"सरना धर्म": अवतरणों में अंतर

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* [[पश्चिम बंगाल]] — 1,237,121 (अनुमानित)
* [[छत्तीसगढ़]] - 768,910 (अनुमानित)
 
=== आदिवासी भाषाएँ ===
 
भारत में सभी आदिवासी समुदायों की अपनी विशिष्ट भाषाएं है। भाषाविज्ञानियों ने भारत के सभी आदिवासी भाषाओं को मुख्यतः तीन भाषा परिवारों में रखा है- द्रविड़, आस्ट्रिक और चीनी-तिब्बती। लेकिन कुछ आदिवासी भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत भी आती हैं। आदिवासी भाषाओं में ‘भीली’ बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है जबकि दूसरे स्थान पर ‘गोंडी’ भाषा और तीसरे स्थान पर ‘संताली’ भाषा है। भारतीय राज्यों में एकमात्र झारखण्ड में ही 5 आदिवासी भाषाओं - संताली, मुण्डारी, हो, कुड़ुख और खड़िया - को 2011 में द्वितीय राज्यभाषा का दर्जा प्रदान किया गया।
 
भारत की 114 मुख्य भाषाओं में से 22 को ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इनमें हाल में शामिल की गयी संताली और बोड़ो ही मात्र आदिवासी भाषाएं हैं। अनुसूची में शामिल संताली (0.62), सिंधी, नेपाली, बोड़ो (सभी 0.25), मिताइ (0.15), डोगरी और संस्कृत भाषाएं एक प्रतिशत से भी कम लोगों द्वारा बोली जाती हैं। जबकि भीली (0.67), गोंडी (0.25), टुलु (0.19) और कुड़ुख 0.17 प्रतिशत लोगों द्वारा व्यवहार में लाए जाने के बाद भी आठवीं अनुसूची में दर्ज नहीं की गयी हैं। (जनगणना 2001)
 
=== आदिवासियों के धार्मिक विश्वास ===
 
आदिवासियों का अपना धर्म भी है। ये प्रकृति-पूजक हैं और वन, पर्वत, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। आधुनिक काल में जबरन बाह्य संपर्क में आने के फलस्वरूप इन्होंने हिन्दू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म को भी अपनाया है। अंग्रेजी राज के दौरान बड़ी संख्या में ये ईसाई बने तो आजादी के बाद इनके हिूंदकरण का प्रयास तेजी से हुआ है। परन्तु आज ये स्वयं की धार्मिक पहचान के लिए संगठित हो रहे हैं और भारत सरकार से जनगणना में अपने लिए अलग से धार्मिक कोड (कोया पुनेम) की मांग कर रहे हैं।
 
भारत में 1871 से लेकर 1941 तक हुई जनगणनाओं में आदिवासियों को अन्‍य धमों से अलग धर्म में गिना गया है, जिसे एबओरिजिन्स, एबोरिजिनल, एनिमिस्ट, ट्राइबल रिलिजन या ट्राइब्स इत्यादि नामों से वर्णित किया गया है। हालांकि 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को अलग से गिनना बन्‍द कर दिया गया है।
 
भारत में आदिवासियों को दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति।
 
=== भारत की प्रमुख जनजातियाँ ===
 
चंदा समिति ने सन् 1960 में अनुसूचति जातियों के अंर्तगत किसी भी जाति को शामिल करने के लिये 5 मानक निर्धारित किया:
 
1. भौगोलिक एकाकीपन
2. विशिष्ट संस्कृति
3. पिछड़ापन
4. संकुचित स्वभाव
5. आदिम जाति के लक्षण
भारत में 461 जनजातियां हैं, जिसमें से 424 जनजातियों भारत के सात क्षेत्रों में बंटी हुई हैं:
 
""" उत्तरी क्षेत्र """
(जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश)
 
जातियाँ: लेपचा, भूटिया, थारू, बुक्सा, जॉन सारी, खाम्पटी, कनोटा।
 
इन सब में मंगोल जाति के लक्षण मिलते हैं। जैसे:- तिरछी छोटी आंखे (चाइनीज, तिब्बती), पीला रंग, सीधे बाल, चेहरा चौड़ा, चपटा नाक।
 
(उत्तर प्रदेश)
 
थारु,बोक्सा,भूटिया,राजी,जौनसारी,
 
केवल केवल पूर्वी उप्र में ,गोंड़,धुरिया,नायक,ओझा,पठारी,राजगोड़,तथा देवरिया बलिया,वाराणसी,सोनभद्र में खरवार,व तलितपुर में सहरिया,केवल सोनभद्र में बैगा,पनिका,पहडिया,पंखा,अगरिया,पतरी,चेरो भूइया।
 
(बिहार)
 
असुर,अगरिया,बैगा,बनजारा,बैठुडी,बेदिया,खरवार,आदि।
 
पूर्वोत्तर क्षेत्र संपादित करें
[[Image:Ao tribesman at his village for festival celebration Nagaland India.jpg|right|thumb|200px|नागा
 
""" पूर्वी क्षेत्र """
उड़ीसा में:- जुआंग, खोड़, भूमिज, खरिया।
झारखण्ड में:- उराँव, मुंडा, संथाल, बिरहोर हो।
संथाल:- भारत की सबसे बड़ी जनजाति। संथालिय भाषा को संविधान में मान्यता प्राप्त हैं।
पश्चिम बंगाल में:- उंराँव, संथाल, मुंडा, कोड़ा
पहचान : रंग काला, चॉकलेटी कलर, लंबा सिर, चौड़ी छोटी व चपटी नाक, हल्के घुंघराले बाल। यह सभी प्रोटो ऑस्टेलाइड प्रजाति से संबधित हैं।
 
मध्य क्षेत्र संपादित करें
गोंड, परधान, बैगा, मारिया, अबूझमाडिया, धनवार/धनुहार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, हल्बा।
 
ये सभी प्रजातियां छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, पूर्वी आंध्र-प्रदेश में निवास करते हैं। ये सभी प्रोटो ऑस्टेलाइड प्रजाति से संबधित हैं।
 
पश्चिमी भारत में संपादित करें
 
गुजरात की एक आदिवासी महिला
गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र : भील, मीणा,गोंड़
दक्षिण भारत में संपादित करें
केरल:- कोटा, बगादा, टोडा। (टोडा में बहुपति प्रथा प्रचलित है।)
कुरूंबा, कादर, चेंचु, पूलियान, नायक, चेट्टी ये सभी जनजातियां नीग्रिये से संबधित हैं।
विशेषताएं:- काला/गोरा रंग, बड़े होठ,बड़े नाक
द्विपीय क्षेत्र संपादित करें
अंडमान-निकोबार- जाखा, आन्गे, सेन्टलिस, सेम्पियन (शोम्पेन)
यह जातियां नीग्रिये प्रजाति से संबधित हैं। ये लुप्त होने के कगार पर हैं।
 
==यह भी देखे==