"श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि": अवतरणों में अंतर
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'''(देवर्षि) श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि''' (1675-1761)<ref>Makers of Indian Literature : Bhatt Mathuranath Shastri 'Manjunath', Central Sahitya Academy, New Delhi, 2013, ISBN 978-81-260-3365-2</ref> [[जय सिंह द्वितीय|सवाई जयसिंह]] के समकालीन, [[बूँदी जिला|बूंदी]] भरतपुर और [[जयपुर]] के राजदरबारों से सम्मानित, आन्ध्र-तैलंग-भट्ट, [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] और [[बृज भाषा|ब्रजभाषा]] के महाकवि थे।<ref>[[कलानाथ शास्त्री]] :'संस्कृत के गौरव शिखर'(राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली, प्रकाशन 1998)</ref>
[[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] ने अपने इन पूर्वज कविकलानिधि का [[सोरठा]] छंद में निबद्ध संस्कृत-कविता में इन शब्दों<ref>[[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] :'[[जयपुर-वैभवम]]':'आमुखवीथी': पृष्ठ १८ (प्रथम संस्करण-१९४७)</ref> में स्मरण किया था- ''तुलसी-सूर-विहारि-कृष्णभट्ट-भारवि-मुखाः। भाषाकविताकारि-कवयः कस्य न सम्भता:।।'' [http://sanskrit.nic.in/biblofinal.pdf]
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=='देवर्षि' अवटंक का इतिहास ==
धीरे-धीरे इन्होंने मातृभाषा के रूप में हिन्दी या उत्तरभारतीय भाषाएँ अपना लीं। इस परिवार के पूर्व-पुरुष '''बावी जी दीक्षित''' अपने मूल स्थान 'देवलपल्ली' (देवरकोंडा, आन्ध्रप्रदेश) से वल्लभाचार्य के परिवार के साथ उत्तर भारत आये थे। इन्होंने काशी और [[इलाहाबाद|प्रयाग]] में विद्याध्ययन किया और अपने बालकों को भी वहीं
== श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि का जयपुर आगमन ==
(देवर्षि) भट्टजी का परिवार रींवा नरेश, जिन्हें 'बांधव-नरेश' भी कहा जाता है, की छत्रछाया में कुछ वर्ष रहा। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इनके पिता पं. लक्ष्मण भट्ट वि.सं. 1740 (सन 1683) तक काम्यवन (कामां) में ही रह रहे थे अतः यह माना जा सकता है कि श्रीकृष्ण भट्ट का जन्म कामां में ही हुआ होगा। कविकलानिधि का बचपन भी कामां में ही बीता, अतः स्वाभाविक है वहां रहते हुए इन्होंने ब्रजभाषा में अपूर्व अधिकार प्राप्त कर लिया। डॉ. भालचंद्र राव <ref> डॉ. भालचंद्र राव तेलंग, "देवर्षि श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि तथा जयपुर", मराठवाडा विद्यापीठ पत्रिका </ref> के अनुसार श्रीकृष्ण भट्ट ने ‘रामचंद्रोदय’ की रचना भरतपुर नरेश बदनसिंह के कनिष्ठ पुत्र राजकुमार प्रतापसिंह, जिनके आश्रय में वे रहे थे, के हेतु की थी।
