"भगवान": अवतरणों में अंतर
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भ = भूमि, ग = गगन, व = वायु, अ = अग्नि, न = नीर
इन्हीं पंचतत्वों का जीव मैं, जाग्रत अवस्था के साथ, प्रमाणित होना या करना ही भगवान् हैं । प्रमाणित है कि ये पंचतत्व जीव को हमेशा कुछ न कुछ किसी न किसी रूप मैं देते ही हैं, उसके बदले मैं हम इन्हें कुछ नहीं देते, प्रकृति मैं जो कुछ भी है सब इन्ही पंचतत्वों की देन ही है,ये भगवान् हमारे अंदर समाहित हैं और हम इनमें समाहित हैं इन पंचतत्वों की शक्तियों का अनुमान लगाना भी अकल्पनीय है, हर एक तत्त्व दुसरे पर भारी है, हमारे गृह पर मिट्टी जो हमें इतना सब देती है इससे तीन गुना बड़ा जल का आकार है, जल, थल और आकाश मैं,चारों और वायु ही विधमान है, आग अपने जोश मैं हो तो पानी को वाष्प बना दे, यदि पानी अपने जोश मैं तो ज्वालामुखी को कुछ क्षणों मैं ठंडा कर दे, आकाश मैं हमारी पृथ्वी जैसे अनगिनत बिंदु हैं,यही सब भगवान् हैं प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि, इनका उपयोग करते समय, इनकी शक्तियों और उपयोगिता को ध्यान मैं रखकर इनके प्रति पूजा और सम्मान का भाव उत्पन्न करें, जैसे हमारी सनातन संस्कृति मैं होता आया है,इन्हीं पंचतत्वों को सम्मान देने की हमारी आध्यात्मिक क्रिया को धर्म कहते हैं, धर्म के विषय मैं और अधिक जानकारी के लिए, आप हमारी वेबसाइट <
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