"पतञ्जलि": अवतरणों में अंतर
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== योगदान ==
पतंजलि महान चिकित्सक थे और इन्हें ही '[[चरक संहिता]]' का प्रणेता माना जाता है। '[[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]]' पतंजलि का महान अवदान है। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे
:'''योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शारीरस्य च वैद्यकेन।'''
:'''योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतंजलिं प्रांजलिरानतोऽस्मि॥'''
(अर्थात् चित्त-शुद्धि के लिए योग ([[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]]), वाणी-शुद्धि के लिए [[व्याकरण]] ([[महाभाष्य]]) और शरीर-शुद्धि के लिए वैद्यकशास्त्र ([[चरक संहिता|चरकसंहिता]]) देनेवाले मुनिश्रेष्ठ पातंजलि को
ई.पू. द्वितीय शताब्दी में '[[महाभाष्य]]' के रचयिता पतंजलि काशी-मण्डल के ही निवासी थे। मुनित्रय की परंपरा में वे अंतिम मुनि थे। [[पाणिनि|पाणिनी]] के पश्चात् पतंजलि सर्वश्रेष्ठ स्थान के अधिकारी पुरुष हैं। उन्होंने पाणिनी व्याकरण के महाभाष्य की रचना कर उसे स्थिरता प्रदान की। वे अलौकिक प्रतिभा के धनी थे। व्याकरण के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों पर भी इनका समान रूप से अधिकार था। व्याकरण शास्त्र में उनकी बात को अंतिम प्रमाण समझा जाता है। उन्होंने अपने समय के जनजीवन का पर्याप्त निरीक्षण किया था। अत: महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का [[विश्वज्ञानकोश|विश्वकोश]] भी है। यह तो सभी जानते हैं कि पतंजलि शेषनाग के अवतार थे। द्रविड़ देश के सुकवि रामचन्द्र दीक्षित ने अपने 'पतंजलि चरित' नामक काव्य ग्रंथ में उनके चरित्र के संबंध में कुछ नये तथ्यों की संभावनाओं को व्यक्त किया है। उनके अनुसार [[आदि शंकराचार्य]] के दादागुरु आचार्य गौड़पाद पतंजलि के शिष्य थे किंतु तथ्यों से यह बात पुष्ट नहीं होती है।
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