"जैन दर्शन": अवतरणों में अंतर

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जैन दर्शनानुसार जीव नित्य एवं स्वयंप्रकाश है। '[[अविद्या]]' के कारण वह बन्धन में बँधता है। इस प्रकार जीव के दो भेद हैं- संसारी एवं मुक्त। संसारी के पुनः दो भेद स्थावर और जंगम हैं, जिनमें जंगम-पृथ्वीकाय, अपकाय, वायुकाय तथा तेजकाय वाले हैं। अस्तिकाय द्रव्य का दूसरा तत्त्व ‘अजीव’ है, जिसके पाँच भेद हैं-धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और काल।
 
[https://www.mppscexams.com/ पुद्गल से तात्पर्य] उस तत्व से है जिसका संयोजन व विभाजन किया जा सके। इसके सबसे छोटे भाग को अणु कहा जाता है, समस्त भौतिक पदार्थ अणुओं के संयोजन से बनते हैं ।रंग, स्पर्श, गंध ,रस पुद्गल के गुण हैं जो सभी पदार्थों में दिखाई देते हैं।
==कर्म==