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गाँधी ने किसी नए [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]] की रचना नहीं की है वरन् उनके विचारों का जो दार्शनिक आधार है, वही '''गांधी दर्शन''' है।
 
'''[https://www.mppscexams.com/ गाँधी दर्शन के  प्रमुख तत्व]'''
 
===   1. [https://www.mppscexams.com/ महात्मा गांधी का अहिंसा संबंधी विचार:-] ===
महात्मा गांधी उपनिषद दर्शन आधारित इस मत को स्वीकार  करते थे कि प्रत्येक वस्तु में ईश्वर की अभिव्यक्ति है ईश्वर ही अलग-अलग तरीकों से मनुष्य प्राणियों पेड़ पौधों वह संसार के कण-कण में व्यक्त होता है अतः उन सभी में स्वस्थ संबंध (पवित्र संबंध) हेतु अहिंसा आवश्यक है।
 
          अहिंसा केवल राजनीतिक आंदोलन का अस्त्र नहीं है बल्कि यह एक नैतिक जीवन जीने का तरीका है।
 
     अहिंसा का सकारात्मक एवं नकारात्मक अर्थ, दोनों हैं !मन, कर्म, वचन से सभी प्राणी को कष्ट ना पहुंचाना और कष्ट पहुंचाने का विचार भी  ना लाना इसका नकारात्मक अर्थ है, वही प्राणी मात्र के प्रति दया करुणा की भावना रखना सकारात्मक अहिंसा है।
 
==== *'''**महात्मा गांधी की अहिंसा की विशेषता निम्नलिखित हैं-''' ====
1. गांधीजी के अनुसार अहिंसा सिर्फ आदर्श नहीं है अपितु यह मानव जाति का प्राकृतिक नियम है जिस प्रकार हिंसा मांसाहारी पशु समुदाय का प्राकृतिक नियम है उसी प्रकार अहिंसा मानव समुदाय का प्राकृतिक नियम है।
 
2. गांधीजी के अनुसार अहिंसा के पूर्ण पालन के लिए "ईश्वर के प्रति विश्वास" होने से मनुष्य समझ जाता है कि जिसके साथ वह चिंता करना चाहता है वह भी ईश्वर की ही अभिव्यक्ति है।
 
3. अहिंसा समस्या के स्थाई तथा सर्व श्री कृत समाधान हेतु एकमात्र उपाय हैं।
 
4. गांधीजी अहिंसा और कायरता में भी अंतर करते हैं गांधीजी के अनुसार अहिंसा उच्च आध्यात्मिक बल से उत्पन्न होती हैं जबकि कायरता दुर्बलता तथा विवशता से।
 
अहिंसा के अपवाद:- गांधीजी की अहिंसा जैनों की अहिंसा की तुलना में व्यवहारिक व लचीली है महात्मा गांधी ने स्वयं उन परिस्थितियों का उल्लेख किया है जहां हिंसा का उल्लेख किया जाना उचित है।
 
1. हिंसक पशुओं, रोगों के कीटाणुओं, फसल नष्ट करने वाले कीटो आदि की हत्या करना उचित है परंतु ऐसा सिर्फ समाज हित में ही किया जाना चाहिए।
 
2. अगर कोई प्राणी असहनीय दर्द झेल रहा है और उसकी मुक्ति का कोई अन्य मार्ग ना हो उसके जीवन को समाप्त कर देना उचित होगा गांधीजी के इस विचार से दया मृत्यु के प्रति समर्थन देखता है।
 
3. चिकित्सक के द्वारा चिकित्सा के लिए की जाने वाली हिंसा उचित है यदि वह रोगी के हित में हो।
 
4. अगर हिंसा और कायरता में से किसी एक को चुनना हो तो हिंसा को चुनना उचित होगा।
 
5. किसी प्राणी/ विद्यार्थी के नैतिक या आध्यात्मिक विकास के लिए उसे कष्ट पहुंचाना अहिंसा का उल्लंघन नहीं है।
 
