"ग़ज़ल": अवतरणों में अंतर

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== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
दुनिया में कब किसी से संभलती है जिंदगी
 
मुट्ठी की रेत जैसी फ़िसलती है जिंदगी ।।
 
लगता है बढ़ रही है, है ऐसा नहीं मग़र
 
हर लम्हा ईक शमाँ सी पिघलती है जिंदगी।।
 
रोटी, मकान, कपड़ा और कुछ आन-बान हो
 
इस भाग-दौड़ में ही निकलती है जिंदगी।।
 
रहती है हर घड़ी, ये मोहताज़ वक़्त की
 
अपने हिसाब से कहां चलती है जिंदगी।।
 
चाहे नसीब इसको सिकंदर ही बना दे
 
कितना ही ज़र मिले पर मचलती है जिंदगी।।
 
छू आए चाहे जा-कर ये ख़ुद आसमान को
 
सोती है क़ब्र में या फ़िर जलती है जिंदगी।।
 
इक़बाल मेंहदी काज़मी
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ग़ज़ल" से प्राप्त