"तैमूरलंग": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Das Reich Timur-i Lenks (1365-1405).GIF|right|thumb|300px|तैमूर का राज्य]]
[[चित्र:Timur Golden Horde campaign.jpg|right|thumb|300px|तैमूर का सुनहरे क्षेत्र (गोल्डेन होर्ड) पर आक्रमण]]
तैमूर का जन्म सन्‌ 1336 में ट्रांस-आक्सियाना (Transoxiana), ट्रांस आमू और सर नदियों के बीच का प्रदेश, मावराउन्नहर, में केश या शहर-ए-सब्ज नामक स्थान में हुआ था। उसके पिता ने [[इस्लाम]] कबूल कर लिया था। अत: तैमूर भी इस्लाम का कट्टर अनुयायी हुआ। वह बहुत ही प्रतिभावान्‌ और महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। महान्‌ मंगोल विजेता [[चंगेज़ ख़ान|चंगेज खाँ]] की तरह वह भी समस्त संसार को अपनी शक्ति से रौंद डालना चाहता था और [[सिकंदर]] की तरह विश्वविजय की कामना रखता था।<ref>{{Cite web|url=http://hindi.webdunia.com/indian-history-and-culture/timur-lang-history-in-hindi-116122100048_1.html|title=तैमूर लंग क्रूर लुटेरा और चोर था, जानिए भारत पर किए अत्याचार की कहानी|last=Webdunia|website=hindi.webdunia.com|language=hi|access-date=2020-05-17}}</ref>

सन्‌ 1369 में समरकंद के मंगोल शासक के मर जाने पर उसने समरकंद की गद्दी पर कब्जा कर लिया और इसके बाद उसने पूरी शक्ति के साथ दिग्विजय का कार्य प्रारंभ कर दिया। चंगेज खाँ की पद्धति पर ही उसने अपनी सैनिक व्यवस्था कायम की और चंगेज की तरह ही उसने क्रूरता और निष्ठुरता के साथ दूर-दूर के देशों पर आक्रमण कर उन्हें तहस नहस किया। 1380 और 1387 के बीच उसने खुरासान, सीस्तान, अफगानिस्तान, फारस, अजरबैजान और कुर्दीस्तान आदि पर आक्रमण कर उन्हें अपने अधीन किया। 1393 में उसने बगदाद को लेकर मेसोपोटामिया पर आधिपत्य स्थापित किया। इन विजयों से उत्साहित होकर अब उसने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय किया। उसके अमीर और सरदार प्रारंभ में भारत जैसे दूरस्थ देश पर आक्रमण के लिये तैयार नहीं थे, लेकिन जब उसने इस्लाम धर्म के प्रचार के हेतु भारत में प्रचलित मूर्तिपूजा का विध्वंस करना अपना पवित्र ध्येय घोषित किया, तोजिसके उसकेबाद अमीर और सरदार भारत पर आक्रमण के लिये राजी हो गए।
 
मूर्तिपूजा का विध्वंस तो आक्रमण का बहाना मात्र था। वस्तुत: वह भारत के स्वर्ण से आकृष्ट हुआ। भारत की महान्‌ समृद्धि और वैभव के बारे में उसने बहुत कुछ बातें सुन रखी थीं। अत: भारत की दौलत लूटने के लिये ही उसने आक्रमण की योजना बनाई थी। उसे आक्रमण का बहाना ढूँढ़ने की अवश्यकता भी नहीं महसूस हुई। उस समय [[दिल्ली]] की तुगलुक सल्तनत [[फ़िरोज़ शाह तुग़लक़|फिरोजशाह]] के निर्बल उत्तराधिकारियों के कारण शोचनीय अवस्था में थी। भारत की इस राजनीतिक दुर्बलता ने तैमूर को भारत पर आक्रमण करने का स्वयं सुअवसर प्रदान दिया।
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1398 के प्रारंभ में तैमूर ने पहले अपने एक पोते पीर मोहम्मद को भारत पर आक्रमण के लिये रवाना किया। उसने [[मुल्तान|मुलतान]] पर घेरा डाला और छ: महीने बाद उसपर अधिकार कर लिया।
 
अप्रैल 1398 में तैमूर स्वयं एक भारी सेना लेकर [[समरक़न्द|समरकंद]] से [[भारत]] के लिये रवाना हुआ और सितंबर में उसने [[सिन्धु नदी|सिंधु]], [[झेलम नदी|झेलम]] तथा [[रावी नदी|रावी]] को पार किया। 13 अक्टूबर को वह मुलतान से 70 मील उत्तर-पूरब में स्थित तुलुंबा नगर पहुँचा। उसने इस नगर को लूटा और वहाँ के बहुत से निवासियों को कत्ल किया तथा बहुतों को गुलाम बनाया। फिर मुलतान और भटनेर पर कब्जा किया। वहाँ हिंदुओं के अनेक मंदिर नष्ट कर डाले। [[हनुमानगढ़|भटनेर]] से वह आगे बढ़ा और मार्ग के अनेक स्थानों को लूटता-खसोटता और निवासियों को कत्ल तथा कैद करता हुआ दिसंबर के प्रथम सप्ताह के अंत में दिल्ली के निकट पहुँच गया। यहाँ पर उसने एक लाख हिंदू कैदियों को कत्ल करवाया।

