का तथ्य प्रकाश में आया। अब ग्रिन्डल ने विजय सिंह के नाम सम्मन जारी कर दिया, जिस पर विजयसिंह ने ध्यान नहीं दिया और निर्णायक युद्व की तैयारी आरम्भ कर दी। <ref>https://www.livehindustan.com/uttarakhand/roorki/story-need-for-revision-of-history-of-freedom-revolution-2437578.html</ref>
 
एक अक्टूबर सन् 1824 को आधुनिक शस्त्रों से सुसज्जित 200 पुलिस रक्षकों की कडी सुरक्षा में सरकारी खजाना ज्वालापुर से सहारनपुर जा रहा था। कल्याण सिंह के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने काला हाथा नामक स्थान पर इस पुलिस दल पर हमला कर दिया। युद्व में अंग्रेजी पुलिस बुरी तरह परास्त हुई और खजाना छोड कर भाग गयी। अब विजय सिंह और कल्याण सिंह ने एक स्वदेशी राज्य की घोषणा कर दी और अपने नये राज्य को स्थिर करने के लिए अनेक फरमान जारी किये। रायपुर सहित बहुत से गाँवो ने राजस्व देना स्वीकार कर लिया चारो ओर आजादी की हवा चलने लगी और अंग्रेजी राज्य इस क्षेत्र से सिमटता प्रतीत होने लगा। कल्याण सिंह ने स्वतन्त्रता संग्राम को नवीन शक्ति प्रदान करने के उददेश्य से सहारनपुर जेल में बन्द स्वतन्त्रता सेनानियों को जेल तोडकर मुक्त करने की योजना बनायी। उसने सहारनपुर शहर पर भी हमला कर उसे अंग्रेजी राज से आजाद कराने का फैसला किया।
 
क्रान्तिकारियों की इस कार्य योजना से अंग्रेजी प्रशासन चिन्तित हो उठा, और बाहर से भारी सेना बुला ली गयी। कैप्टन यंग को ब्रिटिश सेना की कमान सौपी गयी। अंग्रेजी सेना शीघ्र ही कुंजा के निकट सिकन्दरपुर पहुँच गयी। राजा विजय सिंह ने किले के भीतर और कल्याण सिंह ने किले के बाहर मोर्चा सम्भाला। किले में भारतीयों के पास दो तोपे थी। कैप्टन यंग के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना जिसमें मुख्यतः गोरखे थे, कुंजा के काफी निकट आ चुकी थी। 03 अक्टूबर को ब्रिटिश सेना ने अचानक हमला कर स्वतन्तत्रा सेनानियों को चैका दिया। भारतीयों ने स्थिति पर नियन्त्रण पाते हुए जमीन पर लेटकर मोर्चा सम्भाल लिये और जवाबी कार्यवाही शुरू कर दी। भयंकर युद्व छिड गया, दुर्भाग्यवंश इस संघर्ष में लडने वाले स्वतन्त्रता सेनानियों का सबसे बहादुर योदा कल्याण सिंह अंग्रेजों के इस पहले ही हमले मे शहीद हो गया पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुंजा में लडे जा रहे स्वतन्त्रता संग्राम का समाचार जंगल की आग के समान तीव्र गति से फैल गया, मेरठ की बहसूमा और दादरी रियासत के राजा भी अपनी सेनाओं के साथ गुप्त रूप से कुंजा के लिए कूच कर गये। बागपत और मुंजफ्फरनगर के आस-पास बसे चौहान गोत्र के कल्सियान गुर्जर किसान भी भारी मात्रा में इस स्वतन्त्रता संग्राम में राजा विजयसिंह की मदद के लिये निकल पडे। अंग्रेजो को जब इस हलचल का पता लगा तो उनके पैरों के नीचे की जमीन निकल गयी। उन्हौनें बडी चालाकी से कार्य किया और कल्याण सिंह के मारे जाने का समाचार पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैला दिया। साथ ही कुंजा के किले के पतन और स्वतन्त्रता सैनानियों की हार की झूठी अफवाह भी उडा दी। अंग्रेजों की चाल सफल रही। अफवाहों से प्रभावित होकर अन्य क्षेत्रों से आने वाले स्वतन्त्रता सेनानी हतोत्साहित हो गये, और निराश होकर अपने क्षेत्रों को लौट गये। अंग्रेजों ने एक रैम को सुधार कर तोप का काम लिया। और बमबारी प्रारम्भ कर दी। अंग्रेजो ने तोप से किले को उडाने का प्रयास किया। किले की दीवार कच्ची मिटटी की बनी थी जिस पर तोप के गोले विशेष प्रभाव न डाल सकें। परन्तु अन्त में तोप से किले के दरवाजे को तोड दिया गया। अब अंग्रेजों की गोरखा सेना किले में घुसने में सफल हो गयी। दोनो ओर से भीषण युद्व हुआ। सहायक मजिस्ट्रेट मि0 शोर युद्व में बुरी तरह से घायल हो गया। परन्तु विजय श्री अन्ततः अंग्रेजों को प्राप्त हुई। राजा विजय सिंह बहादुरी से लडते हुए शहीद हो गये।<ref>http://uttarakhandreport.com/archives/2468</ref>
 