=== '''[https://www.sahijankari.in/ महात्मा गांधी का  सत्याग्रह संबंधित विचार:-]''' ===
सत्याग्रह का अर्थ होता है सत्य के प्रति आग्रह!!  यह आग्रह अहिंसा  तथा मजबूती के साथ होना चाहिए गांधी जी ने सत्याग्रह को राष्ट्रीय आंदोलनों का मूल मंत्र बना दिया है उन्होंने लोगों को इस बात के लिए प्रशिक्षित किया है कि जब तक अपनी मांग पूरी ना हो तब तक मजबूती के साथ सत्याग्रह पर डटे रहना चाहिए।
 
          सत्याग्रह संघर्ष समाधान की एक नई तकनीक है जिसके अंतर्गत सत्य के लिए आग्रह करना अर्थात जो चीज सही है समाज के लिए हितकारी है उसकी प्राप्ति के लिए प्रयास करना।<blockquote>गांधीजी के अनुसार, " सत्याग्रह में आत्म शुद्धि आवश्यक है क्योंकि सत्याग्रह दुर्बल तथा कायरों का शस्त्र नहीं अपितु व बलवान की वस्तु "</blockquote>    गांधीजी के अनुसार सत्याग्रह की निम्न तरीके हैं-
 
1.शांतिपूर्ण आंदोलन
 
2. प्रदर्शन
 
3.आर्थिक बहिष्कार
 
4. उपवास
 
5.असहयोग
 
6.सविनय अवज्ञा करना आदि।
 
=== '''[https://www.sahijankari.in/ महात्मा गांधी का  धर्म संबंधित विचार:-]''' ===
गांधीजी धर्म को व्यक्ति हित एवं समाज हेतु आवश्यक मानते थे गांधीजी समाज के सभी पक्षों में धर्म को अनिवार्य रूप से स्वीकार करते थे गांधीजी के अनुसार धर्म का अर्थ "स्वयं के कर्तव्य पालन" से हैं।
 
     गांधीजी के अनुसार धर्म ना केवल व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास हेतु आवश्यक है बल्कि राजनीति व प्रशासन के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
 
     गांधीजी के अनुसार, " धर्म हीन राजनीति मृत देह के समान है जिसे नष्ट कर दिया जाना चाहिए "
 
       इसका अर्थ यह है कि राजनीतिक व प्रशासनिक अधिकारियों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर सिर्फ कर्तव्य पालन के भाव से प्रशासन का संचालन करें।
 
       गांधीजी सर्व धर्म समभाव के समर्थक थे उनका मानना था कि संसार के सभी धर्मों में एक समान मानव कल्याण की बात कही गई है अर्थात सभी धर्म का समान रूप से आदर सम्मान किया जाना चाहिए क्योंकि सभी धर्म सामाजिक उद्देश्य की प्राप्ति का साधन मात्र है और सभी मनुष्य स्वतंत्र हैं कि वे अपनी इच्छा अनुसार इन साधनों (धर्म), का चयन कर सके।
 
        साथ ही गांधीजी पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता जो राजनीति व धर्म में पूर्ण विभेद की वकालत करती ही के स्थान पर सर्वधर्म समभाव का समर्थन करते हैं जिसका अर्थ होता है कि राज्य को धर्म से दूर नहीं भागना चाहिए बल्कि सभी धर्मों को सम्मान देना चाहिए।
 
=== '''[https://www.mppscexams.com/ महात्मा गांधी का वर्ण व्यवस्था/ जाति व्यवस्था संबंधित विचार"]''' ===
महात्मा गांधी का जन्म एक वैष्णव हिंदू परिवार में हुआ था पारिवारिक संस्कारों का उन पर पर्याप्त प्रभाव था जिसकी गहरी छाप उनकी सामाजिक दर्शन पर स्पष्ट दिखाई पड़ती है।
 
     गांधीजी वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे गांधी जी ने अपनी पुस्तक " हिंदू धर्म " में वर्ण एवं जाति व्यवस्था से संबंधित विचार प्रकट किए हैं जो निम्नानुसार है-
 
1. वर्ण व्यवस्था मनुष्य द्वारा निर्मित व्यवस्था नहीं बल्कि यह ईश्वरीय व्यवस्था है।
 
2. वर्ण व्यवस्था हिंदू धर्म का अनिवार्य अंग है वैकल्पिक नहीं यदि कोई व्यक्ति वर्ण व्यवस्था को नहीं मानता है तो उनके लिए उस व्यक्ति को हिंदू मानना संभव नहीं है।
 
