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[[चित्र:Charcoal2.jpg|right|thumb|300px|चारकोल]]
'''लकड़ी का कोयला''', या '''काठकोयला''' या '''चारकोल''' (Charcoal) काला-भूरा, सछिद्र, ठोस पदार्थ है जो लकड़ी, हड्डी आदि को [[ऑक्सीजन|आक्सीजन]] की अनुपस्थिति में गरम करके उसमें से जल एवं अन्य वाष्शील पदार्थों को निकालकर बनाया जाता है। इस क्रिया को "[[ताप-विघटन|उष्माविघटन]]" (Pyrolysis) कहते हैं।
 
चारकोल में कार्बन की उच्च मात्रा (लगभग ८०%) होती है। यह लकड़ी को ४०० °C से 700 °C तक हवा की अनुपस्थिति में गरम करके बनाया जाता है। इसका [[कैलोरीजनन मान]] (calorific value) 29,000 से 35,000 kJ/kg के बीच होता है जो कि लकड़ी के कैलोरीजनन मान (12,000 से 21,000 kJ/kg) से बहुत अधिक है।
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== परिचय ==
हवा की अपर्याप्त मात्रा में लकड़ी जलाने से उड़नशील भाग [[गैस]] के रूप में बाहर निकल जाता है और काली ठोस वस्तु, जिसे '''काठकोयला''' कहते हैं, बच रहती है। यह [[कार्बन]] नामक तत्व का ही एक अशुद्ध रूप है, जिसमें कुछ अन्य तत्व भी अल्प मात्रा में रहते हैं। लकड़ी से इसके भौतिक एवं रासायनिक गुण भिन्न होते हुए भी उस लकड़ी की बनावट इसमें सुरक्षित रह जाती है जिससे यह प्राप्त किया जाता है। सूखी लकड़ी को ३१० डिग्री सें तक तप्त करने पर पहले वह हल्के, तत्पश्चात्‌ गाढ़े भूरे रंग की तथा अंतत: काली और जलने योग्य हो जाती है। इससे अधिक ताप पर काठकोयला प्राप्त होता है। इस उष्माविघटन की क्रिया में कुछ अति उपयोगी वस्तुओं का भी उत्पादन होता है। प्रथमत: जलवाष्प निकलता है, परंतु ताप बढ़ाने पर प्रारंभिक विघटन से [[कार्बन मोनोक्साइड]] और [[कार्बन डाईऑक्साइड|कार्बन डाइआक्साइड]] भी मिलते हैं। अधिक ताप पर [[उष्मक्षेपक क्रिया]] प्रारंभ होती है और [[अलकतरा]] (टार), अम्ल तथा मेथिल ऐल्कोहल इत्यादि का [[आसवन]] होता है और काठकोयला शेष रह जाता है। इस क्रिया के एक बार आरंभ होने पर अभिक्रिया की उष्मा ही कार्बनीकरण की प्रक्रिया को चलाने के लिए पर्याप्त होती है बाहर से उष्पा पहुँचाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
 
== निर्माण ==