"शिरडी साईं बाबा": अवतरणों में अंतर

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== सन्दर्भ ==
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साई बाबा का बहिष्कार क्यों?
इस लॉकडाउन समय मे DD भारती पर "रामानंद सागर कृत" साईबाबा सीरियल देखा जिसमे साईबाबा का चरित्र, जीवनशैली और उनके उपदेश देखे व सुने उसमे मुझे कहीं भी साईबाबा के चरित्र में इस्लामीकरण नही दिखा, हो सकता है साई मुस्लिम समुदाय से हो पर जब उनमे चेतना आयी, जब वह साईबाबा बने तब उनका चरित्र पूर्णतः सनातनी हो गया, साईबाबा का सादा स्वभाव, उत्तम चरित्र, श्री राम जनोमोत्सव मनाना, जन्मोत्सव पर तेल न मिलने पर श्री राम में आस्था से पानी से दीपक जलाना आदि आदि कई ऐसे तथ्य दिखाये गए हैं, जो साईबाबा को चेतना आने पर सनातनी योगी बनाता है।
तो हम क्यों नही उन्हें अपनाते,
आज कई हिन्दुओं की आस्था है साईबाबा में, साईबाबा भी ईश्वर अंश की तरह अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
 
इन तथ्यों पर भी विचार करें!!!
 
आज शिरडी में साईबाबा का मंदिर है, न कि मज़्ज़िद!
आज शिरडी में साईबाबा मंदिर में साईबाबा की मूर्ति है!
आज शिरडी में साईबाबा मूर्ति पर सनातनी सभ्यता के अनुसार तिलक लगाया जाता है !
आज शिरडी में साईबाबा मूर्ति पर सनातनी सभ्यता के अनुसार जनेऊ पहनाया जाता है !
आज शिरडी में साईबाबा मूर्ति पर सनातनी सभ्यता के अनुसार रुद्राक्ष की माला पहनाई जाती है!
आज शिरडी में साईबाबा मूर्ति पर सनातनी सभ्यता के अनुसार आरती, प्रसाद, संध्यावंदन आदि किया जाता है!
ऐंसे कई सबूत जो साईबाबा हो सनातनी साबित करते हैं।
 
साईबाबा की चेतना के बाद हिन्दू धर्म मे बापसी हो चुकी है, अब जो उनके विरोधी है वह भी अपने मन मे उनकी घरवापसी करें और उनको सनातनी माने!
 
वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है, जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एवं कुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
 
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् |
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ||
॥ (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्‍लोक ७१) ॥
 
अर्थ - यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।
 
पूरी दुनिया सनातनी कुटुम्ब है,
ओर साईबाबा तो चेतना के बाद से ही सनातनी कुटुम्ब के हो गए।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==