3. गांधीजी के अनुसार वर्ण व्यवस्था श्रम विभाजन की प्रणाली हैं जो समाज में श्रम की आवश्यकता तथा उपलब्धता का समन्वय करवाती है।
 
4. गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को वंशानुगत माना है उनके अनुसार जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने पूर्वजों से विशेष आकृति ग्रहण करता है उसी प्रकार वह अपने पूर्वजों से विशेष गुण भी प्राप्त करता है तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार का कौशल माता पिता मैं होता है वही क्वेश्चन संतान में भी स्थानांतरित होता है।
 
5. गांधीजी वर्ण व्यवस्था का समर्थन करते हैं लेकिन सामाजिक विषमताओं का नहीं वे सभी वर्गों के कार्यों का समाज की स्वस्थ संचालन के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं।
 
6. गांधीजी वर्ण व्यवस्था के जन्म मुल्क स्वरूप के समर्थक अवश्य है परंतु वह ऊंच-नीच व स्तरीकरण के प्रबल विरोधी भी थे।
 
===  '''[https://www.mppscmains.in/ महात्मा गांधी का राज्य संबंधित विचार:-]''' ===
दर्शन के स्तर पर गांधीजी अराजकतावादी विचार और यह धारणा उनके राज्य संबंधी विचारों से स्पष्ट होती हैं। गांधी जी अपने आदर्श रूप में राज्य के अस्तित्व का निषेध करते हैं और राज्य को दो कारणों से बुरा मानते हैं-
 
1. राज्य हिंसा की ताकत (पुलिस, सेना) के सहारे टिका होता है जो अहिंसा की आदर्श के विपरीत हैं।
 
2. राज्य से कानून बनाता है जो सभी व्यक्तियों को एक जैसे ढांचे में बांधते हैं इससे व्यक्तियों की आत्मिक स्वतंत्र बाधक होती हैं।
 
      गांधीजी अपने इस अराजकतावाद या राज्य विहीन स्थिति तक पहुंचने के लिए मार्क्स की तरह हिंसा का समर्थन नहीं करते थे क्योंकि गांधीजी का मानना था कि लक्ष्य ( साध्य) के साथ-साथ साधनों का पवित्र होना आवश्यक है।
 
    अब प्रश्न यह है, कि जब राज्य नहीं होगा तब सामाजिक व्यवस्था कैसे चलेगी? अपराध कैसे नियंत्रित होंगे? इसका उत्तर देते हुए गांधी जी कहते हैं कि यह स्थिति प्रभुत्व अराजकता की होगी अर्थात हर व्यक्ति उच्च नैतिक मूल्य के साथ जीवन जिएगा और क्योंकि हर व्यक्ति की आर्थिक आवश्यकताएं पूरी होगी सभी का नैतिक विकास होगा इसलिए समाज में अपराध स्वत ही समाप्त हो जाएंगे और अगर छोटे बड़े अपराध हो भी जाएंगे तो सामाजिक दबाव से ही नियंत्रित किए जा सकते हैं ऐसे राज्य में सेना और पुलिस की आवश्यकता नहीं होगी हालांकि गांधीजी जाति व्यवस्था व अस्पृश्यता का हमेशा विरोध करते थे क्योंकि ऐसे नैतिक स्तर पर मनुष्य युद्ध नहीं बल्कि शांति चाहेंगी। गांधीजी जानते थे की अराजकता का आदर्श उपलब्ध होना आसान नहीं है मार्क्स ने जिस तरह मार्क्सवाद के आने की गारंटी दी है वैसा दावा गांधीजी नहीं करते हैं उन्हें विश्वास है कि रामराज्य अराजकतावाद आएगा जरूर पर कब और कैसे दावा करना संभव नहीं है। जब तक रामराजू अराजकतावाद नहीं आता तब तक के लिए गांधीजी नैतिक राज व्यवस्था के सूत्र दिए जो निम्न है-
 
1 राज्य की शक्तियां जितनी कम हो उतना बेहतर है।
 
2. लोकतंत्र की मजबूत स्थापना होनी चाहिए।
 
3. सत्ता का स्थानांतरण नीचे से ऊपर की ओर होना चाहिए।
 
4. गांधीजी लोक कल्याणकारी राज्य का भी उत्साह पूर्वक समर्थन नहीं करते हैं।
 
      लोक कल्याण के नाम पर राज्य की शक्तियां बढ़ जाती है और व्यक्ति की आत्मिक स्वतंत्रता बाधित होती है।
 
