"कांशीराम": अवतरणों में अंतर

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कांशीराम (15 मार्च 1934 - 9 अक्टूबर 2006), जिन्हें युगपुरुष, बहुजन नायक या साहेब के नाम से भी जाना जाता है. एक भारतीय राजनेता और समाज सुधारक थे, जिन्होंने बहुजन, अति पिछड़ों के उत्थान और राजनीतिक गोलबंदी के लिए काम किया था। भारत में जाति व्यवस्था के निचले हिस्से में अछूत समूहों सहित निम्न जाति के लोगों (ScSC, StST, OBC और साथ ही अल्पसंख्यक) में बहुजनों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए कार्य किया|
 
मान्यवर कांशीराम जी, बाबा साहब के भाषण सुनते तो उनसे प्रेरित होकर मान्यवर कांशीराम जी अपने समाज की ओर अग्रसर हुए और फिर मान्यवर कांशीराम जी ने 1971 में भारत पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ (BAMCEF), 6 दिसंबर 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DS-4) की स्थापना की, और 1984 में [[बहुजन समाज पार्टी|बहुजन समाज पार्टी (BSP)]] की स्थापना की थी, और बाद में इसी पार्टी ने [[मायावती|बहन मायावती]] के नेतृत्व में देश के सबसे बड़े राज्य [[उत्तर प्रदेश]] में बहुजन समाज पार्टी की ४ बार सरकार बनाई थी|
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वह 1989 में पूर्वी दिल्ली (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से लोक सभा चुनाव लडे और चौथे स्थान पर रहे. सन 1991 में, कांशीराम और मुलायम सिंह ने गठबंधन किया और कांशीराम ने इटावा से चुनाव लड़ने का फैसला किया, कांशीराम ने अपने निकटतम भाजपा प्रतिद्वंद्वी को 20,000 मतों से हराया और पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया. इसके बाद कांशीराम ने 1996 में होशियारपुर [16] से 11वीं लोकसभा का चुनाव जीता और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे. अपने ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने 2001 में सार्वजनिक रूप से मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था.
 
'''बौद्ध धर्म ग्रहण करने की मंशा [संपादित स्रोत]'''
 
सन 2002 में, कांशीराम जी ने 14 अक्टूबर 2006 को डॉक्टर आम्बेडकर के धर्म परिवर्तन की 50 वीं वर्षगांठ [17] के मौके पर बौद्ध धर्म ग्रहण करने की अपनी मंशा की घोषणा की थी. कांशीराम जी की मंशा थी कि उनके साथ उनके 5 करोड़ समर्थक भी इसी समय धर्म परिवर्तन करें. उनकी धर्म परिवर्तन की इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह थी कि उनके समर्थकों को केवल अछूत [18] ही शामिल नहीं थे बल्कि विभिन्न जातियों के लोग भी शामिल थे, जो भारत में बौद्ध धर्म के समर्थन को व्यापक रूप से बढ़ा सकते थे. हालांकि, 9 अक्टूबर 2006 को उनका निधन हो गया और उनकी बौद्ध धर्म ग्रहण करने की मंशा अधूरी रह गयी.[19]
 
मायावती ने कहा कि उन्होंने और कांशीराम साहब ने तय किया था कि हम बौद्ध धर्म तभी ग्रहण करेंगे जब केंद्र में 'पूर्ण बहुमत' की सरकार बनायेंगे. हम ऐसा इसलिए करना चाहते थे क्योंकि हम धर्म बदलकर देश में धार्मिक बदलाव तभी ला सकते थे जब जब हमारे हाथ में सत्ता हो और हमारे साथ करोड़ों लोग एक साथ धर्म बदलें . यदि हम बिना सत्ता पर कब्ज़ा किये धर्म बदल लेंगे तो हमारे साथ कोई नहीं खड़ा होगा और केवल 'हम दोनों' का ही धर्म बदलेगा हमारे लोगों का नहीं, इससे समाज में किसी तरह के धार्मिक क्रांति की लहर नहीं उठेगी.[20]
 
'''मृत्यु [स्रोत संपादित करें]'''
 
कांशीराम जी मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्ति थे. उन्हें 1994 में दिल का दौरा पड़ा, 1995 में उनके मस्तिष्क में एक धमनी का थक्का और 2003 में एक लकवाग्रस्त स्ट्रोक हुआ था. [21] 72 वर्ष की आयु में गंभीर दिल के दौरे के कारण 9 अक्टूबर 2006 को नई दिल्ली में उनका निधन हो गया। [22] वह लगभग दो वर्षों से अधिक समय से बिस्तर पर थे। [२३] उनकी इच्छाओं के अनुसार, [२४] उनका अंतिम संस्कार बौद्ध परंपरा के अनुसार किया गया, जिसमें मायावती ने चिता को जलाया। [25] उनकी राख को एक कलश में रखा गया और प्रेरणा स्टाल में रखा गया है, जहाँ उनके लाखों चाहने वाले श्रद्धा सुमन अर्पित करने जाते हैं.[26]
 
अपने शोक संदेश में, भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कांशीराम जी को "हमारे समय के महानतम समाज सुधारकों में से एक के रूप में वर्णित किया था.उन्होंने कहा कि उनके   राजनीतिक विचारों और आंदोलनों ने भारतीय राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया है. उन्हें सामाजिक परिवर्तन की बड़ी समझ थी. हमारे समाज के विभिन्न वंचित वर्गों को एकजुट करने और एक राजनीतिक मंच प्रदान करने में सक्षम बनाया था जहां उनकी आवाज सुनी जाती है." कांशीराम के नेतृत्व में, बीएसपी ने 1999 के संघीय चुनावों में 14 संसदीय सीटें जीतीं थीं. [27]
 
'''पुस्तकें [स्रोत संपादित करें]'''
 
सन 1982 में, कांशीराम ने "द चमचा युग" (The Era of the Stooges) नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने दलित नेताओं के लिए चमचा (stooge) शब्द का इस्तेमाल किया था. उन्होंने कहा कि '''ये दलित लीडर केवल अपने निजी फायदे के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस जैसे दलों के साथ मिलकर राजनीति करते हैं. उन्होंने रामविलास पासवान, राम दस अठावले और जगजीवन राम जैसे नेताओं को सवर्ण पार्टियों, इंडियन नेशनल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का चमचा कहा था.'''
 
उनकी पुस्तक बर्थ ऑफ़ BAMCEF भी प्रकाशित हुई थी. [27] उनकी जीवनी, कांशीराम: दलितों के नेता, बद्री नारायण तिवारी द्वारा लिखी गई थी. [28][29]. कांशीराम के भाषणों को एक किताब के रूप में अनुज कुमार द्वारा संकलित किया गया है इसका नाम है; "बहुजन नायक कांशीराम के अविस्मरणीय भाषण".इसके अलावा कांशीराम साहब के लेखन और भाषण को एस. एस. गौतम ने संकलित किया था जबकि कांशीराम द्वारा लिखे गए सम्पादकीय बहुजन समाज पब्लिकेशन ने 1997 में प्रकाशित किया था.
 
अंत में यह कहा जा सकता है कि ''भारत में अम्बेद्करबाद [30]अगर जिन्दा है तो इसका पूरा श्रेय सिर्फ कांशीराम को ही जाता है'' उन्होंने डॉक्टर आंबेडकर की मृत्यु के बहुजन आन्दोलनों में पैदा हुए शून्य को ख़त्म करके बहुजन आन्दोलन को फिर से जीवित किया था.
 
==इन्हें भी देखें==