"आगम (जैन)": अवतरणों में अंतर

टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 26:
इनमें दृष्टिवाद का पूर्णत: विच्छेद हो चुका है। शेष ग्यारह अंगों का भी बहुत सा अंग विच्छिन्न हो चुका है।
 
=== अंगबाह्मअंगबाह्य ===
इसके अतिरिक्त जितने आगम हैं वे सब अंगबाह्मअंगबाह्य हैं; क्योंकि अंगप्रविष्ट केवल गणधरकृत आगम ही माने जाते हैं। गणधरों के अतिरिक्त श्रुत केवलीश्रुतकेवली, पुर्वधरपूर्वधर आदि ज्ञानी पुरुषों द्वारा रचित आगम अंगबाह्मअंगबाह्य माना जाता है।
 
आगमों की मान्यता के विषय में भिन्न-भिन्न परंपराएँ हैं। दिगंबर आम्नाय में मानते हैं कि आगम का बहुभाग लुप्त हो चुका है। श्वेतांबर आम्नाय में एक परंपरा 84 आगम मानती है, एक परंपरा उपर्युक्त 45 आगमों को आगम के रूप में स्वीकार करती है तथा एक परंपरा महानिशीथ ओषनिर्युक्ति, पिंडनिर्युक्ति तथा 10 प्रकीर्ण सूत्रों को छोड़कर शेष 32 को स्वीकार करती है।
 
इसका मूल कारण ये हैं कि श्वेताम्बर परंपरा अनुसार आचार्य देवर्धिगनीक्षमादेवर्धिगणि श्रमणक्षमाश्रमण ने 84 आगमों को लिपिबद्ध किया था, किन्तु समय के साथ कई आगम स्वतः नष्ट हो गए, कुछ मुग़ल शासकों के राज में नष्ट कर दिए गए एवं कई आगम इतने प्रभावशाली थे की उनके स्मरण से देवतागण आ जाते थे, अतः ऐसी विद्या के दुरूपयोग से बचने हेतु गीतार्थ साधुओं ने उसे भंडारस्थ कर दिया।
 
== विषय के आधार पर आगमों का वर्गीकरण ==