=== '''[https://www.mppscmains.in/ सर्वोदय या न्यासीता संबंधित विचार/ आर्थिक व सामाजिक विचार:-]''' ===
सर्वोदय न्यासीता का सिद्धांत गांधी जी के दर्शन की आर्थिक व सामाजिक स्वरूप को प्रकट करता है सर्वोदय का शाब्दिक अर्थ होता है सब का उदय और सभी क्षेत्रों में उदय अर्थात व्यक्ति का सर्वांगीण विकास ही सर्वोदय है।
 
    सर्वोदय के अंतर्गत गांधीजी समाज के प्रत्येक मनुष्य का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व आध्यात्मिक कल्याण की बात करते हैं।
 
क्योंकि गांधीजी का मानना है कि "सभी प्राणी ईश्वर की संतान है और सभी को विकास का समान अधिकार है"
 
      [https://www.mppscmains.in/ गांधीजी का  न्यासीता का सिद्धांत एक आर्थिक सिद्धांत] है गांधीजी का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आवश्यकता से अधिक संपति स्वयं आगे बढ़कर जरूरतमंद लोगों की सहायता हेतु व्यव करना सुनिश्चित करना चाहिए
 
अर्थात आवश्यकता से अधिक संपत्ति को व्यक्ति के द्वारा ट्रस्ट या न्यासी अमानत के रूप में धारण करना चाहिए अर्थात इस अतिरिक्त संपत्ति का धारण तो उन्हीं लोगों के पास रहेगा जिन्होंने उस संपत्ति को अर्जित किया है परंतु उसका उपयोग जनहित एवं लोक कल्याणकारी कार्यों में ही किया जाएगा।
 
             यहां गांधीजी स्वेच्छा पूर्ण संपत्ति संपति का  न्यासी होने के लिए प्रेरित करते हैं परंतु किसी से संपति छीन कर लोगों में बांटना एक प्रकार की हिंसा है जिसका समर्थन गांधीजी नहीं करते हैं।
 
ईश्वर की सत्ता में विश्वास करनेवाले भारतीय [[आस्तिक]] के ऊपर जिस प्रकार के दार्शनिक [[संस्कार]] अपनी छाप डालते हैं वैसी ही छाप गांधी जी के विचारों पर पड़ी हुई है। वे [[भारत]] के मूलभूत कुछ दार्शनिक तत्वों में अपनी आस्था प्रकट करके अग्रसर होते हैं और उसी से उनकी सारी विचारधारा प्रवाहित होती है। किसी गंभीर [[रहस्यवाद]] में न पड़कर वे यह मान लेते हैं कि शिवमय, सत्यमय और चिन्मय [[ईश्वर]] [[सृष्टि]] का मूल है और उसने सृष्टि की रचना किसी प्रयोजन से की है। वे ऐसे देश में पैदा हुए जिसने चैतन्य आत्मा की अक्षुण और अमर सत्ता स्वीकार की है। वे उस देश में पैदा हुए जिसमें जीवन, जगत सृष्टि और प्रकृति के मूल में एकमात्र अविनश्वर चेतन का दर्शन किया गया है और सारी सृष्टि की प्रक्रिया को भी सप्रयोजन स्वीकार किया गया है। उन्होंने यद्यपि इस प्रकार के दर्शन की कोई व्याख्या अथवा उसकी गूढ़ता के विषय में कहीं विशद और व्यवस्थित रूप से कुछ लिखा नहीं है, पर उनके विचारों का अध्ययन करने पर उनकी उपर्युक्त दृष्टि का आभास मिलता है। उनका वह प्रसिद्ध वाक्य है-- ''जिस प्रकार मैं किसी स्थूल पदार्थ को अपने सामने देखता हूँ उसी प्रकार मुझे जगत के मूल में राम के दर्शन होते हैं।'' एक बार उन्होंने कहा था, अंधकार में प्रकाश की और मृत्यु में जीवन की अक्षय सत्ता प्रतिष्ठित है।