"आगम (जैन)": अवतरणों में अंतर
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[[File:Jinvani.jpg|thumb|जिनवाणी (श्रुत ज्ञान)]]
'''आगम''' शब्द का प्रयोग [[जैन धर्म]] के मूल ग्रंथों के लिए किया जाता है। [[केवल ज्ञान]],
आगम शब्द का उपयोग जैन दर्शन में साहित्य के लिए किया जाता है। श्रुत, सूत्र, सुतं, ग्रन्थ, सिद्धांत, देशना, प्रज्ञापना, उपदेश, आप्त वचन, जिन वचन, ऐतिह्य, आम्नाय आदि सभी आगम के [[पर्यायवाची]] शब्द है। आगम शब्द "आ" [[उपसर्ग]] और गम [[धातु]] से निष्पन्न हुआ है। 'आ' उपसर्ग का अर्थ समन्तात अर्थात पूर्ण और गम धातु का अर्थ गति प्राप्त है अर्थात जिससे वस्तु तत्त्व (पदार्थ के रहस्य) का पूर्ण ज्ञान हो वह आगम है अथवा ये भी कहा जा सकता है कि आप्त पुरुष ([[अरिहंत]], [[तीर्थंकर]] या [[केवली]]) जिनेश्वर रूप में जो ज्ञान का उपदेश देते है उन शब्दों को गणधर (उनके प्रमुख शिष्य) जिनकी लिपि बद्ध रूप में रचना करते है उन सूत्रों को आगम कहते है।
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