"सरना धर्म": अवतरणों में अंतर

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चुंकि आदिवासी प्रकृति पूजक है, प्रकृति पूजक सरना धर्म को 'आदि धर्म' भी कहा जाता रहा है। सरना धर्म आदिवासियों में "[[हो भाषा|हो]]", "[[सांथाल जनजाति|संथाल]]", "[[मुण्डा]]", "[[उराँव]]" , "[[कुड़मी महतो]]" इत्यादि खास तौर पर इसको मानते हैं। जानकारी के अभाव में सरना धर्म को छोड़ कर बहुत से आदिवासी लोग [[ईसाई धर्म]] , [[हिन्दू धर्म]] और [[इस्लाम|इस्लाम धर्म]] अपना रहे हैं। जिससे <ref>[http://countrystudies.us/india/57.htm "The Green Revolution in India"]. ''U.S. Library of Congress (released in public domain)''. Library of Congress Country Studies. Retrieved 2007-10-06.</ref> जो कि आदिकाल से जिस परम्परा को मानते आ रहा है, उसे छोड़ने पर विवश हैं। सरना धर्म के अंदर अधिकतर परंपराएं प्रकृति पूजक मानी जाती है जिस प्रकार से सनातन धर्म में भी प्रकृति को पूजा जाता है, उसी प्रकार से सरना के अंदर भी आदिवासी लोग प्रकृति को पूजते हैं!
 
=== सरना धर्म ===
 
सरना धर्म क्‍या है ? यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है ? इसका आदर्श और दर्शन क्‍या है ? अक्‍सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्‍हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? लब्‍बोलुआब यह होता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्‍हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्‍य बिन्‍दुवार की जाए।
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कु्ल मिला कर यही कहा जा सकता है कि सरना एक अमूर्त शक्ति को मानता है और सीमित रूप से उसका आराधना करता है। लेकिन इस आराधना को वह सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप में नहीं बदलता है। वह आराधना करता है लेकिन उसके लिए किसी तरह के शोशेबाजी नहीं करता है। यदि वह करता है तो फिर वह कैसे सरना ???? लेकिन किसी मत को कोई मान सकता है और नहीं भी, क्‍योंकि व्‍यक्ति के पास अपना विवेक होता है और यह विवेक ही उसे अन्‍य प्राणी से अलग करता है, विवेकवान होने के कारण अपनी अच्‍छाईयों को पहचान सकता है। सब अच्‍छाईयॉं, कल्‍याणकारी पथ खोजने के लिए स्‍वतंत्र है। इंसान की इसी स्‍वतंत्रता की जय जयकार हर युग में हर तरफ हुई है
 
=== आदि धर्म कोड की मांग ===
 
दस करोड़ आदिवासियों की आबादी का क्या कोई अपना धर्म नहीं है? भारत सरकार की मानें तो नहीं? क्योंकि जनगणना प्रपत्र में इनके लिए कोई कॉलम नहीं हैं। इन्हें या तो हिंदू धर्म में विलोपित कर दिया जाता है या ईसाई में। पर, इसकी मांग लंबे समय से की जाती रही है और सरकार इसे नकारती रही है? जोहार सहिया के संपादक अश्विनी कुमार पंकज कहते हैं कि अलग धरम कोड की मांग उतनी ही पुरानी है, जितनी झारखंड आंदोलन की मांग। अलग राज्य की मांग में अलग धरम कोड की मांग भी थी। पर, कालांतर में राजनीतिक-आर्थिक कारणों की प्रबलता से यह मांग पीछे छूट गई। अब राज्य अलग हो गया तो भाषा का सवाल, धरम कोड का सवाल प्रमुखता से उठ रहा है। यह जायज भी है। यह उनके अस्तित्व से जुड़ा है। धरम कोड को लेकर एक लंबी बहस भी चली। आदिवासियों के धर्म को आदि धरम कहा जाए या सरना। आदिवासियों के पूजा स्थल को सरना स्थल कहा जाता है। इसे लेकर कहा गया कि पूजा स्थल धर्म नहीं हो सकता। दूसरे आदिवासी समुदायों ने आदि धरम नाम प्रस्तावित किया। इसमें डा. रामदयाल मुंडा का नाम प्रमुख है। उन्होंने अपने अंतिम समय में आदि धरम नामक किताब भी लिखी। वे शुरू से ही इसके पक्ष में थे कि आदिवासियों को आदि धरम से चिह्नित किया जाए। भारत सरकार ने तो संयुक्त राष्ट्र संघ में एक बार आदिवासी आबादी को ही नकार दिया था। जब काफी हो-हल्ला हुआ तो उसने स्वीकार किया। हालांकि संविधान ने आदिवासियों की एक अलग पहचान स्वीकारी है और उनकी सांस्कृतिक विशिष्टता के संरक्षण-संवर्धन के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। यहां तक कि 1960 में ढेबर कमीशन ने आदिवासी/अनुसूचित जनजातियों को इंडीजिनस के समकक्ष माना है। देश की सत्ता सदैव से ही आदिवासी आबादी को नकारती रही है। इसलिए जनगणना प्रपत्र में आज तक इनके लिए अलग से कोई कॉलम नहीं दिया गया है। अब यह मामला जोर पकड़ रहा है। जब जैन, बौद्ध, पारसी या अन्य जो जनसंख्या की दृष्टि से कम हैं, उनके लिए अलग से कॉलम है तो आदिवासियों के लिए क्यों नहीं? यही मांग लंबे समय से की जा रही है। जिनकी आबादी देश में दस करोड़ हो, उनके अस्तित्व को क्या नकारा जा सकता है? आदिवासी जनपरिषद इन्हीं सवालों को लेकर बिरसा मुंडा के जन्म स्थान से पदयात्रा कर रहा है।
 
==आदिवासियों के प्रसिद्ध त्योहार==
 
''' मुड़मा जतरा '''
 
