"फ़रीदुद्दीन गंजशकर": अवतरणों में अंतर

→‎जीवनी: उनके वंशजों में से एक प्रसिद्ध सूफी विद्वान मुहिबुल्लाह इलाहाबादी (1587-1648) थे
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वे [[योगी|योगियों]] के संपर्क में भी आए और संभवत: उनसे स्थानीय भाषा में विचारों का आदान प्रदान होता था। कहा जाता है कि बाबा ने अपने चेलों के लिए [[हिंदी]] में जिक्र (जाप) का भी अनुवाद किया। [[सियरुल औलिया]] के लेखक अमीर खुर्द ने बाबा द्वारा रचित [[मुल्तानी भाषा]] के एक दोहे का भी उल्लेख किया है। गुरु ग्रंथ साहब में शेख फरीद के ११२ 'सलोक' उद्धृत हैं। यद्यपि विषय वही है जिनपर बाबा प्राय: वार्तालाप किया करते थे, तथापि वे बाबा फरीद के किसी चेले की, जो बाबा [[गुरु नानक|नानक]] के संपर्क में आया, रचना ज्ञात होते हैं। इसी प्रकार फवाउबुस्सालेकीन, अस्रारुख औलिया एवं राहतुल कूल्ब नामक ग्रंथ भी बाबा फरीद की रचना नहीं हैं। बाबा फरीद के शिष्यों में हजरत अलाउद्दीन अली आहमद साबिर कलियरी और हजरत निजामुद्दीन औलिया को अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। वास्तव में बाबा फरीद के आध्यात्मिक एवं नैतिक प्रभाव के कारण उनके समकालीनों को इस्लाम के समझाने में बड़ी सुविधा हुई।
 
बाबा फरीद देहान्त १२६५ ई. में हुआ। बाबा फरीद का मज़ार [[पाकपट्टन|पाकपट्टन शरीफ]] ([[पाकिस्तान]]) में है। वर्तमान समय में भारत के [[पंजाब (भारत)|पंजाब]] प्रांत में स्थित [[फरीदकोट]] शहर का नाम बाबा फरीद पर ही रखा गया था।
उनके वंशजों में से एक प्रसिद्ध सूफी विद्वान [[मुहिबउल्लाह इलाहाबादी]] (1587-1648) थे
 
== कुछ रचनाएँ ==