"पंज प्यारे": अवतरणों में अंतर
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→पंज प्यारे चुनाव की कथा: गुरु देव से गुरु साहिब। सिक्ख से सिख। जाट से यूपी का जाटव। काटने से के लिए टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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== पंज प्यारे चुनाव की कथा ==
ऐसा माना जाता है कि जब मुगल शासनकाल के दौरान जब बादशाह [[औरंगजेब]] का आतंक बढ़ता ही जा रहा था। उस समय [[सिख धर्म]] के [[गुरु गोबिन्द सिंह]] ने [[बैसाखी]] पर्व पर आनन्दपुर साहिब के विशाल मैदान में [[सिख संप्रदाय|सिख समुदाय]] को आमंत्रित किया। जहां गुरुजी के लिए एक तख्त बिछाया गया और तख्त के पीछे एक तम्बू लगाया गया। उस समय गुरु गोबिन्द सिंह के दायें हाथ में नंगी [[तलवार]] चमक रही थी। गोबिन्द सिंह नंगी तलवार लिए मंच पर पहुंचे और उन्होंने ऐलान किया- मुझे एक आदमी का सिर चाहिए। क्या आप में से कोई अपना सिर दे सकता है? यह सुनते ही वहां मौजूद सभी सिख आश्चर्यचकित रह गए और सन्नाटा छा गया। उसी समय दयासिंह (अथवा दयाराम) नामक एक व्यक्ति आगे आया जो लाहौर निवासी था और बोला- आप मेरा सिर ले सकते हैं। गुरुदेव उसे पास ही बनाए गए तम्बू में ले गए। कुछ देर बाद तम्बू से खून की धारा निकलती दिखाई दी। तंबू से निकलते खून को देखकर पंडाल में सन्नाटा छा गया। गुरु गोबिन्द सिंह तंबू से बाहर आए, नंगी तलवार से ताजा खून टपक रहा था। उन्होंने फिर ऐलान किया- मुझे एक और सिर चाहिए। मेरी तलवार अभी प्यासी है। इस बार धर्मदास (उर्फ़ धरम सिंह) आगे आये जो मेरठ जिले के सैफपुर करमचंदपुर(हस्तिनापुर के पास) गांव के निवासी थे। यह जाति से
== सन्दर्भ ==
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