[[पानीपत]] के पास निर्बल तुगलक [[महमूद तुग़लक़|सुल्तान महमूद]] ने 17 दिसम्बर को 40,000 पैदल 10,000 अश्वारोही और 120 हाथियों की एक विशाल सेना लेकर तैमूर का मुकाबिला किया लेकिन बुरी तरह पराजित हुआ। भयभीत होकर तुगलक सुल्तान महमूद [[गुजरात]] की तरफ चला गया और उसका वजीर मल्लू इकबाल भागकर बारन में जा छिपा।
 
दूसरे दिन तैमूर ने दिल्ली नगर में प्रवेश किया। पाँच दिनों तक सारा शहर बुरी तरह से लूटा-खसोटा गया और उसके अभागे निवासियों को बेभाव कत्ल किया गया या बंदी बनाया गया। पीढ़ियों से संचित दिल्ली की दौलत तैमूर लूटकर समरकंद ले गया। अनेक बंदी बनाई गई औरतों और शिल्पियों को भी तैमूर अपने साथ ले गया। भारत से जो कारीगर वह अपने साथ ले गया उनसे उसने समरकंद में अनेक इमारतें बनवाईं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध उसकी स्वनियोजित जामा मस्जिद है।
 
तैमूर भारत में केवल लूट के लिये आया था। उसकी इच्छा भारत में रहकर राज्य करने की नहीं थी। अत: 15 दिन दिल्ली में रुकने के बाद वह स्वदेश के लिये रवाना हो गया। 9 जनवरी 1399 को उसने [[मेरठ]] पर चढ़ाई की और नगर को लूटा तथा निवासियों को कत्ल किया। इसके बाद वह [[हरिद्वार]] पहुँचा जहाँ उसको आस पास की हिंदुओं की सेनाओं ने हराया। [[शिवालिक]] पहाड़ियों से होकर वह 16 जनवरी को [[काँगड़ा|कांगड़ा]] पहुँचा और उसपर कब्जा किया। इसके बाद उसने [[जम्मू]] पर चढ़ाई की। इन स्थानों को भी लूटा खसोटा गया और वहाँ के असंख्य निवासियों को कत्ल किया गया। इस प्रकार भारत के जीवन, धन और संपत्ति को अपार क्षति पहुँचाने के बाद 19 मार्च 1399 को पुन: सिंधु नदी को पार कर वह भारतभूमि से अपने देश को लौट गया।
 
भारत से लौटने के बाद तैमूर से सन्‌ 1400 में [[आनातोलिया|अनातोलिया]] पर आक्रमण किया और 1402 में [[अंगोरा का युद्ध|अंगोरा के युद्ध]] में ऑटोमन तुर्कों को बुरी तरह से पराजित किया। सन्‌ 1405 में जब वह [[चीन]] की विजय की योजना बनाने में लगा था, उसकी मृत्यु हो गई।
 
== क्रूर ==
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1399 ई. में तैमूर का भारत पर भयानक आक्रमण हुआ। अपनी जीवनी 'तुजुके तैमुरी' में वह [[क़ुरआन|कुरान]] की इस आयत से ही प्रारंभ करता है 'ऐ पैगम्बर काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सखती बरतो।' वह आगे भारत पर अपने आक्रमण का कारण बताते हुए लिखता है-
 
:''<blockquote>हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा ध्येय काफिर हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना है (जिससे) [[इस्लाम]] की सेना को भी हिन्दुओं की दौलत और मूल्यवान वस्तुएँ मिल जायें।''</blockquote>
 
