"परशुराम": अवतरणों में अंतर

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बंगाली ब्राम्हणों के इतिहास डॉ कृष्ण त्रिपाठी द्वारा
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'''परशुराम''' [[त्रेतायुग|त्रेता युग]] (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहां जन्मे थे। जो [[विष्णु]] के [[दशावतार|छठा अवतार]] हैं<ref name="जोशी २०१८">{{cite web | last=जोशी | first=अनिरुद्ध | title=parshuram - भगवान परशुराम का जन्म कब और कहां हुआ था? | website=Webdunia Hindi | date=१६ अप्रैल २०१८ | url=http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/lord-parshuram-birthplace-and-time-118041600053_1.html | language=हिन्दी भाषा | accessdate=१७ अप्रैल २०१८}}</ref>। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि [[भृगु]] के पुत्र महर्षि [[जमदग्नि ऋषि|जमदग्नि]] द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज [[नंदीग्रामइन्द्र]] के वरदान स्वरूप पत्नी [[रेणुका]] के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इंदौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं। पितामह [[भृगु]] द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और [[शिव|शिवजी]] द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि [[विश्वामित्र]] एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि [[कश्यप]] से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर [[कश्मीरीकैलास पर्वत|कैलाश पंडितगिरिश्रृंग]] पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।
 
[[File:Parashurama with axe.jpg|thumb|right|300px|[[राजा रवि वर्मा]] द्वारा परशुराम जी का चित्र।]]
 
वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने [[भीष्म]], [[द्रोणाचार्य|द्रोण]] व [[कर्ण]] को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने  [[शूद्रअत्रि]]<nowiki/> की पत्नी [[अनसूया]], [[अगस्त्य]] की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में [[रामभद्राचार्यकल्कि|रामकल्कि अवतार]] होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।
 
== पौराणिक परिचय ==