मुड़मा नामक एक गाँव में प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। मुड़मा गाँव झारखंड की राजधानी राँची से लगभग 28 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-75 पर जिसे राँची-डलटेनगंज मार्ग के नाम से भी जाना जाता है, स्थित है। यहाँ दशहरा के दसवें दिन ‘मुड़मा जतरा’ का आयोजन झारखंड के आदिवासी समुदायों के द्वारा मेला किया जाता है। यह मेला कब और कैसे प्रारम्भ हुआ इसकी कोई लिखित प्रामाणिक जानकारी उपल्ब्द्ध नहीं है लेकिन लोकगितों एवं किवदंतियों के अनुसार जनजातीय समुदाय के उराँव आदिवासी जनजाति जो की रोहतसगढ, बिहार के थे, के पलायन से जोड़कर देखा जाता है। छोटनागपुर के इतिहास के अनुसार जब मुग़लों ने रोहतसगढ़ पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया तो वहाँ रह रहे उराँव समुदाय के लोगों को गढ़ छोड़कर भागना पड़ा था और इसी क्रम में वे सोन नदी पार कर वर्तमान पलामू होते हुए वे राँची ज़िला में प्रवेश किए जहाँ मुड़मा में इनका सामना मुंडा जनजाति के मुँड़ाओं से हुआ और जब उराँव लोगों ने अपनी व्यथा कथा मुँड़ाओं को सुनाई तब मुँड़ाओं ने इनको पश्चिम वन क्षेत्र की सफ़ाई करके वहाँ रहने की अनुमति प्रदान की थी और यह समझौता मुड़मा गाँव में हुआ था। इसलिए उराँव समुदाय के 40 पाड़हा के लोग उस ऐतिहासिक समझौते के स्मृति में ‘मुड़मा जतरा’ को आयोजित करते हैं। इस दिन सरना धर्मगुरु के अगुवाई में अधिष्ठात्री शक्ति के प्रतीक जतरा खूंटे की परिक्रमा व जतरा खूंटा की पूजा-अर्चना भी की जाती है। पाड़हा झंडे के साथ मेला स्थल पहुंचे पाहन (पुजारी) ढोल, नगाड़ा, माँदर के थाप अन्य ग्रामीणों के साथ नाचते-गाते आते हैं और मेला स्थल पर पाहन पारम्परिक रूप से सरगुजा के फूल सहित अन्य पूजन सामग्रियों के साथ देवताओं का आहवाहन करते हुए ‘जतरा खूँटा’ का पूजन करता है एवं प्रतीक स्वरूप दीप भी जलाया जाता है और इस प्रकार मेला का आरम्भ किया जाता है। इस पूजन में सफ़ेद एवं काला मुर्ग़ा की बलि भी चढ़ाई जाती है। सरना धर्मगुरु के अनुसार यह आदिवासियों का शक्ति पीठ है। आदिवासी व मुंडा समाज का मिलन स्थल भी है। यहां सभी समाज के लोग आते हैं। सुख-समृद्धि व शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।.
 
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सरहुल आदिवासियों का एक प्रमुख पर्व है जो झारखंड, उड़ीसा, बंगाल और मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह उनके भव्य उत्सवों में से एक है। यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया पर मनाया जाता है। आदिवासी लोग 'सरहुल' का जश्न मनाते हैं, जिसमें वृक्षों की पूजा की जाती है। यह पर्व नये साल की शुरुआत का प्रतीक है। यह वार्षिक महोत्सव वसंत ऋतु के दौरान मनाया जाता है एवम् पेड़ और प्रकृति के अन्य तत्वों की पूजा होती है। सरहुल का शाब्दिक अर्थ है 'साल की पूजा', सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है - इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। सरहुल कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य पारंपरिक नृत्य सरहुल नृत्य किया जाता है। सरहुल वसंत ऋतु के दौरान मनाया जाता है और साल (शोरिया रोबस्टा) पेड़ों को अपनी शाखाओं पर नए फूल मिलते हैं। आदिवासियों का मानना ​​है कि वे इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग मुख्य रूप से धान, पेड़ों के पत्ते, फूलों और फलों के फल का उपयोग कर सकते हैं। सरहुल महोत्सव कई किंवदंतियों के अनुसार महाभारत से जुडा हुआ है। जब महाभारत युद्ध चल रहा था तो मुंडा जनजातीय लोगों ने कौरव सेना की मदद की और उन्होंने इसके लिए भी अपना जीवन बलिदान किया। लड़ाई में कई मुंडा सेनानियों पांडवों से लड़ते हुए मर गए थे इसलिए, उनकी शवों को पहचानने के लिए, उनके शरीर को साल वृक्षों के पत्तों और शाखाओं से ढका गया था। निकायों जो पत्तियों और शाखाओं के पेड़ों से ढंके हुए थे, सुरक्षित नहीं थे, जबकि अन्य शव, जो कि साल के पेड़ से नहीं आते थे, विकृत हो गए थे और कम समय के भीतर सड़ गया थे। इससे साल के पेड़ पर उनका विश्वास दर्शाया गया है जो सरहुल त्योहार से काफी मजबूत है। त्योहार के दौरान फूलों के फूल सरना (पवित्र कब्र) पर लाए जाते हैं और पुजारी जनजातियों के सभी देवताओं का प्रायश्चित करता है। एक सरना वृक्ष का एक समूह है जहां आदिवासियों को विभिन्न अवसरों में पूजा होती है। कई अन्य लोगों के बीच इस तरह के एक ग्रोथ को कम से कम पांच सा वृक्षों को भी शोरज के रूप में जाना जाना चाहिए, जिन्हें आदिवासियों द्वारा बहुत ही पवित्र माना जाता है। यह गांव के देवता की पूजा है जिसे जनजाति के संरक्षक माना जाता है। नए फूल तब दिखाई देते हैं जब लोग गाते और नृत्य करते हैं। देवताओं की साला फूलों के साथ पूजा की जाती है पेड़ों की पूजा करने के बाद, गांव के पुजारी को स्थानीय रूप से जाने-पहल के रूप में जाना जाता है एक मुर्गी के सिर पर कुछ चावल अनाज डालता है स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि यदि मृगी भूमि पर गिरने के बाद चावल के अनाज खाते हैं, तो लोगों के लिए समृद्धि की भविष्यवाणी की जाती है, लेकिन अगर मुर्गी नहीं खाती, तो आपदा समुदाय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके अलावा, आने वाले मौसम में पानी में टहनियाँ की एक जोड़ी देखते हुए वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है। ये उम्र पुरानी परंपराएं हैं, जो पीढ़ियों से अनमोल समय से नीचे आ रही हैं। सभी झारखंड में जनजाति इस उत्सव को महान उत्साह और आनन्द के साथ मनाते हैं। जनजातीय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को रंगीन और जातीय परिधानों में तैयार करना और पारंपरिक नृत्य करना। वे स्थानीय रूप से बनाये गये चावल-बीयर, हांडिया नाम से पीते हैं, चावल, पानी और कुछ पेड़ के पत्तों के कन्सेक्शन से पीसते हैं और फिर पेड़ के चारों ओर नृत्य करते हैं। हालांकि एक आदिवासी त्योहार होने के बावजूद, सरहुल भारतीय समाज के किसी विशेष भाग के लिए प्रतिबंधित नहीं है। अन्य विश्वास और समुदाय जैसे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई लोग नृत्य करने वाले भीड़ को बधाई देने में भाग लेते हैं। सरहुल सामूहिक उत्सव का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां हर कोई प्रतिभागी है। इस दिन झारखंड में राजकीय अवकाश रहता है।
 