भारतीयों की हार की वजह मुख्यतः आधुनिक हथियारों की कमी थी, वे अधिकांशतः तलवार, भाले बन्दूकों जैसे हथियारों से लडे। जबकि ब्रिटिश सेना के पास उस समय की आधुनिक रायफल (303 बोर) और कारबाइने थी। इस पर भी भारतीय बडी बहादुरी से लडे, और उन्हौनें आखिरी सांस तक अंग्रेजो का मुकाबला किया। ब्रिटिश सरकार के आकडों के अनुसार 152 स्वतन्त्रता सेनानी शहीद हुए, 129 जख्मी हुए और 40 गिरफ्तार किये गये। लेकिन वास्तविकता में शहीदों की संख्या काफी अधिक थी। <ref>https://www.amarujala.com/uttarakhand/roorkee/roorkee-can-become-tourist-center-if-new-government-takes-initiative</ref><ref>http://www.dainikroorkee.com/archives/1300</ref>भारतीय क्रान्तिकारियों की शहादत से भी अंग्रेजी सेना का दिल नहीं भरा। ओर युद्व के बाद उन्हौने कुंजा के किले की दिवारों को भी गिरा दिया। ब्रिटिश सेना विजय उत्सव मनाती हुई देहरादून पहुँची, वह अपने साथ क्रान्तिकारियों की दो तोपें, कल्याण सिंह का सिंर ओर विजय सिंह का वक्षस्थल भी ले गयें। ये तोपे देहरादून के परेडस्थल पर रख दी गयी। भारतीयों को आंतकित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने राजा विजय सिंह का वक्षस्थल और कल्याणसिंह का सिर एक लोहे के पिजरे में रखकर देहरादून जेल के फाटक पर लटका दिया। कल्याण सिंह के युद्व की प्रारम्भिक अवस्था में ही शहादत के कारण क्रान्ति अपने शैशव काल में ही समाप्त हो गयी। कैप्टन यंग ने कुंजा के युद्व के बाद स्वीकार किया था कि यदि इस विद्रोह को तीव्र गति से न दबवाया गया होता, तो दो दिन के समय में ही इस युद्व को हजारों अन्य लोगों का समर्थन प्राप्त हो जाता। और यह विद्रोह समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश में फैल जाता। <ref> Janitihas, Dr.Sushil Bhati</ref> <ref>https://www.youngisthan.in/hindi/gurjar-andolan-1824-42900</ref>
 
