"विक्रम संवत": अवतरणों में अंतर
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'''विक्रम संवत्''' भारतीय पञ्चाङ्ग में समय गणना की प्रणाली का नाम है। यह सम्वत ५७ ई. पू.( मालवा के राजा विक्रम ने गुजरात से शकों को पराजित कर के उनका शासन समाप्त किया और राजा विक्रम ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की और विक्रम सम्वत शुरू किया) मे आरम्भ होती है। इसके प्रणेता प्राचीन नेपाल के लिच्छवि राजा विक्रमादित्य (जिसको धर्मपाल और
यह संवत् ५७ ई.पू. आरम्भ होता है (विक्रमी संवत् = ईस्वी सन् + ५७) । इस संवत् का आरम्भ [[गुजरात]] में [[कार्तिक]] शुक्ल [[प्रतिपदा]] से और उत्तरी भारत में [[चैत्र]] शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब [[सूर्य]] व [[चन्द्रमा|चंद्रमा]] की गति पर रखा जाता है। यह बारह [[राशियाँ]] बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस [[राशियाँ|राशि]] में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। [[पूर्णिमा]] के दिन, चंद्रमा जिस [[नक्षत्र]] में होता है, उसी आधार पर [[मास|महीनों]] का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से ११ दिन ३ घटी ४८ पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक ३ वर्ष में इसमें १ महीना जोड़ दिया जाता है ([[अधिक मास|अधिमास]], देखें)।
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| [[आषाढ़]]
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| [[श्रावण]]
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| [[भाद्रपद]]
| पूर्वाभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद
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| [[अश्विनीकुमार (पौराणिक पात्र)|आश्विन]]
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| [[कार्तिक]]
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| [[मार्गशीर्ष]]
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| [[पौष]]
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| [[माघ]]
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| [[फाल्गुन]]
| पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त
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