==''' इतिहास== '''
 
देश का प्रथम जनगणना 1872 में हिन्दू, मुसलमान, इसाई, जैन, बौद्द, पारसी, यहूदी की गणना हुई, सरना की नहीं. 1891 में आदिवासियों को प्रकृतिवादी के रूप में जनगणना में जगह दिया गया. 1901, 1911, 1921, 1931 और 1941 में जनजातीय समुदाय का नाम लिखा गया. 1951 में अन्य धर्म की श्रेणी में जनजातीय धर्म का अलग से पहचान को अंकित किया गया. 1961 में अधिसूचित धर्मों(हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई, जैन, बौद्द) के संक्षिप्त नाम को कोड के रूप में लिखा गया लेकिन जनजातीय समुदाय को अन्य धर्म अंतर्गत विलोपित कर दिया गया. 1971 में सिर्फ अधिसूचित धर्मों का ही रिपोर्ट प्रकाशित किया गया. 1981 में धर्म के पहले अक्षर को कोड के रूप में अंकित किया गया, सरना विलोपित रहा. 2001 और 2011 में अधिसूचित धर्मों को 1 से 6 का कोड दिया गया, जनजातियों को अन्य धर्म की श्रेणी में रखा गया लेकिन कोड प्रकाशित नहीं किया गया.
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सांस्कृतिक पहचान एक बहुत ही अमूल्य धरोहर है आदिवासियों के लिए, लेकिन आज हम धर्म और राजनीती के चक्कर में अपने मूल स्वरुप को खो सा दिए हैं, इसीलिए अपनी पहचान की स्पष्ट परिभाषा खोज पाने में असमर्थ होने की स्थिति में हम दूसरों की संस्कृति को अपना समझ और मान कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं
 
==''' सरना धर्म या संस्कृति== '''
 
मैं सरना को धर्म नहीं वरन आदिवासी जीवन जीने की पद्दति मानता हूँ. और जिस कोड की बात जनगणना में हो रही है वह वास्तव में पहचान कोड की है. जैसे हिन्दू धर्म नहीं है, सनातन है. कोड हिन्दू का है, सनातन का नहीं. जनगणना के C1 Annexure में भारत देश के अन्दर जिसने भी नाम दर्ज कराया है, उन सबका एक तकनिकी धर्म कोड अंकित होता है.
2011 जनगणना के C1 Annexure में हिन्दू का धर्म कोड 100000 है और सेक्ट कोड 000000 है. सनातन धर्म का 100000(हिन्दू का ही) और सेक्ट कोड 121000 है, जबकि सरना का धर्म कोड 701146 दर्ज होकर है. आदिवासी का धर्म कोड 701002 है. आप जो भी लिखेंगे इस टेबल में लिखा जाएगा. अब कोड की बात तो जनगणना नियमावली में जनगणना आयुक्त के पद में यह शक्ति दी गई है कि प्रकाशन की सुविधा के लिए वह आवश्यक कदम उठाएंगे. इसी शक्ति का इस्तेमाल कर अब तक सरकारों ने हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई, जैन, बौद्द के लिए कोड 1, 2 आदि आवंटित कर दिया जाता रहा है, जबकि सनातन धर्म को कोई प्रकाशन कोड आवंटित नहीं हुआ है. यह लड़ाई वास्तव में इसी प्रकाशन कोड की लड़ाई है, जो सुविधा के लिए जनगणना कार्यालय आवंटित कर रही है.
 
==''' अंतराष्ट्रीय आदिवासी दिवस क्या है और हमें क्यों मनाना चाहिए== '''
 
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संसार में बहुत बड़े स्तर पर अशांति का माहौल था। दुनिया में पुन: शांति स्थापित करने एवं मुकम्मल व्यवस्था कायम करने के इरादे से 1945 में 189 स्वतंत्र राष्ट्रों ने मिलकर एक अंतराष्ट्रिय संगठन, संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की थी। इस संस्था का महत्वपूर्ण उद्देश्य यह था कि संसार में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए की दुनिया भर में मानवाधिकारों का सम्मान हो।
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हमारी एकता ही हमारा भविष्य है, आइए हम सब एकजुट होने के हर प्रयास को साथ दें, सभी आदिवासी साथी एक दिन का अवकाश लेकर अपने-अपने क्षेत्रों में होने वाले विश्व आदिवासी दिवस समारोह में तन मन धन से सहयोग करें और अपने परिवार संग पारम्परिक वेशभूषा, आभूषण, वाद्दयंत्र एवं पारम्परिक तीर धनुष के साथ उपस्थित होकर आदिवासी सांस्कृतिक को सम्मानित एवं समृद्द बनाएँ।
 
 
==आदिवासियों अधिकारों के बारे में संयुक्त राष्ट्र का घोषणा ==
''' आदिवासियों अधिकारों के बारे में संयुक्त राष्ट्र का घोषणा '''
 
 
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*अनुच्छेद 1
 
आदिवासियों को सामूहिक रूप से अथवा व्यक्तिगत तौर पर उन सभी मानवाधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं का पूरी तरह उपभोग करने का अधिकार है, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा और अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार अधिकार कानून से स्वीकार किए गए हैं।
अनुच्छेद 2
 
*अनुच्छेद 2
 
आदिवासी भी अन्य सभी लोगों एवं व्यक्तियों की भांति ही स्वतंत्र और बराबर है, तथा उन्हें अपने अधिकारों विशेषकर उनके आदिवासी होने के कारण मिले अधिकारों को इस्तेमाल करने में किसी भी तरह से भेदभाव से मुक्त रहने का अधिकार है।
अनुच्छेद 3
 