== युद्ध का प्रारम्भ ==
विद्रोह प्रारम्भ होने के कई महीनो पहले से तनाव का वातावरण बन गया था और कई विद्रोहजनक घटनायें घटीं। क्रान्ति की शूरूआत 10 मई 1857 को मेरठ मे हुई जब मेरठ की सदर कोतवाली मे तैनात कोतवाल धनसिंह गुर्जर ने अपनी योजना के अनुसार देर रात २ बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ाकर जेल को आग लगा दी। धनसिंह गुर्जर के आहवान पर उनके अपने गांव पांचली सहित गांव नंगला, गगोल, नूरनगर, लिसाड़ी, चुड़ियाला, डोलना आदि गांवों के हजारों लोग सदर कोतवाली में एकत्र हो गए। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया।
 
=== 1857 की क्रान्ति के जनक - अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर ===
ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को भी मृत्यु दंड दे दिया गया और उसे भी २२ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी। सारी रेजीमेण्ट को समाप्त कर दिया गया और सिपाहियों को निकाल दिया गया। सिपाही शेख पलटु की पदोन्नति कर बंगाल सेना में ज़मीदार बना दिया गया।
[[कोतवाल धनसिंह गुर्जर]]
 
[[File:KotwalDhanSinghGurjarMeerut.jpg|thumb|कमिशनरी चौक, [[मेरठ]] में विद्यमान कोतवल धन सिंह गुर्जर की प्रतिमा]]
अन्य रेजीमेण्ट के सिपाहियों को यह दंड बहुत ही कठोर लगा। कई ईतिहासकारों के अनुसार रेजीमेण्ट को समाप्त करने और सिपाहियों को बाहर निकालने ने विद्रोह के प्रारम्भ होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, असंतुष्ट सिपाही बदला लेने की इच्छा के साथ अवध लौटे और विद्रोह ने उन्हें यह अवसर दे दिया।
 
इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति का प्रारम्भ/आरम्भ ”10 मई 1857“ को ”मेरठ“ में हुआ था और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है
अप्रैल के महीने में [[आगरा]], [[इलाहाबाद]] और [[अंबाला]] शहरों में भी आगजनी की घटनायें हुयीं।
उस दिन मेरठ में धनसिंह के नेतृत्व में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। धन सिंह कोतवाल जनता के सम्पर्क में थे, धनसिंह का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में भारतीय क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। विद्रोह की खबर मिलते ही आस-पास के गांव के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह पुलिस चीफ के पद पर थे। 10 मई 1857 को धन सिंह ने की योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया।
और धन सिंह के नेतृत्व में देर रात २ बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ाकर जेल को आग लगा दी। छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था सब नष्ट कर चुकी थी। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया।
इस क्रान्ति के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने धन सिंह को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, और सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गुर्जर है इसलिए उसने गुर्जरो की भीड को नहीं रोका और उन्हे खुला संरक्षण दिया।
इसके बाद घनसिंह को गिरफ्तार कर मेरठ के एक चौराहे पर फाँसी पर लटका दिया गया
1857 की क्रान्ति की शुरूआत धन सिंह कोतवाल ने की अतः इसलिए 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते है।
मेरठ की पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः 4 बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपों से हमला किया। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनको कैद कर फांसी की सजा दे दी गई। आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक "स्वाधीनता आन्दोलन" और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता।
 
=== मेरठ और दिल्ली ===
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कर दिया गया, अधिकतर सिपाहियों को १० वर्ष के कठोर कारावास का दंड सुनाया गया। ११ सिपाही जिनकी आयु कुछ कम थी उन्हें ५ वर्ष का
दंड सुनाया हया। बंदी सिपाहियों को बेडि़यों में बाँधकर और वर्दी उतार कर सेना के सामने परेड़ कराई गयी। इसके लिये बंदी सिपाहियों ने
अपने साथी सैनिकों को समर्थन न करने के लिये भी दोषी ठहराया। सबसे ज्यदा योगदान कोतवाल [[धन सिंहसिन्ह गुर्जर]] का था यहाँ कमान उनके हाथ में रही।
अगला दिन [[रविवार]] का था, इस दिन अधिकतर [[ईसाई]] आराम और पूजा करते थे। कुछ भारतीय सिपाहियों ने ब्रितानी अफ़सरों को, बंदी सिपाहियों को जबरन छुड़ाने की योजना का समाचार दिया, परंतु बड़े अधिकारियों ने इस पर कोइ ध्यान नहीं दिया। मेरठ शहर में भी अशान्ति फ़ैली हुयी थी। बाज़ार में
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=== दिल्ली ===
[[चित्र:"Capture of the King of Delhi by Captain Hodson".jpg|thumb|left|कैप्टन हडसन के द्वारा दिल्ली के राजा को बंदी बनाया जाना]]
 
* मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर।
1857 ई0 क्रान्ति मे दिल्ली के आसपास के गुर्जर अपनी ऐतिहासिक परम्परा के अनुसार विदेशी हकूमत से टकराने के लिये उतावले हो गये थे । दिल्ली के चारों ओर बसे हुए तंवर, चपराने, कसाने, बैंसले, विधुड़ी, अवाने खारी, बासटटे, लोहमोड़, बैसाख तथा डेढ़िये वंशों के गुर्जर संगठित होकर अंग्रेंजी हकूमत को भारत से खदेड़ने और दिल्ली के मुगल बादशाह [[बहादुरशाह जफर]] को पुनः भारत का सम्राट बनाने के लिए प्राणपण से जुट गये थे <ref>विघ्नेष त्यागी, मेरठ के ऐतिहासिक क्रान्ति स्थल और घटनाएं (लेख), दैनिक जागरण, मेरठ, दिनांक 5 मई 2007</ref> गुर्जरो ने शेरशाहपुरी मार्ग मथुरा रोड़ यमुना नदी के दोनों किनारों के साथ-साथ अधिकार करके अंग्रेंजी सरकार के डाक, तार तथा संचार साधन काट कर कुछ समय के लिए दिल्ली अंग्रेंजी राज समाप्त कर दिया था। दिल्ली के गुर्जरों ने मालगुजारी बहादुरशाह जफर मुगल बादशाह को देनी शुरू कर दी थी। <ref>शिव कुमार गोयल, ऐसे शुरू हुई मेरठ में क्रान्ति (लेख)दैनिक प्रभात, मेरठ, दिनांक 10 मई 2007।</ref>
* [[बख्त खान]] की महत्वपू़र्ण भुमिका।
दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में गुर्जरों ने दिल्ली के मेटकाफ हाउस को कब्जे में ले लिया । जो अंग्रेंजों का निवास स्थान था, यहां पर सैनिक व सिविलियम उच्च अधिकारी अपने परिवारों सहित रहा करते थे । जैसे ही क्रान्ति की लहर मेरठ से दिल्ली पहुंची, दिल्ली के गुर्जरों में भी वह जंगल की आग की तरफ फैल गई । दिल्ली के मेटकाफ हाउस में जो अंग्रेंज बच्चे और महिलायें उनको जीवनदान देकर गुर्जरों ने अपनी उच्च परम्परा का परिचय दिया था। महिलाओं और बच्चों को मारना पाप समझ कर उन्होने जीवित छोड़ दिया था और मेटकाफ हाउस पर अधिकार कर लिया ।दयाराम गुर्जर के नेतृत्व में दिल्ली के समीप [[वजीराबाद]] जो अंग्रेंजों का गोला बारूद का जखीरा था उस पर अधिकार करके बहादुरशाह जफर के हवाले कर दिया जिसमें एक लाख रू0 की बन्दूके थी। इसी तरह अंग्रेंजी सेना की 16 गाड़ियां 7 जून 1857 को रास्ते में जाती हुई रोक कर उनको अपने कब्जे में लेकर मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को लाल किले में जा कर भेंट कर दी थी।
<ref>एरिक स्ट्रोक, पीजेन्ट आम्र्ड</ref>
विलियम म्योर के इन्टेलिजेन्स रिकार्ड के अनुसार, गुर्जरों ने अंग्रेंजों के अलावा उन लोगों को भी नुकसान पहुंचाया जो अंग्रेजों का साथ दे रहे थे। 1857 की क्रान्ति के दमन चक्र के दौरान चन्द्रावल गांव को जला कर खाक कर दिया गया था सभी स्त्री पुरूषों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया था। क्रान्तिकारियो पर मेटकाफ हाउस और वजीराबाद के शस्त्रागार को लूटने का गंभीर आरोप था । अंग्रेजों को मारने का तो आरोप था ही। <ref>Intelligence Record of William myor</ref>
 
