"राधेश्याम कथावाचक": अवतरणों में अंतर

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== संक्षिप्त परिचय ==
राधेश्याम का जन्म 25 नवम्बर 1890 को [[संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध]] में [[बरेली]] [[शहर]] के बिहारीपुर मोहल्ले में पण्डित बांकेलाल के यहाँ हुआ था। केवल 17-18 की आयु में ही उन्होंने सहज भाव से ''राधेश्याम रामायण'' की रचना कर ली थी। यह रामायण अपनी मधुर गायन शैली के कारण शहर कस्बे से लेकर गाँव-गाँव और घर-घर आम जनता में इतनी अधिक लोकप्रिय हुई कि उनके जीवनकाल में ही उसकी हिन्दी-उर्दू में कुल मिलाकर पौने दो करोड़ से ज्यादा प्रतियाँ छपकर बिक चुकी थीं। रामकथा वाचन की शैली पर मुग्ध होकर [[मोतीलाल नेहरू]] ने उन्हें [[इलाहाबाद]] अपने निवास पर बुलाकर चालीस दिनों तक कथा सुनी थी। 1922 के [[लाहौर]] विश्व धर्म सम्मेलन का शुभारम्भ उन्ही के लिखे व गाये मंगलाचरण से हुआ था। राधेश्याम कथावाचक ने''महारानी लक्ष्मीबाई'' और ''कृष्ण-सुदामा'' जैसी फिल्मों के लिये गीत भी लिखे। महामना [[मदनमोहन मालवीय]] उनके गुरु थे तो [[पृथ्वीराज कपूर]] अभिन्न मित्र, जबकि [[घनश्यामदास बिड़ला]] उनके परम भक्त थे। स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ [[राजेन्द्र प्रसाद|राजेंद्र प्रसाद]] ने भी उन्हें नई दिल्ली के [[राष्ट्रपति भवन]] में आमन्त्रित कर उनसे पंद्रह दिनों तक रामकथा का आनन्द लिया था। [[काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय|काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] की स्थापना हेतु धन जुटाने महामना जब बरेली पधारे तो राधेश्याम ने उनको अपनी साल भर की कमाई उन्हें दान दे दी थी। 26 अगस्त 1963 को अपनी मृत्यु से पूर्व वे अपनी [[आत्मकथा]] भी ''मेरा नाटककाल'' नाम से लिख गये थे।<ref name="दैनिक ट्रिब्यून"></ref>
 
[[कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स]] में हिन्दी की प्रोफेसर पामेला के अनुसार राधेश्याम कथावाचक ने [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] को एक विशिष्ट शैली की रामायण लिखकर काफी समृद्ध किया। वे इतने सधे हुए [[नाटककार]] थे कि उनके नाटकों पर प्रतिबन्ध लगाने का कोई आधार [[ब्रिटिश राज]] में अंग्रेजों को भी नहीं मिला।<ref name="हिन्दुस्तान लाइव">[http://www.livehindustan.com/news/location/rajwarkhabre/article1-story-0-0-190117.html हिन्दी दिवस 14 सितम्बर को: राधेश्याम कथावाचक] 13 दिसम्बर 2011, [[हिन्दुस्तान लाइव]], अभिगमन तिथि: 27 दिसम्बर 2013</ref>