आदिवासियों को आत्मनिर्भर का अधिकार है, इस अधिकार से ही वे अपने राजनीतिक स्थिति स्वतंत्र रूप से तय कर सकते हैं और अपने आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास के प्रयास कर सकते हैं।
*अनुच्छेद 3
अनुच्छेद 4
आदिवासियों को आत्मनिर्भर का अधिकार है, इस अधिकार से ही वे अपने राजनीतिक स्थिति स्वतंत्र रूप से तय कर सकते हैं और अपने आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास के प्रयास कर सकते हैं।
*अनुच्छेद 4
 
अपने आत्मनिर्णय के अधिकार का इस्तेमाल करने में आदिवासियों को अपने आंतरिक और स्थानीय मामलों में स्वायत्ता अथवा स्वायत्त सरकार स्थापित करने का तथा उनके स्वायत्त क्रियाकलाप के लिए वित्तीय साधन जुटाने का अधिकार भी है।
अनुच्छेद 5
 
*अनुच्छेद 5
 
आदिवासियों को अपनी विशिष्ट राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थानों को बनाए रखने और उन्हें सशक्त बनाने का अधिकार होगा, और साथ ही यदि वे चाहें तो अपने राज्य के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन में पूरी तरह भाग लेने का अधिकार भी बरकरार रहेगा।
अनुच्छेद 6
 
*अनुच्छेद 6
 
प्रत्येक आदिवासी व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार प्राप्त होगा ।
अनुच्छेद 7
 
*अनुच्छेद 7
 
1- आदिवासियों को व्यक्ति के जीवन, शारीरिक व मानसिक निष्ठा, स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार होगा।
2- आदिवासियों को विशिष्ट लोगों की भांति स्वतंत्रता, शांति और सुरक्षा के साथ जीने का सामूहिक अधिकार होगा और उनके प्रति किसी भी तरह के नरसंहार या किसी अन्य प्रकार की हिंसक कार्रवाई नहीं की जा सकेगी, जिनमें किसी समूह के बच्चों को जबरन किसी अन्य समूह में शामिल करना भी शामिल है।
अनुच्छेद 8
 
*अनुच्छेद 8
 
1- आदिवासियों और व्यक्तियों को अधिकार होगा कि उनकी संस्कृति का ज़बरन विलय अथवा नष्ट ना किया जाए
2 राज्य ऐसा प्रभावी तंत्र उपलब्ध कराएंगे जो निम्नलिखित की रोकथाम और निराकरण करेगा :
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घ) किसी भी प्रकार का जबरन विलय या समन्वय ;
ङ्) उनके विरुद्ध नस्ल आधारित अथवा जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देने के इरादे या उकसाने के इरादे से किसी भी तरह का दुष्प्रचार ;
अनुच्छेद 9
 
*अनुच्छेद 9
 
आदिवासियों का अधिकार होगा देश कि सम्बद्द परम्पराओं और रीतियों के अनुसार किसी भी आदिवासी समुदाय या देश को अपना लें, इस अधिकार के प्रयोग से किसी भी प्रकार का भेदभाव उत्पन्न नहीं होना चाहिए।
अनुच्छेद 10
 
*अनुच्छेद 10
 
आदिवासियों को उनके देश या क्षेत्र से जबरन हटाया नहीं जाएगा। सम्बद्द आदिवासियों की स्वतंत्रता एवं लिखित पूर्व सहमति के बिना कोई पुन: आवंटन नहीं होगा और उसके बाद भी न्यायसंगत एवं उचित मुआवजा देने का और हो सके उनके वापस लौट सकने के विकल्प का अनुबंद भी होना चाहिए।
अनुच्छेद 11
 
*अनुच्छेद 11
 
1- आदिवासियों को अपनी सांस्कृतिक परंपराएं और रीति-रिवाज अपनाने और उन्हें अधिक सशक्त बनाने का अधिकार है। इसमें उनका यह अधिकार भी शामिल होगा कि वह पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्थल, कला वस्तुओं, डिज़ाइनों, समारोहों, आयोजनों, प्रौद्योगिकियों और दृश्य का मंचन कला तथा साहित्य सहित अपनी संस्कृति की सभी प्राचीन, वर्तमान और भावी अभिव्यक्तियों की देखभाल, संरक्षण और विकास कर सकें;
2- राज्य आदिवासियों के कानूनों, परंपराओं और रीति-रिवाजों का उल्लंघन करके अथवा उनकी स्वतंत्र लिखित एवं पूर्व सहमति के बिना उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संपदा के संबंध में उनकी शिकायत को, उनके ही सहयोग से पुन: प्रतिष्ठित और विकसित करके दूर करके, दूर करने के उद्देश्य से शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराएगा;
अनुच्छेद 12
 
*अनुच्छेद 12
 
1- आदिवासी लोगों को अपनी आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं, रीतिरिवाजों और समारोहों को मनाने, विकसित करने और पढ़ाने-लिखाने का अधिकार होगा। अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थलों के रखरखाव, संरक्षण एवं पूरी गोपनीयता से वहां पहुंचाने, अपनी पूजा की चीजों को प्रयोग एवं नियंत्रित करने तथा अपने नश्वर अवशेषों को अपने यहां प्रत्यवर्तित कराने का अधिकार होगा।
2- राज्य पूजा-अर्चना से जुड़ी वस्तुओं और मानव अवशेषों तक पहुंच उपलब्ध कराने और/या उन्हें प्रत्यवर्तित कराने का निष्पक्ष, पारदर्शी एवं प्रभावी तंत्र सम्बद्द आदिवासियों के सहयोग से विकसित करेंगे। अनुच्छेद 13
 
*अनुच्छेद 13
 
1- आदिवासियों को अधिकार होगा कि वह अपने इतिहास, भाषाएं, मौखिक(अलिखित) सिद्दाँत, लेखन प्रणालियां और साहित्य को फिर से सशक्त बना सकें, प्रयोग कर सकें और अपनी भावी पीढ़ियों को सौंप सकें तथा समुदायों, स्थानों और व्यक्तियों के परंपरागत नाम रखे रहें।
2- राज्य प्रभावी उपाय करके सुनिश्चित करेंगे कि उनका यह अधिकार सुरक्षित रहे और यह भी सुनिश्चित करेंगे कि राजनीतिक, कानूनी और प्रशासनिक गतिविधियों को आदिवासी लोग समझ सके और उन्हें भी इन गतिविधियों से समझा जाए तथा जहां जरूरी हो वहां दुभाषियों की अथवा कोई अन्य उपयुक्त व्यवस्था की जाए।
अनुच्छेद 14
 
