"ब्रह्मचारी": अवतरणों में अंतर

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ब्रह्मचर्य दो शब्दो 'ब्रह्म' और 'चर्य' से बना है। ब्रह्म का अर्थ पर्मात्मा;चर्य का अर्थ विचरना, अर्थात पर्मात्मा मे विचरना, सदा उसी का ध्यान करना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है। महाभारत के रचयिता व्यासजी ने विशेयेन्द्रिय द्वारा प्राप्त होने वाले सुख के सन्यमपूर्वक त्याग करने को ब्रह्मचर्य कहा है।
 
[[शतपथ ब्राह्मण]] में ब्रह्मचारी की चार प्रकार की शक्तियों का उल्लेख आता है-
# अग्नि के समान तेजस्वी,
# मृत्यु के समान दोष एवं दुर्गुणों के मारण की शक्ति,
# आचार्य के समान दूसरों को शिक्षा देने की शक्ति,
# संसार के किसी भी स्थान, वस्तु, व्यक्ति आदि की अपेक्षा रखे बिना आत्माराम होकर रहना।