इंडियन एम्पायर क लेखक मार्टिन्स ने दिल्ली के गुर्जरों के 1857 के क्रान्ति में भाग लेने पर लिखा है, मेरठ से जो सवार दिल्ली आए थे, वे संख्या में अधिक नहीं थे । दिल्ली की साधारण जनता ने यहा तक मजदूरों ने भी इनका साथ दिया पर इस समय दिल्ली के चारों ओर की बस्तियों में फैले गुर्जर विद्रोहियों के साथ हो गए। <ref>Indian Empire, Martins</ref> इसी प्रकार 38वीं बिग्रेड के कमाण्डर ने लिखा है हमारी सबसे अधिक दुर्गति दिल्ली के गुर्जरों ने की है।<ref>British Commander of 38th Brigade, 1857 </ref> सरजान वैलफोर ने भी लिखा है ’चारों ओर के गुर्जरों के गांव 50 वर्ष तक शांत रहने के पश्चात एकदम बिगड़ रहे और मेरठ से गदर होने के चन्द घंटों के भीतर उन्होने तमाम जिलों को लूट लिया । यदि कोई महत्वपूर्ण अधिकारी उनके गांवों में शरण के लिए गया तो उसे नहीं छोड़ा और खुले आम बगावत कर दी। <ref>sir john Welfare, British India</ref>
 
=== हापुड ===
1857 की क्रांति में हापुड के ग्रामीणों ने भी क्रांतिकारियों का साथ दिया। 1857 में भदौला गाँव के चौधरी कन्हैया सिंह गुर्जर तथा चौधरी फूल सिंह गुर्जर के नेतृत्व में यहाँ के ग्रामीणों ने ब्रितानियों का विरोध किया। कहा जाता है कि यहाँ ब्रितानियों को अत्यधिक परेशान किया गया तथा क्रांतिकारियों ने अनेक ब्रितानियों को मौत के घाट उतार दिया।<ref>शिव कुमार गोयल, ऐसे शुरू हुई मेरठ में क्रान्ति (लेख)दैनिक प्रभात, मेरठ, दिनांक 10 मई 2007।</ref> परिणामतः यहाँ के विप्लव का दमन करने के लिए ब्रितानियों ने सैनिक टुकड़ी को भेजा गया। ग्रामीणों को पहले ही इसकी जानकारी मिल गयी थी। उन्होंने ब्रिटिश सेना का सामना करने की योजना बनायी परन्तु भयंकर संघर्ष के पश्चात् उन्हें पीछे हटने के लिए मजूबर होना पड़ा। अनेक क्रांतिकारी ग्रामीणों का कत्ल किया गया। भदौला गाँव को बागी गाँव घोषित करके सम्पूर्ण जायदाद जब्त कर ली गयी। इस विषय में सरकारी दस्तावेज में लिखा है कि-'बाबत, बगावत जायदाद जब्त की जाती है, जिसकी मालगुजारी की जिम्मेदार सरकार की होगी।' ब्रितानियों की सुनिश्चित कार्यवाही के पश्चात् ही भदौला गाँव के विप्लव का दमन हो सका।
 
