"उदन्त मार्तण्ड": अवतरणों में अंतर

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यह पत्र पुस्तकाकार (१२x८) छपता था और हर [[मंगलवार]] को निकलता था। इसमें विभिन्न नगरों के सरकारी क्षेत्रों की विभिन्न गतिविधियाँ प्रकाशित होती थीं और उस समय की वैज्ञानिक खोजों तथा आधुनिक जानकारियों को भी महत्त्व दिया जाता था। इस पत्र में [[ब्रज भाषा|ब्रज]] और [[खड़ीबोली]] दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक "मध्यदेशीय भाषा" कहते थे। इसके उद्देश्य के सम्बन्ध में बांग्ला साप्ताहिक 'समाचार चंद्रिका' ने लिखा था कि
: ''अज्ञान तथा रूढ़ियों के अँधेरों में जकड़े हुए हिन्दुस्तानी लोगों की प्रतिभाओं पर प्रकाश डालने और 'उदंत मार्तण्ड' द्वारा ज्ञान के प्रकाशनार्थ' इस पत्र का श्री गणेश हुआ था। और, 'हिन्दुस्तान और नेपाल आदि देशों के लोगों, महाजनों तथा इंगलैंड के साहबों के बीच वितरित हुआ और हो रहा है।''<ref>[https://books.google.co.in/books?id=R_PaDgAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false हिन्दी पत्रकारिता : रूपक बनाम मिथक], पृष्ठ २१ (लेखक - डॉ अनुशब्द)</ref>
 
उन दिनों सरकारी सहायता के बिना, किसी भी पत्र का चलना प्रायः असंभव था। कंपनी सरकार ने [[धर्मप्रचारक|ईसाई मिशनरियों]] के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परन्तु चेष्टा करने पर भी "उदन्त मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी। इसके कुल ७९ अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि डेढ़ साल बाद दिसंबर, १८२७ ई को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।<ref>{{cite web |url=http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/K/KKYadav/bhoomandlikaran_ke_daur_mein_Hindi_Alekh.htm|title=भूमण्डलीकरण के दौर में हिन्दी|access-date=[[२३ अप्रैल]] [[२००९]]|format=एचटीएम|publisher=साहित्यकुंज|language=}}</ref> इसके अंतिम अंक में लिखा है-