[[कश्मीर|काश्मीर]] की सीमा पर कटोर नामी दुर्ग पर आक्रमण हुआ। उसने तमाम पुरुषों को कत्ल और स्त्रियों और बच्चों को कैद करने का आदेश दिया। फिर उन हठी काफिरों के सिरों के मीनार खड़े करने के आदेश दिये। फिर भटनेर के दुर्ग पर घेरा डाला गया। वहाँ के राजपूतों ने कुछ युद्ध के बाद हार मान ली और उन्हें क्षमादान दे दिया गया। किन्तु उनके असवाधान होते ही उन पर आक्रमण कर दिया गया। तैमूर अपनी जीवनी में लिखता है कि 'थोड़े ही समय में दुर्ग के तमाम लोग तलवार के घाट उतार दिये गये। घंटे भर में 10,000 (दस हजार) लोगों के सिर काटे गये। इस्लाम की तलवार ने काफिरों के रक्त में स्नान किया। उनके सरोसामान, खजाने और अनाज को भी, जो वर्षों से दुर्ग में इकट्‌ठा किया गया था, मेरे सिपाहियों ने लूट लिया। मकानों में आग लगा कर राख कर दिया। इमारतों और दुर्ग को भूमिसात कर दिया गया।
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दिल्ली के पास लोनी हिन्दू नगर था। किन्तु कुछ मुसलमान भी बंदियों में थे। तैमूर ने आदेश दिया कि मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी हिन्दू बंदी इस्लाम की तलवार के घाट उतार दिये जायें। इस समय तक उसके पास हिन्दू बंदियों की संख्या एक लाख हो गयी थी। जब यमुना पार कर दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी हो रही थी उसके साथ के अमीरों ने उससे कहा कि इन बंदियों को कैम्प में नहीं छोड़ा जा सकता और इन इस्लाम के शत्रुओं को स्वतंत्र कर देना भी युद्ध के नियमों के विरुद्ध होगा। तैमूर लिखता है-
 
:''<blockquote>इसलिये उन लोगों को सिवाय तलवार का भोजन बनाने के कोई मार्ग नहीं था। मैंने कैम्प में घोषणा करवा दी कि तमाम बंदी कत्ल कर दिये जायें और इस आदेश के पालन में जो भी लापरवाही करे उसे भी कत्ल कर दिया जाये और उसकी सम्पत्ति सूचना देने वाले को दे दी जाये। जब इस्लाम के गाजियों (काफिरों का कत्ल करने वालों को आदर सूचक नाम) को यह आदेश मिला तो उन्होंने तलवारें सूत लीं और अपने बंदियों को कत्ल कर दिया। उस दिन एक लाख अपवित्र मूर्ति-पूजककाफिर कत्ल कर दिये गये।''</blockquote>
 
तुगलक बादशाह को हराकर तैमूर ने दिल्ली में प्रवेश किया। उसे पता लगा कि आस-पास के देहातों से भागकर हिन्दुओं ने बड़ी संख्या में अपने स्त्री-बच्चों तथा मूल्यवान वस्तुओं के साथ दिल्ली में शरण ली हुई हैं। उसने अपने सिपाहियों को इन हिन्दुओं को उनकी संपत्ति समेत पकड़ लेने के आदेश दिये।तुगलक वंश के अंतिम शासक नासिरूद्दीन महमूद के समय(1394-1414ई•) सन् 1398 ई मे तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया यह आक्रमण तुगलक वंश के लिए घातक सिद्ध हुआ । जिससे तुगलक वंश का सर्वनाश हो गया।
 
== मृत्यु ==
भारत से लौटने के बाद तैमूर सेने सन्‌ 1400 में [[आनातोलिया|अनातोलिया]] पर आक्रमण किया और 1402 में [[अंगोरा का युद्ध|अंगोरा के युद्ध]] में ऑटोमन तुर्कों को बुरी तरह से पराजित किया। सन्‌ 1405 में जब वह [[चीन]] की विजय की योजना बनाने में लगा था, उस समय उसकी मृत्यु साधारण जुखाम से हो गई।<ref>{{Cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/international/2012/12/121205_tamerlane_disabled_pk|title=अपाहिज थे तैमूरलंग, लेकिन जीता जहां|website=BBC News हिंदी|language=hi|access-date=2020-05-17}}</ref>
 
तैमूर लंग की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली के वायसराय ने कर देना बंद कर दिया, जिसके बाद वह स्वयं स्वतंत्र शासक बन गया। तैमूर लंग का पुत्र दिल्ली का राज्य लेना चाहता था तो उसे नहीं दिया। [[बाबर]] तैमूरलंग का तीसरा पोता था। बाबर का पुत्र हुमायूं हुआ, हुमायूं का अकबर, अकबर का जहांगीर, जहांगीर का शाहजहां, शाहजहां का पुत्र औरंगज़ेब हुआ। इन सात पीढ़ियों ने भारत पर राज्य किया। इतिहास गवाह है कि औरंगज़ेब के बाद राज्य टुकड़ों में बँट गया।<ref>{{Cite web|url=https://news.jagatgururampalji.org/taimur-lang-hindi-story/|title=Hindi Stories (हिंदी कहानियाँ): तैमूर लंग को सात पीढ़ी का राज कैसे मिला?|date=2020-01-14|website=S A NEWS|language=en-US|access-date=2020-05-17}}</ref>
 
==सन्दर्भ==