*अनुच्छेद 14
 
1- आदिवासियों को अधिकार है कि वे अपनी ही भाषा में तथा पढ़ने-पढ़ाने की अपनी संस्कृतिक पद्धतियों के अनुरूप उपयुक्त तरीके से शिक्षा उपलब्ध कराने वाली शिक्षा प्रणालियों और संस्थान स्थापित करके उनका नियंत्रण भी अपने पास ही रखें।
2- आदिवासियों विशेषकर बच्चों को बिना किसी भेदभाव के राज्य के सभी स्तरों की और सभी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
3- राज्य आदिवासियों के सहयोग से सभी आदिवासियों, खासकर बच्चों के लिए जिनमें अपने समुदायों से बाहर रहने वाले बच्चे भी शामिल है, यथासंभव प्रयास करेगा कि वह अपनी संस्कृति के अनुरूप और अपनी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा का पहुंच प्राप्त कर सकें।
अनुच्छेद 15
 
*अनुच्छेद 15
 
१- आदिवासियों को अपनी संस्कृति, परंपरा, इतिहास और आकांक्षाओं की गरिमा और विविधता बनाए रखने का अधिकार होगा जो उपयुक्त रूप से शिक्षा और सार्वजनिक जानकारी को प्रतिबिंबित करेगा।
२- राज्य सम्बद्द आदिवासियों के सहयोग एवं परामर्श से ऐसे प्रभावी उपाय करेंगे कि पूर्वाग्रह का सामना किया जा सके और भेदभाव समाप्त हो सके तथा आदिवासी लोगों और समाज के अन्य वर्गों के बीच संयम, आपसी समझ और सद्भावनापूर्ण संबंध विकसित हो।
अनुच्छेद 16
 
*अनुच्छेद 16
 
1- आदिवासियों को अधिकार है कि वह अपनी भाषा में अपने मीडिया(प्रचार माध्यम) स्थापित कर सकें और बिना किसी भेदभाव के हर किस्म के गैर आदिवासी मीडिया में भी पहुंच प्राप्त कर सकें;
2- राज्य ऐसे प्रभावी उपाय करेंगे जिससे सुनिश्चित हो सके कि सरकारी स्वामित्व वाले मीडिया में आदिवासी सांस्कृतिक विविधता को समुचित रूप से प्रतिबिंबित किया जा सके, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के प्रति बिना किसी पूर्वाग्रह के राज्यों को निजी स्वामित्व वाले मीडिया को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह आदिवासी संस्कृतिक विविधता को समुचित रूप से प्रचारित करें
अनुच्छेद 17
 
*अनुच्छेद 17
 
1- आदिवासियों और व्यक्तियों को लागू अंतरराष्ट्रीय और घरेलू श्रम कानूनों के अंतर्गत पदत्त सभी अधिकारों का पूरी तरह उपभोग करने का अधिकार होगा;
2- आदिवासियों के परामर्श और सहयोग से राज्य ऐसे विशिष्ट उपाय करेंगे कि आदिवासी बच्चों को आर्थिक शोषण तथा ऐसा कोई भी काम करने से बचाया जा सके जो उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता हो या जिससे उनकी शिक्षा में बाधा पड़ती हो या उनके शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक अथवा सामाजिक विकास हो, तथा यह भी ध्यान रखा जाए की वे किन पहलुओं से प्रभावित हो सकते हैं और उनके सशक्तिकरण के लिए शिक्षा कितनी आवश्यक है।
3- आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे श्रम संबंधी किसी भेदभाव के शिकार ना बनाए जा सकें, जिसमें रोजगार या वेतन आदि का भेदभाव शामिल है।
अनुच्छेद 18
 
*अनुच्छेद 18
 
आदिवासियों को अधिकार होगा कि उन मामलों में निर्णय प्रक्रिया में उनकी हिस्सेदारी हो जिनसे उनके अधिकारों पर असर पड़ सकता है, इसके लिए उनके अपने तौर तरीके से उनके ही द्वारा चुने गए प्रतिनिधि निर्णय प्रक्रिया में शामिल किए जा सकते हैं, और साथ ही वे अपनी स्वंय की आदिवासी निर्णय प्रक्रिया भी स्थापित कर सकते हैं।
अनुच्छेद 19
 
*अनुच्छेद 19
 
राज्य सम्बद्द आदिवासियों से उनके ही प्रतिनिधि संस्थानों के जरिए पूरी ईमानदारी से परामर्श और सहयोग करेंगे ताकि उनको प्रभावित करने वाले विधाई अथवा प्रशासनिक उपाय लागू करने से पहले उनकी स्वतंत्र और लिखित पूर्व सहमति ली जा सके।
अनुच्छेद 20
 
*अनुच्छेद 20
 
1- आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे अपने राजनीतिक अपने राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रणालियां स्थापित एवं विकसित कर सकें ताकि वे अपने जीवन निर्वाह और विकास का अपने साधनों(तौर-तरीकों) से आनंद उठाने में सुरक्षित रहें तथा अपनी सभी परंपराओं और अन्य आर्थिक गतिविधियों में स्वतंत्र रूप से शामिल हो सके।
2- जो आदिवासी जीवन निर्वाह और विकास के साधन से वंचित है, उन्हें न्याय संगत एवं निष्पक्ष समाधान/मुआवजा पाने का अधिकार होगा;
अनुच्छेद 21
 
*अनुच्छेद 21
 
1- आदिवासियों को बिना किसी भेदभाव के अधिकार होगा कि अपनी आर्थिक एवं सामाजिक हालात सुधार सकें जिसमें शिक्षा का क्षेत्र, रोजगार, व्यवसायिक प्रशिक्षण, और पुनर्प्रशिक्षण, आवास, साफ-सफाई, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा शामिल है;
2- राज्य उनकी आर्थिक सामाजिक हालात में निरंतर सुधार सुनिश्चित करने के वास्ते प्रभावी उपाय करेंगे और जहां जरूरी लगेगा, विशेष उपाय करेंगे, आदिवासी बृदजनों, महिलाओं, युवाओं, बच्चों और विकलांगों के अधिकारों और खास जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
अनुच्छेद 22
 
