"महाराणा प्रताप": अवतरणों में अंतर

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==जन्म स्थान==
[https://www.rajgk.in/2020/02/maharana-pratap-ka-itihaas-in-hindi.html महाराणा प्रताप] के जन्मस्थान के प्रश्न पर दो धारणाएँ है। पहला महाराणा प्रताप का जन्म [[कुम्भलगढ़ दुर्ग]] में हुआ था क्योंकि महाराणा उदयसिंह एवम जयवंताबाई का विवाह कुंभलगढ़ महल में हुआ। दूसरी धारणा यह है कि जन्म [[पाली]] के राजमहलों में हुआ। '''[https://www.rajgk.in/2020/02/maharana-pratap-ka-itihaas-in-hindi.html महाराणा प्रताप] की माता का नाम जयवंता बाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी।''' महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। लेखक [[विजय नाहर]] की पुस्तक ''हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप'' के अनुसार जब प्रताप का जन्म हुआ था उस समय उदयसिंह युद्व और असुरक्षा से घिरे हुए थे। कुंभलगढ़ किसी तरह से सुरक्षित नही था। जोधपुर का राजा मालदेव उन दिनों उत्तर भारत मे सबसे शक्तिसम्पन्न था। एवं जयवंता बाई के पिता एवम पाली के शाषक सोनगरा अखेराज मालदेव का एक विश्वसनीय सामन्त एवं सेनानायक था। इस कारण पाली और मारवाड़ हर तरह से सुरक्षित था। अतः जयवंता बाई को पाली भेजा गया। वि. सं. ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया सं 1597 को प्रताप का जन्म पाली मारवाड़ में हुआ। प्रताप के जन्म का शुभ समाचार मिलते ही उदयसिंह की सेना ने प्रयाण प्रारम्भ कर दिया और मावली युद्ध मे बनवीर के विरूद्ध विजय श्री प्राप्त कर चित्तौड़ के सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया।<ref>{{Cite book|author=विजय नाहर|title=हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप|publisher=पिंकसिटी पब्लिशर्स| isbn=978-93-80522-45-6|year=2011|page= 274-278}}</ref><ref>{{cite web|title=महाराणा प्रताप के विषय में भारतीय इतिहास में लिखी भ्रांतियों को दूर करती विजय नाहर की पुस्तक "हिंदुवा सूर्य महाराणा प्रताप" की समीक्षा|url=https://udaipurkiran.in/hindi/1208578/|website=www.udaipurkiran.in|accessdate=9 May 2019}}</ref> भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवत्त अधिकारी देवेंद्र सिंह शक्तावत की पुस्तक ''महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी'' के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म स्थान महाराव के गढ़ के अवशेष जूनि कचहरी पाली में विद्यमान है। यहां सोनागरों की कुलदेवी नागनाची का मंदिर आज भी सुरक्षित है। पुस्तक के अनुसार पुरानी परम्पराओं के अनुसार लड़की का पहला पुत्र अपने पीहर में होता है।<ref>{{cite web|title=एक महान वीर योद्धा – जननायक महाराणा प्रताप – MAHARANA PRATAP|url=http://sahityapreetam.com/blog/eka-maha-na-va-ra-ya-tha-thha-janana-yaka-maha-ra-nae-pa-rata-pa-maharana-pratap|website=www.sahityapreetam.com|accessdate=26 May 2019}}</ref>इतिहासकार अर्जुन सिंह शेखावत के अनुसार महाराणा प्रताप की जन्मपत्रिका पुरानी दिनमान पद्धति से अर्धरात्रि 12/17 से 12/57 के मध्य जन्मसमय से बनी हुई है। 5/51 पलमा पर बनी सूर्योदय 0/0 पर स्पष्ट सूर्य का मालूम होना जरूरी है इससे जन्मकाली इष्ट आ जाती है। यह कुंडली चित्तौड़ या मेवाड़ के किसी स्थान में हुई होती तो प्रातः स्पष्ट सूर्य का राशि अंश कला विक्ला अलग होती। पण्डित द्वारा स्थान कालगणना पुरानी पद्धति से बनी प्रातः सूर्योदय राशि कला विकला पाली के समान है। <ref>{{cite web|title=ननिहाल ही नहीं, प्रताप की जन्मस्थली भी है पाली|url=https://www.bhaskar.com/news/MAT-RAJ-PALI-c-105-300487-NOR.html|website=www.bhaskar.com|accessdate=10 जून 2013}}</ref>डॉ हुकमसिंह भाटी की पुस्तक ''सोनगरा सांचोरा चौहानों का इतिहास'' 1987 एवं इतिहासकार [[मुहता नैणसी]] की पुस्तक [[ख्यात]]''मारवाड़ रा परगना री विगत'' में भी स्पष्ट है "पाली के सुविख्यात ठाकुर अखेराज सोनगरा की कन्या जैवन्ताबाई ने वि. सं. 1597 जेष्ठ सुदी 3 रविवार को सूर्योदय से 47 घड़ी 13 पल गए एक ऐसे देदीप्यमान बालक को जन्म दिया। धन्य है पाली की यह धरा जिसने प्रताप जैसे रत्न को जन्म दिया।"<ref>{{Cite book|author=हुकमसिंह भाटी|title=सोनगरा सांचोरा चौहानों का इतिहास|url=http://ci.nii.ac.jp/ncid/BB06923259|publisher=राजस्थानी ग्रंथागार|year=1987|page=106}}</ref><ref>{{Cite book|author=मुहतां नैणसी|title=मारवाड़ रा परगना री विगत|publisher=राजस्थान प्राच्यविद्या संस्थान, जोधपुर|year=1968|page=486}}</ref>
 
