"गाथा (अवेस्ता)": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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इसका स्पष्ट अर्थ है कि भगवान के अतिरिक्त मेरा अन्य कोई रक्षक नहीं है। इतना ही नहीं, इसी गाथा में आगे चलकर वे कहते हैं- ''मज़दाओ सखारे मइरी श्तो'' (गाथा 29। 4) अर्थात् केवल मज़्दा ही एकमात्र उपास्य हैं। इनके अतिरिक्त कोई भी अन्य देवता उपासना के योग्य नहीं है। अहुरमज़्द के साथ उनके छह अन्य रूपों की भी कल्पना इन गाथाओं में की गई है। ये वस्तुतः आरम्भ में गुण ही हैं जिन षड्गुणों से युक्त अहुरमज़्द की कल्पना ‘षाड्गुण्य विग्रह’ भगवान [[विष्णु]] से विशेष मिलती है। अवेस्ता के अन्य अंशों में वे देवता अथवा फरिश्ता बना दिए गए हैं और आमेषा स्पेन्ता (पवित्र अमर शक्तियाँ) के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके नाम तथा रूप का परिचय इस प्रकार है:
1. अस (वैदिक [[
2. वोहुमनो (भला मन) = प्रेम तथा पवित्रता
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