*अनुच्छेद 22
 
1- इस घोषणा को कार्यान्वित करते समय आदिवासी बृदजनों, महिलाओं, युवाओं, बच्चों और विकलांगों के अधिकारों और खास जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
2- आदिवासियों के सहयोग से राज्य यह सुनिश्चित करने के उपाय करेंगे कि आदिवासी महिलाएं और बच्चे किसी भी प्रकार की हिंसा और भेदभाव से पूरी तरह सुरक्षित एवं आश्वस्त रहें;
अनुच्छेद 23
 
*अनुच्छेद 23
 
आदिवासियों को अधिकार है कि वे विकास के अधिकार को इस्तेमाल करने की प्राथमिकताएं और नीतियां तय कर सकें, विशेषकर आदिवासियों को स्वयं को प्रभावित करने वाले स्वास्थ्य, आवास और अन्य आर्थिक, सामाजिक कार्यक्रम निर्धारित करने का अधिकार होगा, और जहां तक संभव हो वे ऐसे कार्यक्रमों को अपने ही संस्थाओं के माध्यम से लागू करेंगे।
अनुच्छेद 24
 
*अनुच्छेद 24
 
1- आदिवासियों को अपनी परंपरागत औषधियां तथा स्वास्थ्य पद्धतियां बनाए रखने का अधिकार होगा, जिनमें उनके महत्वपूर्ण औषधीय पौधों, पशुओं और खनिजों का संरक्षण शामिल है। आदिवासी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के सभी सामाजिक एवं स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने का भी अधिकार है ।
2- आदिवासी व्यक्तियों को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के सर्वोच्च प्राप्य स्तर का सुख लेने का अधिकार है। राज्य इस अधिकार का पूर्ण क्रियान्वयन बनाए रखने की दृष्टि से आवश्यक उपाय करेंगे।
अनुच्छेद 25
 
*अनुच्छेद 25
 
आदिवासियों को परंपरागत रूप से अधिकृत और प्रयोग की जा रही जमीनों, भूखंडों, जल क्षेत्रों और तटीय सागरों तथा अन्य संसाधनों पर अपना विशिष्ट आध्यात्मिक संबंध बनाए रखने और उसे मजबूत करने का अधिकार है, और साथ ही इस बारे में अपनी भावी पीढ़ियों के प्रति दायित्व निभाने का भी अधिकार है।
अनुच्छेद 26
 
*अनुच्छेद 26
 
1- आदिवासियों को उन जमीनों, राज्य क्षेत्रों और संसाधनों पर अधिकार होगा जो परंपरा से उनके स्वामित्व, कब्जे या अन्य प्रकार के इस्तेमाल अथवा नियंत्रण में रही है।
2- आदिवासियों को वे जमीने, राज्यक्षेत्र और संसाधन स्वामित्व में लेने, इस्तेमाल करने, उन्हें विकसित करने अथवा नियंत्रण में रखने का अधिकार है, जिन पर उनका परंपरागत स्वामित्व है या किसी परंपरागत कब्जे या इस्तेमाल से उनके पास है, या किसी भी अन्य प्रकार से उनके नियंत्रण में है।
3- राज्य इन जमीनों, क्षेत्रों और संसाधनों के लिए कानूनी मान्यता एवं संरक्षण प्रदान करेंगे। इस प्रकार की मान्यता देते समय संबद्ध आदिवासी लोगों के रीति-रिवाजों, परंपराओं और जमीन की पट्टेदारी व्यवस्था का पूरा सम्मान किया जाएगा।
अनुच्छेद 27
 
*अनुच्छेद 27
 
राज्य सम्बद्द आदिवासी लोगों की सहमति एवं सहयोग से एक निष्पक्ष, स्वतंत्र, न्याय संगत, खुली और पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित करेंगे जिसमें आदिवासियों के कानूनों, परंपराओं, रीति-रिवाजों और भू-पट्टे दारी व्यवस्थाओं को समुचित मान्यता दी जाएगी तथा आदिवासियों की जमीनों, क्षेत्रों और संसाधनों पर उनके अधिकारों को मान्यता देकर स्वीकार किया जाएगा, जिनमें वे जमीने, क्षेत्र और संसाधन भी शामिल हैं, जिन पर परंपरा से ही आदिवासियों का अधिकार, कब्जा, इस्तेमाल या नियंत्रण रहा है। आदिवासियों को इस प्रक्रिया में शामिल होने का भी अधिकार है।
अनुच्छेद 28
 
*अनुच्छेद 28
 
1- आदिवासियों का अधिकार होगा कि अपनी शिकायत का समाधान कराने के लिए प्रत्यर्पण सहित विभिन्न उपाय अपनाएं और ऐसा संभव ना हो तो जिन जमीनों, क्षेत्रों और संसाधनों पर उनका परंपरागत स्वामित्व या अन्य प्रकार का कब्जा अथवा इस्तेमाल/नियंत्रण हो और जिन्हें उनकी स्वतंत्र, लिखित और पूर्व सहमति के बिना जब्त कर लिया गया हो या कब्जे में ले लिया गया हो या नुकसान पहुंचाया गया हो, उनका समुचित न्याय संगत मुआवजा दिया जाए;
2- संबद्ध लोगों के साथ स्वतंत्र रूप से समझौता किए बिना मुआवजा, जमीनों, क्षेत्रों और संसाधनों के रूप में ही समानता, आकार एवं गुणवत्ता पर आधारित होगा या धन के रूप में मुआवजा दिया जाएगा या फिर कोई अन्य उपयुक्त समाधान उपलब्ध कराया जाएगा।
अनुच्छेद 29
 
