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सोमदेव रचित कथासरित्सागर [[गुणाढ्य]] की [[बृहत्कथा]] का सबसे बेहतर, बड़ा और सरस रूपांतरण है। वास्तविक अर्थों में इसे भारतीय कथा परंपरा का महाकोश और भारतीय कहानी एवं जातीय विरासत का सबसे अच्छा प्रतिनिधि माना जा सकता है। मिथक, इतिहास यथार्थ, फैंटेसी, सचाई, इन्द्रजाल आदि का अनूठा संगम इन कथाओं में है। ईसा लेकर मध्यकाल तक की भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक धाराओं के इस दस्तावेज में तांत्रिक अनुष्ठानों, प्राकेतर घटनाओं तथा गंधर्व, किन्नर, विद्याधर आदि दिव्य योनि के प्राणियों के बारे में ढेरों कथाएं हैं। साथ ही मनोविज्ञान सत्य, हमारी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों तथा धार्मिक आस्थाओं की छवि और विक्रमादित्य, बैताल पचीसी, सिंहासन बत्तीसी, किस्सा तोता मैना आदि कई कथाचक्रों का समावेश भी इसमें हैं।
कथासरित्सागर में 21,388
== मूल स्रोत ==
कथासरित्सागर गुणाढ्यकृत '''बड्डकहा''' ('''[[बृहत्कथा]]''') पर आधृत है जो [[पैशाची भाषा]] में थी। महाकवि सोमदेव भट्टराव ने स्वयं कथासरित्सागर के आरंभ में कहा है : ''मैं बृहत्कथा के सार का संग्रह कर रहा हूँ।'' बड्डाकहा की रचना गुणाढय ने [[सातवाहन]] राजाओं के शासनकाल में की थी जिनका समय ईसा की प्रथम द्वितीय शती के लगभग माना जाता है। आंध्र-सातवाहनयुग में भारतीय [[व्यापार]] उन्नति के चरम शिखर पर था। स्थल तथा जल मार्गो पर अनेक सार्थवाह नौकाएँ और पोतसमूह दिन-रात चलते थे। अत: व्यापारियों और उनके सहकर्मियों के मनोरंजनार्थ, देश-देशांतर-भ्रमण में प्राप्त अनुभवों के आधार पर अनेक कथाओं की रचना स्वाभाविक थी। गुणाढय ने सार्थो, नाविकों और सांयात्रिक व्यापारियों में प्रचलित विविध कथाओं को अपनी विलक्षण प्रतिभा से गुंफित कर, बड्डकहा के रूप में प्रस्तुत कर दिया था।
मूल बड्डकहा अब प्राप्य नहीं है, परंतु इसके जो दो रूपांतर बने, उनमें चार अब तक प्राप्त हैं। इनमें सबसे पुराना बुधस्वामीकृत '''बृहत्कथा श्लोकसंग्रह''' है। यह संस्कृत में है और इसका प्रणयन, एक मत से, लगभग ईसा की पाँचवीं शती में तथा दूसरे मत से, आठवीं अथवा नवीं शती में हुआ। मूलत: इसमें 28 सर्ग तथा 4,539 श्लोक थे किंतु अब यह खंडश:प्राप्त है। इसके कर्ता बुधस्वामी ने बृहत्कथा को गुप्तकालीन स्वर्णयुग की संस्कृति के अनुरूप ढालने का यत्न किया है। बृहत्कथा श्लोकसंग्रह को
बृहत्कथा के मूल रूप का अनुमान लगाने के लिए संघदासगणिकृत [[वसुदेव हिंडी]] का प्राप्त होना महत्वपूर्ण घटना है। इसकी रचना भी बृहत्कथा श्लोकसंग्रह के प्राय: साथ ही या संभवत: 100 वर्ष के भीतर हुई। वसुदेव हिंड्डी का आधार भी यद्यपि बृहत्कथा ही है, तो भी ग्रंथ के ठाट और उद्देश्य में काफी फेरबदल कर दिया गया है। बृहत्कथा मात्र लौकिक कामकथा थी जिसमें वत्सराज उदयन के पुत्र नरवाहनदत्त के विभिन्न विवाहों के आख्यान थे, लेकिन वसुदेव हिंडी में [[जैन धर्म]] संबंधी अनेक प्रसंग सम्मिलित करके, उसे धर्मकथा का रूप दे दिया गया है। इतना ही नहीं, इसका नायक नरवाहनदत्त न होकर, अंधक वृष्णि वंश के प्रसिद्ध पुरुष वसुदेव हैं। "हिंडी" शब्द का अर्थ 'पर्यटन' अथवा 'परिभ्रमण' है। वसुदेव हिंडी में 29 लंबक हैं और [[महाराष्ट्री प्राकृत]] भाषा में गद्य शैली के माध्यम से लगभग 11,000 श्लोक प्रमाण की सामग्री में वसुदेव के 100 वर्ष के परिभ्रमण का वृत्तांत है जिसमें वे 29 विवाह करते हैं। सब कुछ मिलाकर लगता है कि वसुदेव हिंडी बृहत्कथा का पर्याप्त प्राचीन रूपांतर है।
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== कथासरित्सागर पर विद्वानों के विचार ==
फ़्रेंच विद्वान् लोकात ने ''गुणाढय एवं बृहत्कथा'' नामक अपनी पुस्तक (1908 ई में प्रकाशित) में लिखा है :
:''अपने दो काश्मीरी रूपांतरों (कथासरित्सागर और बृहत्कथामंजरी) में गुणाढय की मूल बृहत्कथा अत्यंत भ्रष्ट एवं अव्यवस्थित रूप में उपलब्ध है। इन ग्रंथों में अनेक स्थलों पर मूल ग्रंथ का संक्षिप्त सारोद्धार कर दिया गया है और इनमें मूल ग्रंथ के कई अंश छोड़ भी दिए गए हैं एवं कितने ही नए अंश प्रक्षेप रूप में जोड़ दिए गए हैं। इस तरह मूल ग्रंथ की वस्तु और आयोजना में बेढंगे फेरफार हो गए। फलस्वरूप, इन
कहा जा सकता है कि सोमदेव ने सरल और अकृत्रिम रहते हुए आकर्षक एवं सुंदर रूप में कथासरित्सागर के माध्यम से अनेक कथाएँ प्रस्तुत की हैं जो निश्चित ही भारतीय मनीषा का एक अन्यतम उदाहरण है।
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