(देवर्षि) भट्टजी का परिवार रींवा नरेश, (महाराजा अजीत सिंह (1755/1809), जिन्हें 'बांधव-नरेश' भी कहा जाता है, की छत्रछाया में कुछ वर्ष रहा और वहां से [[बूँदी जिला|बूंदी]] [[राजस्थान]] इस कारण आ बसा कि बूंदी के राजा भी वैदुष्य के गुणग्राहक थे। जब बूंदी राजपरिवार का सम्बन्ध रींवा में हुआ तो वहां के कुछ राज पंडितों को जागीरें दे कर उन्होंने बूंदी में ला बसाया। बूंदी के राजा बुधसिंह, जो सवाई जयसिंह के बहनोई थे, के शासन में श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि बूंदी राज्य के राजपंडित थे। "वह वेद, पुराण, दर्शन, व्याकरण, संगीत आदि शास्त्रों के मान्य विद्वान तो थे ही, [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[प्राकृत]] और [[बृज भाषा|ब्रजभाषा]] के एक अप्रतिम वक्ता और कवि भी थे- (बूंदी में) सवाई जयसिंह इनसे इतने प्रभावित हुए कि उनसे किसी भी कीमत पर [[आमेर]] आ जाने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण भट्ट ने आमेर में राजपंडित हो कर आ कर बसने का यह आमंत्रण अपने संरक्षक राजा बुधसिंह की स्वीकृति पा कर ही स्वीकार किया, उससे पूर्व नहीं। अनेक ऐतिहासिक काव्यों में यह उल्लेख मिलता है- "बून्दीपति बुधसिंह सौं ल्याए मुख सौं याचि।"<ref>Tripathi, Radhavallabh; Shastri, Devarshi Kalanath; Pandey, Ramakant, eds. (2010). मंजुनाथग्रन्थावलिः (मंजुनाथोपाह्वभट्टश्रीमथुरानाथशास्त्रिणां काव्यरचनानां संग्रहः) [The works of Mañjunātha (Anthology of poetic works of Bhaṭṭaśrī Mathurānātha Śāstri, known by the pen-name of Mañjunātha)] (in Sanskrit). New Delhi, India: Rashtriya Sanskrit Sansthan. ISBN 978-81-86111-32-1. Retrieved February 26, 2013.</ref>[http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/J/Jaipurvaibhavam.pdf]▼
▲कामवन (
"बूंदीपति बुधसिंह सौं ल्याए मुख सौं यांचि, रहे आइ अम्बेर में प्रीति रीति बहु भांति।" <ref>Tripathi, Radhavallabh; Shastri, Devarshi Kalanath; Pandey, Ramakant, eds. (2010). मंजुनाथग्रन्थावलिः (मंजुनाथोपाह्वभट्टश्रीमथुरानाथशास्त्रिणां काव्यरचनानां संग्रहः) [The works of Mañjunātha (Anthology of poetic works of Bhaṭṭaśrī Mathurānātha Śāstri, known by the pen-name of Mañjunātha)] (in Sanskrit). New Delhi, India: Rashtriya Sanskrit Sansthan. ISBN 978-81-86111-32-1. Retrieved February 26, 2013.</ref>[http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/J/Jaipurvaibhavam.pdf]
श्रीकृष्ण भट्ट के प्रपौत्र वासुदेव भट्ट ने भी अपने ग्रंथ ‘राधारूपचंद्रिका’ में इसका उल्लेख किया है।
देवर्षि श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि के वंशजों में अनेक अद्वितीय विद्वान, [[कवि]], [[तन्त्र|तांत्रिक]], [[संगीतज्ञ]] आदि हुए हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से [[जयपुर]] की प्रतिष्ठा पूरे भारतवर्ष में फैलाई। उनकी इस विद्वद्वंश परंपरा में द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट, [[देवर्षि रमानाथ शास्त्री]], [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]], देवर्षि [[कलानाथ शास्त्री]] जैसे विद्वानों ने अपने रचनात्मक वैशिष्ट्य एवं विपुल साहित्य सर्जन से [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] जगत को आलोकित किया है।<ref>'उत्तर भारतीय आन्ध्र-तैलंग-भट्ट-वंशवृक्ष' (भाग-2) संपादक स्व. पोतकूर्ची कंठमणि शास्त्री और करंजी गोकुलानंद तैलंग द्वारा 'शुद्धाद्वैत वैष्णव वेल्लनाटीय युवक-मंडल', नाथद्वारा से वि. सं. 2007 में प्रकाशित</ref>
