"बरेली का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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अंग्रेजी निशान उतार फेंककर बरेली में स्वतंत्रता का हरित ध्वज फहराते ही नेटिव तोपखाने के मुख्य सूबेदार बख्त खान ने सारी नेटिव सेना का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।<ref name = "अमर उजाला खान बहादुर" /> फिर उन्होंने अंतिम रुहेला शासक [[हाफ़िज़ रहमत खान]] के पोते, [[खान बहादुर खान]] के नाम का जयघोष करके दिल्ली के बादशाह के सूबेदार की हैसियत से रुहेलखंड का शासन भी अपने हाथ में लिया। बरलेी में स्थित यूरोपियनों के घर-द्वारो को जलाकर, लूटकर भस्म करने के बाद फिर कैद किए गए यूरोपियनों को खानबहादुर ने अपने सामने बुलवायां और उनकी जांच के लिए एक कोर्ट नियुक्त किया। इन अपराधियों में बदायूँ प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर के दामाद- डाॅ ‘हे’, बरेली के सरकारी काॅलेज के प्रिंसिपल डाॅ. कर्सन और बरेली के जिला मजिस्ट्रेट भी थे। अलग-अलग आरोपों के कारण इन सभी को फांसी का दंड सुनाया गया और छह यूरोपियन लोगों को तुरंत फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस तरह अपना सिंहासन पक्का जमाने के बाद खान बहादुर ने सारा रुहेलखंड स्वतंत्र होने का समाचार दिल्ली भेजा और फिर बख्त खान के नेतृत्व में सभी सैनिक दिल्ली की ओर चल दिए। विद्रोह के सफल होने के बाद पहली जून को विजय जुलूस निकाला गया और कोतवाली के समीप एक ऊंचे चबूतरे पर खान बहादुर खान को बैठाकर उनकी ताजपोशी की गई, और जनता की उपस्थिति में उन्हें बरेली का नवाब घोषित कर दिया गया।<ref name = "अमर उजाला खान बहादुर">{{cite news |title=जब खान बहादुर खां ने बजाया था क्रांति का बिगुल |url=https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/bareilly/Bareilly-98594-120 |accessdate=22 जनवरी 2020 |publisher=अमर उजाला}}</ref> इसके बाद खानबहादुर ने सारा रुहेलखंड स्वतंत्र हो जाने का समाचार दिल्ली भेजा। ११ माह तक बरेली आजाद रहा। इस अवधि के दौरान खान बहादुर खां ने शोभाराम को अपना दीवान बनाया,<ref name = "अमर उजाला खान बहादुर" /> १ जून १८५७ को बरेली में फौज का गठन किया गया, और स्वतंत्र शासक के रूप में बरेली से चांदी के सिक्के जारी किए।
 
=== प्रशासनिक परिषद ===
नवाब घोषित होने के बाद खान बहादुर खान ने एक प्रशासनिक परिषद की नियुक्ति की, जो उन्हें सरकारी काम-काज में सलाह दे सके। इस परिषद के मुख्य कार्यों में सरकार द्वारा पालन की जाने वाली नीतियों का निर्धारण और मुख्य अधिकारियों की नियुक्ति थी। परिषद के सदस्यों में शोभा राम (दीवान), अहमद शाह खान और मुबारक शाह शामिल थे, जो बरेली के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में थे। यह प्रशासनिक परिषद रुहेलखण्ड में अनंतिम सरकार की अवधि तक कार्यरत रही। करों के आकलन तथा आपराधिक या अन्य मामलों के परीक्षण आदि के लिए अलग-अलग समितियाँ थीं, जिनमें मुख्यतः उस वर्ग या समुदाय के पुरुष शामिल थे, जिनके कि उन समितियों के निर्णयों से प्रभावित होने की सबसे अधिक संभावना थी।<ref name="Usmani"> Usmani, M. S. “A NOTE ON THE PROVISIONAL REVOLUTIONARY GOVERNMENT OF ROHILKHAND 1857-58.” Proceedings of the Indian History Congress, vol. 43, 1982, pp. 618–624., www.jstor.org/stable/44141297. Accessed 26 May 2020. </ref>
 
=== पराजय ===
१३ मई १८५८ को [[ब्रिटिश सेना]] की ९वीं रेजिमेंट ऑफ़ फुट के कमांडर, कॉलिन कैंपबेल, प्रथम बैरन क्लाइड ने बरेली पर आक्रमण कर दिया, और ९३ वीं (सदरलैंड) हाईलैंडर्स के कप्तान विलियम जॉर्ज ड्रमंड स्टुअर्ट की सहायता से लड़ाई में विजय प्राप्त कर ब्रिटिश शासन बहाल किया। कुछ विद्रोहियों को पकड़ लिया गया और उन्हें मौत की सजा दी गई। परिमाणस्वरूप १८५७ का विद्रोह बरेली में भी विफल हो गया। खान बहादुर खान नेपाल भाग निकले, लेकिन नेपाल नरेश जंग बहादुर ने उन्हें हिरासत में लेकर अंग्रेजों के सुपुर्द कर दिया।<ref name="हिंदुस्तान स्वतंत्रता दिवस">{{cite news |title=स्वतंत्रता दिवस: खान बहादुर ने पहली क्रांति में दिलाई थी बरेली को आजादी |url=https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/bareily/story-khan-bahadur-was-given-the-first-revolution-in-bareilly-to-freedom-1290895.html |accessdate=22 जनवरी 2020 |work=https://www.livehindustan.com |language=hindi}}</ref> 1 जनवरी 1858 को उन्हें मुकदमे के लिए बरेली लाकर छावनी में रखा गया।<ref name="हिंदुस्तान स्वतंत्रता दिवस" /> मुकदमा 1 फरवरी को शुरू हुआ, जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनाई गई और २४ फरवरी १८६० को कोतवाली में फांसी दे दी गई।<ref>{{cite news |title=1857 गदर के क्रांतिकारी खान बहादुर को आज ही मिली थी फांसी |url=https://www.livehindustan.com/news/bareilly/article1-today-british-government-had-given-of-Khan-Bahadur-751672.html |accessdate=22 जनवरी 2020 |work=https://www.livehindustan.com |language=hindi}}</ref> उन्हें पुरानी जिला जेल के सामने दफन किया गया जहां आज भी उनकी मजार है। खान बहादुर खान के अतिरिक्त २५७ अन्य क्रांतिकारियों को भी कमिश्नरी के समीप एक बरगद के पेड़ के नीचे फांसी दे दी गयी।<ref>{{cite news |title=यहां फांसी पर लटका दिए थे 257 क्रांतिकारी |url=https://www.jagran.com/uttar-pradesh/bareilly-city-257-krantikari-hanged-18300184.html |accessdate=22 जनवरी 2020 |work=Dainik Jagran |language=hi}}</ref>