"रानी लक्ष्मीबाई": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Ranilaxmibai-1.JPG|200px|left|thumb|रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा]]
 
इतिहासकारों में इनके जन्म को लेके बहुत मतभेद हैं| कुछ इतिहासकारों का मानना है की रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 18 नवम्बर 1828 मैं हुआ था और कुछ का मानना है की इनका जन्म 28 नवम्बर 1828 मैं हुआ था| परन्तु इनका जन्म कभी भी हुआ हो वो इनके एतिहासिक महत्व को कम नहीं कर सकता है| अगर हम रानी लक्ष्मीबाई के जीवन का और गहरा अध्यन करें तो हमे पता चलेगा की रानी लक्ष्मीबाई वास्तव में मोरोपंत तांबे और भागीरथी बाई की पुत्री थी हीं नहीं क्योंकि कई इतिहासकारों का एसा मानना है की एक बार जब मोरोपंत तांबे काशी (बनारस) के घाट पे पूजा कर रहे थे तब उन्हें रानी लक्ष्मीबाई मिली थी, जिनका नाम उन्होंने मणिकर्णिका रखा था और बिठुर के पेशवा उन्हें मनु बुलाते थे| रानी लक्ष्मीबाई के पिता काशी के उच्च न्यायलय में मुख्य न्यायाधीश थे और बिठुर के पेशवा उनके पुराने मित्र थे| क्योंकि रानी लक्ष्मीबाई के पिता एक उच्च पद पर थे इसलिए उनकी शिक्षा आदि दूसरी कन्यों से अलग थी| उन्होंने घुड़सवारी, तलवारबाजी आदि युद्ध कलाओं की भी शिक्षा ली थी| रानी लक्ष्मी बाई में बचपन से ही स्वाधीनता की मशाल धड़कती थी, क्योंकि इन्होने अंग्रेजों का अत्याचार देखा था| पर उसके विरुद्ध वो कुछ कर नहीं पातीं थी| पर कुछ करने का मौका उन्हें जल्दी ही मिलने वाला था| आईये तो जानते हैं की किस प्रकार रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी मैं तय हुआ| उसके पूर्व यह जान लेना उचित है की झाँसी पर मराठा हुकूमत कैसे स्थापित हुई थी| पूर्व समय में झाँसी बुंदेलखंड का हिस्सा था| जब पेशवा बाजीराव प्रथम ने छत्रसाल बुंदेला की सहायता की थी मोहम्द बंगश के विरुद्ध तब उन्होंने अपनी पुत्री मस्तानी का हाथ बाजीराव को सोंप दिया था| उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी वसीयत के अनुसार बुंदेलखंड के तीन हिस्से हुए थे| उसमें उत्तर का हिस्सा जिसकी सालाना आय 1 करोड़ थी उन्होंने बाजीराव के नाम कर दिया था| इसके बाद बाजीराव ने अपनी मृत्य के पूर्व उस हिस्से की जिसकी आय 1 करोड़ थी दो और हिस्से किये जिसमें सालाना 80 लाख आये वाला हिस्सा उन्होंने मस्तानी के पुत्र शमशेर बहादुर को दिया और बचा 20 लाख वाला हिस्सा मराठा साम्राज्य को दिया| पानीपत के युद्ध के बाद शमशेर बहादुर (युद्ध मैं शमसेर बहादुर की मृत्यु हो गयी) का हिस्सा मराठा साम्राज्य में मिल गया और इस हिस्से की रक्षा के लिए पेशवा बाजीराव द्वित्य ने इसे नेवलेकर राजघराने को सोंप दिया| इसी राजघराने में गंगाधर राव का जन्म 1797 मैं हुआ था| रानी लक्ष्मीबाई और महाराज गंगाधर राव की उम्र में बहुत बड़ा अंतर था| कई इतिहासकारों की मानें तो गंगाधर राव का पूर्व समय में भी एक विवाह हो चुका था परन्तु किसी कारण वश उनकी पहली पत्नी की मृत्यु हो गयी और उनकी माँ के आग्रह पर उनके दुसरे विवाह की तयारी हुई| गंगाधर राव कड़हाडे ब्राह्मण थे इसलिए उनका विवाह भी इसी कड़हाडे ब्राह्मण समाज मैं ही हो सकता था| उधर लक्ष्मी बाई भी 14 वर्ष की हो गयी थी और उनके लिए भी योग्य वर की तलाश की जा रही थी| लक्ष्मीबाई भी कड़हाडे ब्राह्मण थी इसलिए उनका विवाह भी कड़हाडे ब्राह्मण समाज मैं ही हो सकता था| बिठुर के पेशवा झाँसी के भी मित्र थे और मोरोपंत तांबे के भी, दोनों ने ही अपने अपनी संतानों के लिए पुरा उत्तर छान लिया था पर कोई कड़हाडे ब्राह्मण नहीं मिला था फिर एक दिन दोनों एक ही समय पर संजोग से बिठुर के पेशवा के यहाँ मिले और बिठुर के पेशवा नारायराव द्वित्य ने दोनों का परिचय करवाया और दोनों की तरफ से शादी का प्रस्ताव रखा गया और इस तरह से 14 वर्ष की छोटी सी उम्र मैं लक्ष्मीबाई