*अनुच्छेद 29
 
1- आदिवासियों को अधिकार होगा कि अपनी जमीनों एवं संसाधनों के पर्यावरण एवं उत्पादक क्षमता का संरक्षण कर सकें। राज्य इस प्रकार के संरक्षण और बचाव के लिए बिना किसी भेदभाव के, आदिवासियों के लिए सहायता कार्यक्रम बनाकर उन्हें लागू करेंगे
2- राज्य यह सुनिश्चित करने के उपाय करेंगे कि आदिवासियों की जमीनों और क्षेत्रों में उन लोगों की स्वतंत्र, लिखित एवं पूर्व सहमति के बिना खतरनाक सामग्रियों का किसी भी प्रकार का भंडारण अथवा निपटान नहीं किया जाएगा;
3- राज्य आवश्यक होने पर, यह सुनिश्चित करने के भी प्रभावी उपाय करेंगे कि ऐसे सामग्री से प्रभावित आदिवासियों द्वारा स्वास्थ्य की निगरानी, देखभाल और बहाली के कार्यक्रम उपयुक्त रूप में क्रियान्वित किए जाएं।
अनुच्छेद 30
 
*अनुच्छेद 30
 
1- आदिवासियों के देशों या क्षेत्रों में सैनिक गतिविधियां नहीं होंगी जब तक कि व्यापक जनहित के कारण अथवा स्वतंत्र सहमति के आदिवासी स्वयं इस आशय का अनुरोध ना करें;
2- आदिवासियों की जमीनों या क्षेत्रों का सैनिक गतिविधियों के वास्ते इस्तेमाल करने से पहले राज्य सम्बद्द आदिवासियों के साथ मिलकर उपयुक्त प्रक्रिया के जरिए व्यापक एवं प्रभावी विचार विमर्श करेंगे।
अनुच्छेद 31
 
*अनुच्छेद 31
 
1- आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे अपनी सांस्कृतिक धरोहर, परंपरागत ज्ञान और पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों तथा अपने विज्ञान, प्रद्द्योगिकियों तथा संस्कृतियों की अभिव्यक्ति को बरकरार, सुरक्षित एवं नियंत्रित रख सकें, जिसमें मानवीय एवं वंशानुगत संसाधन, बीज, औषधीयां, वनस्पतियां एवं जड़ी बूटियों के गुण दोषों के प्रयोग, मौखिक परंपरा, साहित्य, शैलियां, खेल-कूद और परंपरागत खेल कौशल (शिकार) तथा दृश्य एवं मंचन कलाएं शामिल है। उन्हें या भी अधिकार होगा कि ऐसे सांस्कृतिक धरोहर, पारंपरिक ज्ञान और परंपरागत संस्कृतिक अभिव्यक्तियों पर अपनी बौद्धिक संपदा को बरकरार, नियंत्रण में सुरक्षित रख सकें और इनका विकास कर सकें;
2- आदिवासियों की सहमति से राज्य इन अधिकारों को मान्यता देने और उनका सुरक्षित प्रयोग सुनिश्चित करने के प्रभावी उपाय करेंगे।
अनुच्छेद 32
 
*अनुच्छेद 32
 
1- आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे अपनी जमीन, क्षेत्रों तथा संसाधनों के विकास की प्राथमिकताएं एवं नीतियां तय कर सकें;
2- राज्य आदिवासियों के देशों, क्षेत्रों या अन्य संसाधनों को प्रभावित करने वाली किसी भी परियोजना को स्वीकृत करने से पहले उनकी स्वतंत्र एवं सूचित सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से उनके ही प्रतिनिधि संस्थाओं के माध्यम से आदिवासी लोगों के साथ परामर्श एवं सहयोग करेंगे;
3- राज्य की ऐसी किसी भी गतिविधि के लिए न्याय संगत और निष्पक्ष क्षतिपूर्ति का प्रभावी तंत्र उपलब्ध कराएंगे, साथ ही पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक दृष्टि से हो सकने वाले प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के भी प्रयास करेंगे।
अनुच्छेद 33
 
*अनुच्छेद 33
 
1- आदिवासियों का अधिकार होगा कि वे अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुरूप अपनी पहचान या सदस्यता निर्धारित कर सकें, इससे आदिवासियों के इन राज्यों की नागरिकता पाने के अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा जहां यह रहते हैं;
2- आदिवासियों को अपने तौर-तरीकों के हिसाब से अपनी संस्थाओं की संरचना तय करने और उनकी सदस्यता सदस्यता चुनने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 34
 
*अनुच्छेद 34
 
आदिवासी लोगों को अधिकार है कि वे अपने संस्थागत ढांचे और उनके विशिष्ट तौर-तरीकों, आध्यात्मिक परम्पराओं, क्रियाकलाप, धार्मिक कृत्यों और यदि हो तो न्यायिक व्यवस्था या रितियों को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप प्रेरित, विकसित और सुरक्षित रखने के उपाय कर सकें।
अनुच्छेद 35
 
*अनुच्छेद 35
 
आदिवासियों का अधिकार है कि वे अपने समुदायों के प्रति सभी व्यक्तियों के दायित्व तय कर सकें।
अनुच्छेद 36
 
*अनुच्छेद 36
 
आदिवासियों और खासकर अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से विभाजित हुए आदिवासी लोगों को अपने यहां रहने वालों और सीमाओं के पार रहने वालों के साथ आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक उद्देश्यों से संपर्क, संबंध और सहयोग बनाए रखने और आगे बढ़ाने का अधिकार है।
अनुच्छेद 37
 
*अनुच्छेद 37
 
1- आदिवासियों को राज्यों या उनके उत्तराधिकारियों के साथ की गई संधियों, समझौतों और अन्य रचनात्मक व्यवस्थाओं को मान्यता दिलाने, उनका परिपालन कराने और उन्हें लागू कराने का अधिकार है।
2- घोषणा में शामिल किसी भी अंश को आदिवासियों के इन संधियों, समझौतों और अन्य रचनात्मक व्यवस्थाओं में निहित अधिकारों को हल्का करने या उनका महत्व कम करने वाला नहीं माना जाना चाहिए।
अनुच्छेद 38
 
आदिवासियों के साथ परामर्श और सहयोग से इस घोषणा की उद्देश्य की पूर्ति के लिए विधाई उपायों सहित राज्य सभी उपयुक्त प्रयास करेंगे।
*अनुच्छेद 38
अनुच्छेद 39
 
आदिवासियों के साथ परामर्श और सहयोग से इस घोषणा की उद्देश्य की पूर्ति के लिए विधाई उपायों सहित राज्य सभी उपयुक्त प्रयास करेंगे।
 
*अनुच्छेद 39
 
आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे इस घोषणा में उल्लेखित अधिकारों का इस्तेमाल कर सकने के उद्देश्य से राज्यों से आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकें और उसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी ले सकें।
अनुच्छेद 40
 