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'ईश्वरविलास' महाकाव्य इनका कविता-शैली में [[जयपुर]] के बारे में लिखा इतिहासग्रंथ ही है। इसकी [[पाण्डुलिपि|पांडुलिपि]] सिटी पैलेस (चन्द्रमहल) के पोथीखाना में है। कई साल पहले इसे '[[राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान|प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान]]' जोधपुर ने [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] की भूमिका सहित प्रकाशित किया था।
कविकलानिधि द्वारा ब्रज भाषा में रचे गए ज्ञात ग्रंथों में कुछ ही प्रकाशित हो पाए हैं। ये ग्रंथ जयपुर के पोथीखाने में सुरक्षित हैं। वंशवृक्ष<ref name="उपरोक्त"/> में श्रीकृष्ण भट्ट द्वारा रचित साहित्य की सूची, गोविंदराम चरौरा द्वारा संपादित ‘रामगीतम’ की भूमिका <ref>'रामगीतम', सं. गोविन्दराम चरौरा, राजस्थानी ग्रंथागार, 1992</ref>, तथा ईश्वरविलास महाकाव्य <ref>'ईश्वरविलास महाकाव्य', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, जगदीश संस्कृत पुस्तकालय, जयपुर, 2006</ref> में दी गयी इनके ब्रजभाषा तथा संस्कृत ग्रंथों की सूचियों के अध्ययन से भट्टजी के निम्नलिखित ग्रन्थ ज्ञात हुए हैं -
{| class="wikitable"
|-
|
'''ब्रजभाषा ग्रन्थ'''
*[[ईश्वरविलास महाकाव्य]]<ref>'ईश्वरविलास महाकाव्य', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, जगदीश संस्कृत पुस्तकालय, जयपुर, 2006</ref>▼
*[[पद्यमुक्तावली]]<ref>'पद्यमुक्तावली', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला भाग 30, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, 1959</ref> ▼
*[[सुन्दरी स्तवराज]]▼
*अमृत ध्वनि
*[[वेदान्त दर्शन|वेदांत]] पंचविंशति▼
*अपरोक्षानुभूति भाषा
▲*[[अलंकार-कलानिधि]]
*इश्क़ महताब
*[[श्रृंगार रसमाधुरी]]▼
*उपदेशसाहस्री भाषा
*कल्कि काव्य
|
*कल्किजी की स्तुति
*[[विदग्ध रसमाधुरी]]▼
*कवित्त संग्रह
*गीता सार (शांकरभाष्य भाषा)
*जाजऊ रासो (जाजऊ युद्ध?)
*[[दुर्गा]] भक्तितरंगिणी
*पंचदशीसार
|
*बुद्धसिंह प्रशस्ति
*भागवतसारभाषा
*योगवासिष्ठसारभाषा
*[[रामचंद्रोदय]]
*वृत्तचंद्रिका
|
▲*[[विदग्ध रसमाधुरी]]
*षड्ऋतु वर्णन
*[[साम्भर युद्ध]]<ref>'साम्भर युद्ध', राजस्थान सुलभ पुस्तकमाला भाग 25, राजस्थान साहित्य समिति, 1978</ref>
*रामरासो
*तैत्तरीय उपनिषद का ब्रज भाषा में अनुवाद
▲*[[बहादुर विजय]]
▲*[[नखशिख वर्णन]]
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'''संस्कृत ग्रंथ'''
▲*[[पद्यमुक्तावली]]<ref>'पद्यमुक्तावली', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला भाग 30, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, 1959</ref>
*[[वृत्तमुक्तावली]]<ref>'वृत्तमुक्तावली', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला भाग 69, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, 1963</ref>
*रामगीतम<ref>'रामगीतम', सं. गोविन्दराम चरौरा, राजस्थानी ग्रंथागार, 1992</ref>