का विवाह तय हुआ| उस समय मान्यता थी की अगर किसी कन्या का विवाह 10 से 15 वर्ष के बीच में ना हो तो उसके यहाँ जन्म लेने वाली 42 पीढ़ी नर्क में जाएँगी| इस तरह से 19 मई 1842 को लक्ष्मीबाई का विवाह संपन हुआ| शादी के दौरान ही उन्हें लक्ष्मीबाई नाम मिला था| शादी के पूर्व उनका नाम मणिकर्णिका था| उस समय यह रिवाज़ था की शादी के बाद राजघराने में बहु को एक नया नाम दिया जाता था| यहाँ से प्रारंभ होता है झाँसी की रानी यानि लक्ष्मीबाई के जीवन का दूसरा अध्याय| हम जिस समय की बात कर रहें हैं उस समय भारत के अधिकांश भूभाग पर अंग्रेजों का शासन था| अब आप सोच रहे होंगे की मैं यह क्या बोल रहा हूँ अंग्रेजों का तो पूरे भारत पर राज था| यह सत्य नही है, अंग्रेज यह कहते थे क्योंकि उनका दिल्ली पर राज था| इसके अलावा तत्कालीन राजस्थान, कर्णाटक, नेपाल और भारत के पूर्व राज्यों से उन्हें सालों के युद्ध के पश्चात् संधि करनी पड़ी थी| परन्तु झाँसी में एसा नहीं था| 1818 मैं तीसरे अंगोल-मराठा युद्ध में मराठों की हार के बाद अधिकांश भारत पे अंग्रेजों का शासन था| झाँसी ने अपने आप को बचाने के लिए अंग्रेजों से कुछ शर्तों पर संधि की थीं| पर अंग्रेज हुकूमत इस संधि से खुश नहीं थी, वो झाँसी पे पूर्ण अधिकार चाहती थी| फिर सन 1848 मैं जनरल डलहौजी भारत के नये गवर्नर जनरल बने और उन्होंने चूक का सिधान्त नाम की नीती अपनाई जिसे डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स भी कहते हैं और इसके अनुसार अगर कोई राजा जो बिना पुत्र के मृत्यु को प्राप्त होता है उसका राज्य अंग्रेज शासन के पास चला जाये गा| ऐसा ही झाँसी के साथ भी हुआ| सन 1851 मैं मात्र 4 माह की उम्र में उनके(रानी लक्ष्मीबाई) पुत्र की मृत्यु हो गयी, परन्तु झाँसी अभी अंग्रेजों के अधिपत्य में नहीं गयी थी क्योंकि अभी महाराज गंगाधर राव जीवीत थे| उनका एक भाई भी था जिसका नाम था शिवराव| उसको दो जुड़वा पुत्रों की प्राप्ति हुई थी| उसने अपने भाई के राज्य को बचाने के लिए अपने एक पुत्र को अपने बड़े भाई को देने का सोचा| इसके पीछे उसका अपना कोई भी स्वार्थ नहीं था| मैं ऐसा इस इए लिख रहा हूँ क्योंकि 2019 मैं प्रकाशित फिल्म मणिकर्णिका में बताया गया था की इसके पीछे उसका स्वार्थ था और रानी लक्ष्मी बाई किसी और मंत्री के पुत्र को अपना लेती हैं| ऐसा नहीं था शिवराव एक देशभक्त थे पर उनके बारे में इतिहास मैं कोई जानकारी नहीं मिलती है| यह सारी घटना अंग्रेजों से छुप के हुई थी पर किसी व्यक्ति ने यह सारी बातें अंग्रेजों को बता दीन थी| पर अंग्रेजों ने कुछ न किया वो तो किसी मौके की तलाश मैं थे| उन्हें यह मौका 17 नवम्बर 1853  मैं मिला जब एक रात अचानक ही झाँसी नरेश गंगाधर नेवलकर की मृत्यु हो गयी और झाँसी के ऊपर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिए अंग्रेजों के पास अब सब रस्ते खुले थे|[2]
लक्ष्मीबाई का जन्म [[वाराणसी]] में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा [[बाजीराव द्वितीय]] के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली।<ref>{{cite web|url= http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/kbhu_v06.htm|title=काशी की विभूतियाँ|archive-date=4 अक्टूबर 2009|format= एचटीएम|publisher=टीडिल|language=|archive-url=https://web.archive.org/web/20091004114117/http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/kbhu_v06.htm}}</ref> सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद [[२१ नवम्बर|21 नवम्बर]] [[१८५३|1853]] को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
 
[[ब्रिटिश राज|ब्रितानी राज]] ने अपनी [[व्यपगत का सिद्धान्त|राज्य हड़प नीति]] के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणामस्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।