"आगम (जैन)": अवतरणों में अंतर
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इनमें दृष्टिवाद का पूर्णत: विच्छेद हो चुका है। शेष ग्यारह अंगों का भी बहुत सा अंग विच्छिन्न हो चुका है।
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इसके अतिरिक्त जितने आगम हैं वे सब
आगमों की मान्यता के विषय में भिन्न-भिन्न परंपराएँ हैं। दिगंबर आम्नाय में मानते हैं कि आगम का बहुभाग लुप्त हो चुका है। श्वेतांबर आम्नाय में एक परंपरा 84 आगम मानती है, एक परंपरा उपर्युक्त 45 आगमों को आगम के रूप में स्वीकार करती है तथा एक परंपरा महानिशीथ ओषनिर्युक्ति, पिंडनिर्युक्ति तथा 10 प्रकीर्ण सूत्रों को छोड़कर शेष 32 को स्वीकार करती है।
इसका मूल कारण ये हैं कि श्वेताम्बर परंपरा अनुसार आचार्य
== विषय के आधार पर आगमों का वर्गीकरण ==
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