"शब-ए-क़द्र": अवतरणों में अंतर

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{{इस्लामी संस्कृति}}
'''शब-ए-क़द्र''' (''अंग्रेजी: [[:en:Laylat al-Qadr|Laylat al-Qadr]], उर्दू: شب قدر) या '''लैलतुल-क़द्र''' [[मुसलमान|मुस्लिम]] समुदाय [[रमज़ान]] के पवित्र महीने की एक रात को कहते हैं। उस रात की विशेषता मुस्लिम मान्यता के अनुसार [[क़ुरआन|कुरान]] की आयतों का पृथ्वी पर [[जिब्रील]] जिबरील नाम के [[फ़रिश्ता|फ़रिशते]] के ज़रिए पैगम्बर [[मुहम्मद]] पर अवतरण (नाज़िल) होना शुरू हुआ था। यह रात आम तौर से 27 [[रमज़ान]] मानी जाती है जिसमें मुसलमान जागते हैं और अपने पापों के लिए अल्लाह से क्षमा माँगते हैं।<ref>''Dr.Muhammad Nayef Lau Sulayman'' mentioned in the holy book of almighty, Allah said about Sohuf: Indeed, this Qur'an guides to that which is most suitable and gives good tidings to the believers who do righteous deeds that they will have a great reward. Qur'an V17:09</ref><br>इस रात की निश्चित पहचान ना होने के कारण आस्थावान मुसलमान लगातार दस दिनों तक उपासना करने के लिए [[एतिकाफ़]] अर्थात दस दिनों तक लगातार मस्जिद में रहकर इबादत करते हैं।<br>
====शब ए क़द्र अर्थ एवं नामकरन ====
* शबे क़द्र<ref>{{cite journal |title=लैलतुल क़द्र को किस तरह जागा जाये |url=https://islamhouse.com/hi/fatwa/320979/}}</ref> के नाम से उर्दू, हिंदी और फ़ारसी में प्रसिद्ध ये रात इस्लाम में 'सर्वश्रेष्ट रात' अपने असल अरबी भाषा में लैलतुल-क़द्र का अर्थ क़दर और ताज़ीम (सम्मान,शान) वाली रात है. लैल का अर्थ "रात" और क़द्र का अर्थ "महान", अर्थात जो भी इस रात जाग कर इबादत (उपासना) करेगा वो क़दर-ओ-शान वाला होगा।<br>