== जीवन ==
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महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में [[राजा मान सिंह|मानसिंह]] (1573 ई. में ), [[भगवानदास]] ( सितम्बर, 1573 ई. में ) तथा [[टोडरमल|राजा टोडरमल]] ( दिसम्बर,1573 ई. ) प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया, इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया जिसके परिणामस्वरूप [[हल्दीघाटी का युद्ध|हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध]] हुआ।
 
===[https://www.rajgk.in/2020/02/maharana-pratap-ka-itihaas-in-hindi.html हल्दीघाटी का युद्ध ]===
{{main|हल्दीघाटी का युद्ध}}
यह युद्ध १८ जून १५७६ ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। भील सेना के सरदार राणा पूंजा भील थे । इस युद्ध में '''''महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे-''''' [[हकीम खाँ सूरी]]।
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इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर एेसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिया थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी। आप इस युद्ध की अधिक गहराई में जानकारी [[हल्दीघाटी का युद्ध]] लेख पर पढ़ सकते हैं।
 
<u>[https://www.rajgk.in/2020/02/maharana-pratap-ka-itihaas-in-hindi.html दिवेेेेर का युुद्ध]</u>
 
राजस्थान के इतिहास 1582 में दिवेर का युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है, क्योंकि इस युद्ध में राणा प्रताप के खोये हुए राज्यों की पुनः प्राप्ती हुई, इसके पश्चात राणा प्रताप व मुगलो के बीच एक लम्बा संघर्ष युद्ध के रुप में घटित हुआ, जिसके कारण कर्नल जेम्स टाॅड ने इस युद्ध को "''मेवाड़ का मैराथन''" कहा |
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1.महाराणा उदय सिंह ने युद्ध की नयी पद्धति -छापा मार युद्ध प्रणाली इजाद की। वे स्वयं तो इसका प्रयोग नहीं कर सके परन्तु महाराणा प्रताप ,महाराणा राज सिंह एवं छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसका सफल प्रयोग करते हुए मुगलों पर सफलता प्राप्त की ।
 
2.[https://www.rajgk.in/2020/02/maharana-pratap-ka-itihaas-in-hindi.html महाराणा प्रताप] मुग़ल सम्राट अकबर से नहीं हारे। उसे एवं उसके सेनापतियो को धुल चटाई । हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप जीते|महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी में पराजित होने के बाद स्वयं अकबर ने जून से दिसंबर 1576 तक तीन बार विशाल सेना के साथ महाराणा पर आक्रमण किए, परंतु महाराणा को खोज नहीं पाए, बल्कि महाराणा के जाल में फंसकर पानी भोजन के अभाव में सेना का विनाश करवा बैठे। थक हारकर अकबर बांसवाड़ा होकर मालवा चला गया। पूरे सात माह मेवाड़ में रहने के बाद भी हाथ मलता अरब चला गया। शाहबाज खान के नेतृत्व में महाराणा के विरुद्ध तीन बार सेना भेजी गई परंतु असफल रहा। उसके बाद अब्दुल रहीम खान-खाना के नेतृत्व में महाराणा के विरुद्ध सेना भिजवाई गई और पीट-पीटाकर लौट गया। 9 वर्ष तक निरंतर अकबर पूरी शक्ति से महाराणा के विरुद्ध आक्रमण करता रहा। नुकसान उठाता रहा अंत में थक हार कर उसने मेवाड़ की और देखना ही छोड़ दिया।<ref>{{cite web|title="हिंदुवा सूर्य महाराणा प्रताप" की समीक्षा|url=https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/udaipur+kiran+hindi-epaper-udaihin/maharana+pratap+ke+vishay+me+bharatiy+itihas+me+likhi+bhrantiyo+ko+dur+karati+vijay+nahar+ki+pustak+hinduva+sury+maharana+pratap+ki+samiksha-newsid-115840604?listname=topicsList&index=0&topicIndex=0&mode=pwa|website=www.m.dailyhunt.in|accessdate=9 May 2019}}</ref>
 
3.ऐसा कुअवसर प्रताप के जीवन में कभी नहीं आया कि उन्हें घांस की रोटी खानी पड़ी अकबर को संधि के लिए पत्र लिखना पड़ा हो। इन्हीं दिनों महाराणा प्रताप ने सुंगा पहाड़ पर एक बावड़ी का निर्माण करवाया और सुंदर बगीचा लगवाया| महाराणा की सेना में एक राजा, तीन राव, सात रावत, 15000 अश्वरोही, 100 हाथी, 20000 पैदल और 100 वाजित्र थे। इतनी बड़ी सेना को खाद्य सहित सभी व्यवस्थाएं महाराणा प्रताप करते थे। फिर ऐसी घटना कैसे हो सकती है कि महाराणा के परिवार को घांस की रोटी खानी पड़ी। अपने उतरार्ध के बारह वर्ष सम्पूर्ण मेवाड़ पर शुशाशन स्थापित करते हुए उन्नत जीवन दिया ।<ref>{{cite web|title=महाराणा प्रताप के विषय में भारतीय इतिहास में लिखी भ्रांतियों को दूर करती विजय नाहर की पुस्तक "हिंदुवा सूर्य महाराणा प्रताप" की समीक्षा|url=https://hindi.dailykiran.com/1103917/|website=www.hindi.dailykiran.com|access-date=9 May 2019}}</ref>