*अनुच्छेद 40
 
आदिवासियों को अधिकार है कि राज्यों एवं अन्य पक्षों के साथ चल रहे टकराव और विवादों का समाधान न्याय संगत और निष्पक्ष तरीकों से करने के वास्ते तुरंत निर्णय ले सकें और साथ ही अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक अधिकारों के किसी भी प्रकार के उल्लंघन का प्रभावी उपचार कर सकें। इस प्रकार के निर्णय में सम्बद्द आदिवासी लोगों के रीति-रिवाजों, परंपराओं, नियमों एवं कानूनी प्रणालियों तथा अंतरराष्ट्रीय मनवाधिकारों पर समुचित ध्यान दिया जाएगा।
अनुच्छेद 41
 
*अनुच्छेद 41
 
संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंग और उसकी विशेष एजेंसियां तथा अन्य अंतर-सरकारी संगठन वित्तीय सहयोग और तकनीकी सहायता के द्वारा इस घोषणा के प्रावधानों को पूर्णतया क्रियान्वित कराने में योगदान देंगे। आदिवासी लोगों को प्रभावित करने वाले मामलों में उनका सहयोग सुनिश्चित करने के तौर-तरीके भी तय किए जाएंगे।
अनुच्छेद 42
 
*अनुच्छेद 42
 
संयुक्त राष्ट्र आदिवासियों के मुद्दों के बारे में स्थाई मंच सहित उसकी संस्थाएं और राष्ट्र स्तर की एजेंसियां समेत विशेष एजेंसियां और राज्य इस घोषणा के प्रावधानों को पूरा सम्मान देते हुए इनके पूर्ण क्रियान्वयन के लिए प्रयास करेंगे तथा इस घोषणा की प्रभाविकता आँकने के उपाय भी अपनाएंगे।
अनुच्छेद 43
 
*अनुच्छेद 43
 
इसमें शामिल अधिकार दुनियाभर के आदिवासियों के अस्तित्व, मान-सम्मान और कल्याण का न्यूनतम स्तर है।
अनुच्छेद 44
 
*अनुच्छेद 44
 
इसमें शामिल सभी अधिकारों और स्वतंत्रताओं की सभी पुरुष और महिला आदिवासियों के लिए पक्की गारंटी होगी।
अनुच्छेद 45
 
*अनुच्छेद 45
 
इस घोषणा के किसी भी अंश या प्रावधान को आदिवासियों के मौजूदा या भावी अधिकारों को कम या समाप्त करने का आधार न माना जाए जाए।
अनुच्छेद 46
 
*अनुच्छेद 46
 
1- इस घोषणा में शामिल किसी अंश या प्रावधान का अर्थ यह कदापि न लगाया जाए कि किसी भी राज्य, लोगों, समूह या व्यक्ति को ऐसा कोई अधिकार मिल जाएगा कि वह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के विरुद्ध कोई कार्य कर सकें अथवा ऐसे किसी भी कार्य को मान्यता या प्रोत्साहन मिल जाएगा, जिससे सार्वभौम एवं स्वतंत्र राज्यों की राज्यक्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक एकता पर पूरी तरह अथवा आंशिक रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
2- प्रस्तुत घोषणा में दिए गए अधिकारों को इस्तेमाल करते वक्त सभी के मानवाधिकारों और मूल अधिकारों का सम्मान किया जाएगा। इस घोषणा में निहित अधिकारों का इस्तेमाल करते समय केवल कानून द्वारा निर्धारित और अंतरराष्ट्रीय मनवाधिकारों के अनुरूप सीमाएं ही लागू होगी। इस तरह की सीमा लगाने में कोई भेदभाव नहीं बरता जाएगा और इसका एक मात्र उद्देश्य अन्य सभी के अधिकारों और स्वतंत्रता की मान्यता और प्रतिष्ठा सुनिश्चित करना तथा लोकतांत्रिक समाज की न्यायसंगत एवं अनिवार्य मांगों को पूरा करना है।
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* [[ राजस्थान]] - 9450000 (अनुमानित)
 
=== आदिवासी भाषाएँ ===
 
भारत में सभी आदिवासी समुदायों की अपनी विशिष्ट भाषाएं है। भाषाविज्ञानियों ने भारत के सभी आदिवासी भाषाओं को मुख्यतः तीन भाषा परिवारों में रखा है- द्रविड़, आस्ट्रिक और चीनी-तिब्बती। लेकिन कुछ आदिवासी भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत भी आती हैं। आदिवासी भाषाओं में ‘भीली’ बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है जबकि दूसरे स्थान पर ‘गोंडी’ भाषा और तीसरे स्थान पर ‘संताली’ भाषा है। भारतीय राज्यों में एकमात्र झारखण्ड में ही 5 आदिवासी भाषाओं - संताली, मुण्डारी, हो, कुड़ुख और खड़िया - को 2011 में द्वितीय राज्यभाषा का दर्जा प्रदान किया गया।
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यह जातियां नीग्रो प्रजाति से संबधित हैं। ये लुप्त होने के कगार पर हैं।
 
=== भारत की प्रसिद्ध जनजाति ===
 
* [[मीणा]]
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* [[बंजारा]]
* [[मुण्डा]]
 
== भारतीय आदिवासी सेना ==
 
भारत के सभी आदिवासी समुदायों में एकजुटता स्थापित करने के लिए आदिवासी सेना की स्थापना 7 अप्रैल 2016 को बृजेश मीणा ( राष्ट्रीय अध्यक्ष ) के तत्वावधान में की गई है ।
 
"""भारतीय आदिवासी सेना का उद्देश्य"""
 
* आदिवासी समुदायों को अंधविश्वास, पाखण्डवाद,जातिवाद, मूर्तिपूजा,ब्राह्मणवाद,मनुवाद आदि के खिलाफ जागरूक करना।
* सभी आदिवासी समुदायों के मध्य भाईचारा, एकता स्थापित करना।
* आदिवासी संस्कृति,भाषा,लिपि की रक्षा करना।
* आदिवासी समुदायों को शिक्षित करना।
* आदिवासी धर्म की भारत सरकार से मांग ।
* जल,जंगल, जमीन पर आदिवासियों का मालिकाना हक।
 
==यह भी देखे==