=== बुलन्दशहर ===
 
स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर आजादी मिलने तक बुलंदशहर ने आजादी की लड़ाई में पूरे दम-खम से भाग लिया। [[धन सिंह गुर्जर|कोतवाल धनसिंह गुर्जर]] के नेतृत्व मे मेरठ से 10 मई 1857 को देश की आजादी की प्रथम जंग शुरू हुई। जिसके बाद बुलंदशहर जिले मे भी गूजरो ने अंग्रेजी सैना पर धावा बोल दिया। यहां अंग्रेजों और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ कई बार युद्ध छिड़ा। विद्रोह देखकर अंग्रेजी सेना भी दहशत में आ गई।
26 सितम्बर, 1857 को कासना-सुरजपुर के बीच उमरावसिंह की अंग्रेजी सैना से भारी टक्कर हुई ।<ref>उमेश त्यागी, 1857 की महाक्रान्ति में गाजियाबाद जनपद (लेख), दी जर्नल आफ मेरठ यूर्निवर्सिटी हिस्ट्री एलमनी, खण्ड 2006, पृष्ठ संख्या 311</ref>
31 मई से 28 सितंबर तक बुलंदशहर अंग्रेजी दासता से मुक्त रहा लेकिन इस बीच कई जमींदार अंग्रेजों से जा मिले। इस वजह से अंग्रेजी सेना को दोबारा से बुलंदशहर में कूच करने का मौका मिल गया। 28 सितंबर को इस बुलंदशहर में आजादी के चाहने वाली सेना और अंग्रेजी सेना में घमासान युद्ध् हुआ। अंग्रेज विजयी हुए और बुलंदशहर पर फिर से अधिकार कर लिया। इसके बाद बुलंदशहर अंग्रेजों के आंख पर चढ़ गया और चुन-चुन कर क्रांतिकारियों का कत्ल किया जाने लगा। दादरी के राजा राव उमरावसिंह गुर्जर समेत आसपास के क्षेत्र के 84 क्रांतिकारियों को [[बुलंदशहर]] के काला आम के पेड पर फांसी लगाई थी। जिससे चलते आज भी बुलंदशहर का '''काला आम''' चौक नाम से चर्चित है।<ref>विघ्नेष त्यागी, मेरठ के ऐतिहासिक क्रान्ति स्थल और घटनाएं (लेख), दैनिक जागरण, मेरठ, दिनांक 5 मई 2007</ref> वर्ष 1857 से 1947 के दौरान काला आम कत्लगाह बना रहा। इस दौरान हजारों क्रांतिकारी को यहां फांसी दी गई।
 
=== फतेहपुर बेरी ===
महरौली से समीप फतेहपुर बेरी के तंवर वंश के गुर्जरों ने अपने नेता '''राव दरगाही गुर्जर''' के नेतृत्व में 1857 क्रान्ति के इस अंग्रेज विरोधी संघर्ष में कूद पड़े थे। जिसके फलस्वरूप अंग्रेंजों ने फतेहपुर बेरी के 12 वर्ष की आयु से उपर के सभी मर्द और औरतों को मौत के घाट उतार दिया गया था। 2 अक्टॅबर 1857 को ब्रिगेडियर जनरल शोवर्स के नेतृत्व में एक 15000 सैनिकों की विशाल सेना व तोपखाना तुगलकाबाद व महरौली क्षेत्र के गांव फतेहपुर बेरी गुडगांव रिवाड़ी व सोहना का दमन करने के लिए भेजी थी।
 
