"मूल मंत्र": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Sri Guru Granth Sahib Nishan.jpg|thumb|230px|[[आदि ग्रन्थ]] का एक अंश जिसपर मूल मंतर दर्ज है]]
[[चित्र:Sikh mulmantar.png|thumb|230px|मूल मन्तर]] इस चित्र पर मिथ्या प्रचार है! अकाल पुरख छवि रहित, सर्व व्यापक है!
'''मूल मंतर''' ([[पंजाबी भाषा|पंजाबी]]: ਮੂਲ ਮੰਤਰ) [[सिख धर्म]] पुस्तक [[आदि ग्रन्थ]] का सर्वप्रथम छंद है जिसमें सिख मान्यताओं को संक्षिप्त रूप में बताया गया है। यह [[गुरु ग्रन्थ साहिब]] में सौ से अधिक बार आया है।<ref name="ref51qulod">[http://books.google.com/books?id=-LOtnxxIGaYC Ik Onkar One God], Simran Kaur Arneja, pp. 12, Rashmi Graphics, ISBN 978-81-8465-093-8, ''... 'Ik Onkar. Satnam. Karta Purakh. Nirbhau. Nirvair. Akaal Moorat. Ajooni. Saibhang. Gurparshaad.' God is only One. His name is True ...''</ref>
अकाल पुरख या परमात्मा जिसे हम सिख वाहेगुरु के नाम से भी उच्चारित करते हैं, छवि रहित है! ना ही इसकी कोई छवि कभी थी, न ही होगी! सनातन छवि कह कर इसे एक रूप देने की मिथ्या कोशिश की जा रही है जबकि सिख धर्म में ईश्वर को सर्व-व्यापक माना जाता है जो घट-घट में विराजमान है! गुरु ग्रन्थ साहिब जी में यह मूल मंत्र कुल 1 बार ही आया है! सिर्फ "इक ओंकार सतिगुरु प्रसादि" ही ५२३ बार धन धन गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज़ हुआ है!
सिख धर्म के प्रसिद्द लिखारी भाई गुरदास जी, जिन्होंने अपने कर कमलों से से धन धन गुरु ग्रन्थ साहिब जी को लिखा, अपनी वार ३९ में मूल मंत्र की व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि, 'इक ओंकार सतिनाम करता पुरख से लेकर नानक होसी भी सच !!' तक मूल मंत्र है! अकाल पुरख का मतलब भी >>>"जो कि समय से परे है, जिस का कोई स्वरुप नहीं है!" रिफरेन्स के लिए पंजाबी का यह ब्लॉग देखें: https://moolmantardasach.blogspot.com/
 
== मंत्र ==
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:कृति करने वाला पुरुष
:निर्भय, द्वेष-रहित
:अकाल मूर्ति= "जो कि समय से परे है, जिस का कोई स्वरुप नहीं है!"(सनातन छवि)
:सैअजन्मा भंग अर्थात स्वयं भू=स्वयंभु (स्वयं से उत्पन्न हुआ)
: गुर प्रसादि= जिसे गुरु -कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता है!
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