▲*[[ईश्वरविलास महाकाव्य]]<ref>'ईश्वरविलास महाकाव्य', सं. भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, जगदीश संस्कृत पुस्तकालय, जयपुर, 2006</ref>
▲*[[सुन्दरी स्तवराज]]
▲*[[वेदान्त दर्शन|वेदांत]] पंचविंशति
*प्रशस्ति मुक्तावली
|
*सरसरसास्वादसागर
*कार्त्तवीर्यार्जुनाष्टकस्तोत्र
*पातंजलयोगभाष्य
*बुधसिंहयशोवर्णन
*रामोज्ज्वलमधुरस्तोत्र
|}
उक्त ग्रंथों में शृंगार रसमाधुरी तथा अलंकार कलानिधि नामक ग्रंथ काव्यशास्त्र विषयक हैं। ब्रजभाषा में लिखा ग्रन्थ अलंकार कलानिधि मम्मट के ‘काव्यप्रकाश’ से काफ़ी हद तक प्रभावित लगता है। डॉ नगेंद्र द्वारा संपादित "हिंदी साहित्य का वृहत इतिहास भाग 6"<ref>हिंदी साहित्य का वृहत इतिहास, षष्ठ भाग, रीतिकाल, रीतिबद्ध काव्य (संवत 1700 - 1900), संपादक डॉ नगेंद्र, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संवत 2030 वि.</ref> में कवि कलानिधि को ‘शृंगार रस निरूपक आचार्य’ कहा गया है। शृंगार रसमाधुरी नामक अपने ग्रंथ में श्रीकृष्ण भट्ट ने शृंगार रस को मूर्धन्य रस मानकर सारे रसों का विस्तृत वर्णन किया है।
शृंगार रसमाधुरी 16 आस्वादों (अध्यायों) में विभाजित है। इस ग्रंथ की रचना बूंदी नरेश रावराजा बुधसिंह की आज्ञा से की गई थी। इस ग्रंथ में प्रधान रूप से शृंगार रस और उसके बाद शृंगारेतर रसों एवं काव्यदोषों का वर्णन अत्यंत माधुर्य और लालित्य के साथ किया गया है। ग्रन्थ के प्रारंभिक अध्याय में गणेश वंदना, बूंदी राज्य का वर्णन, बूंदी नरेश बुधसिंह की आज्ञा और शृंगार रस का वर्णन है। उसके बाद आगे के अध्यायों में क्रमशः आलंबन, नायिका रूप निरूपण, राग के हेतु स्वप्न व चित्र में दर्शन आदि, नायक नायिकाओं की चेष्टाएँ, रति प्रसंग तथा मिलन, भाव विवेचन तथा हेला, लीला, ललित आदि हावों का वर्णन, परंपरागत आठ प्रकार की नायिकाएं, विप्रलम्भ शृंगार तथा पूर्व राग, मान और उसके भेद, नायक द्वारा प्रयुक्त मान मोचन के उपाय, विप्रलम्भ के तीसरे अंग - प्रवास तथा चौथे अंग - करुण का विवेचन, करुण विप्रलंभ और प्रवास-जनित विरह को मिटाने के लिए सखाजनों द्वारा किए गए मिलन के उपाय, सखियों के कर्मों का वर्णन, शृंगारेतर रसों – हास्य, करुण, वीर आदि का वर्णन, काव्यवृत्ति विवेचन तथा रस प्रत्यनीक अथवा रस-विरोध का विवेचन है।
देवर्षि श्रीकृष्ण भट्ट रचित दूसरा महत्वपूर्ण काव्यशास्त्रीय ग्रंथ ’अलंकार कलानिधि’ है, जिसकी रचना आमेर नरेश जयसिंह की आज्ञा से की गई थी जैसा स्वयं श्रीकृष्ण भट्ट ने कहा है -
"तिन कवि लाल कलानिधि सों सनेह करि
कियौ जब कछुक हुकुम रसभीनो है।
तब तिन भाष में अशेष कवि रीति आन
अलंकार कलानिधि नाम ग्रंथ कीनो है।।"
अलंकार कलानिधि ग्रन्थ 14 निदेशों अर्थात अध्यायों में विभक्त है। ये इन निदेशों में क्रमशः अर्थव्यंजकता, रस लक्षण, रस भेद, ध्वनि विवेचन, गुणीभूत व्यंग्य तथा उसके भेद, अधम काव्य के प्रकार, शब्द चित्र, अर्थ चित्रों का वर्णन, काव्य गुणों का विवेचन, प्राचीन और नवीन आचार्यों के अनुसार गुणों के स्वरूप एवं भेदों का विवेचन, शब्दालंकार, अर्थालंकार, अलंकार दोष एवं नायिका भेद आदि विविध काव्यांगों का विवेचन किया गया है।
== सन्दर्भ ==
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