=== लखनऊ ===
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== सन्दर्भ ==
=== टीका-टिप्पणी ===
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== बाहरी कड़ियाँ ==
*[https://www.pravakta.com/dhansingh-gujjar-kotwal-1857-independence-war-leader/ 1857 की क्रान्ति का नायक धनसिंह गुर्जर कोतवाल]
* [http://www.tadbhav.com/issue%2015/1857.htm#mithakaurbirasat १८५७ का मिथक और विरासत : एक पुनर्पाठ] - वीरेन्द्र यादव
*[https://www.jagran.com/uttar-pradesh/ghaziabad-7705857.html मंगल पांडे कभी मेरठ आए ही नही थे]
* [http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/05/070509_spl_1857_dalrymple.shtml 1857: 19वीं सदी का सबसे बड़ा विद्रोह]
*[https://www.patrika.com/meerut-news/martyr-dhan-singh-kotwal-shook-british-rule-now-up-police-remembered-1-3050470/ कोतवाल ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी]
* [http://books.google.co.in/books?id=VS8YdfqBx4kC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false १८५७ : इतिहास, कला, साहित्य] (गूगल पुस्तक ; लेखक - मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, चंचल चौहान)
*[https://inextlive.jagran.com/statue-of-inspiration-will-be-built-in-sadar-police-station-189891 सदर थाने में प्रेरणास्रोत बनेगी कोतवाल धनसिंह गुर्जर की प्रतिमा]
*[http://thepopularindian.com/kotwal-dhan-singh-gurjar-1857-meerut-revolt/ मेरठ का वह कोतवाल जिसने अंग्रेजी जुल्म के खिलाफ क्रांति की पहली मशाल जलाई]
*[https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/meerut/story-up-police-will-learn-the-history-of-dhansingh-kotwal-2049684.html यूपी पुलिस पढ़ेगी शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर का इतिहास]
*[https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/meerut/story-dgp-unveils-statue-of-dhan-singh-kotwal-2048074.html डीजीपी ने किया धन सिंह कोतवाल की प्रतिमा का अनावरण]
*[https://www.policenewsup.com/kotwal-dhan-singh-gurjar-was-a-revolutionary-man-8319 कोतवाल धनसिंह गुर्जर ने अंग्रेजी हुकुमत की जडे हिला दी थी]
*[https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/meerut/itihaas-ke-pano-se-baahar-aaye-dhan-singh-kotvaal इतिहास के पन्नों से बाहर आए धन सिंह कोतवाल]
 
== 1824 के विद्रोह की बाहरी कड़ियाँ ==
*[http://sudarshannews.in/religion/know-about-raja-vijay-singh-ji/ 3 अक्टूबर- 1824 में ही स्वतंत्रता का बिगुल फूंक चुके राजा विजय सिंह गुर्जर को आज ही मिली थी वीरगति. इस युद्ध में खड्ग भी था और ढाल भी]
*[https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/only+news+24-epaper-onlynews/shaury+gatha+1824+me+aajadi+ki+pahali+ladai+me+kunja+bana+kunja+bahadurapur-newsid-94626668 शौर्य गाथा: 1824 में आज़ादी की पहली लड़ाई में कुंजा बना 'कुंजा बहादुरपुर']
*[https://www.livehindustan.com/uttarakhand/roorki/story-need-for-revision-of-history-of-freedom-revolution-2437578.html आजादी की क्रान्ति मे संशोधन की जरूरत]
*[http://www.publicguidetips.com/about-city/जानिए-रूड़की-का-इतिहास/ जानिए रूड़की का इतिहास]
*[https://www.youngisthan.in/hindi/gurjar-andolan-1824-42900 ​तलवार और भालों से किया था गुर्जरों ने बंदूकों का सामना – 1824 का विशाल गुर्जर आंदोलन]
*[http://www.roorkeeweb.com/blog/why-beg-established-in-roorkee/ क्यों की गयी थी रूड़की में छावनी(BEG) की स्थापना]
*[http://uttarakhandreport.com/archives/2468 उपराष्ट्रपति हरिद्वार में शहीदों को करेंगे श्रद्धासुमन अर्पित]
*[https://www.jagran.com/uttarakhand/haridwar-cm-announces-many-plan-the-name-of-martyr-king-vijay-singh-12977722.html शहीद राजा विजय सिंह के नाम पर की कई घोषणाएं]
*[http://uttarainformation.gov.in/news.php?id=13203 शहीद राजा विजय सिंह गुर्जर का इतिहास को उत्तराखंड के माद्यमिक स्कूलो मे मुख्यमंत्री द्वारा शामिल किए जाने कि घोषणा]
 
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