"क्रस्टेशिया": अवतरणों में अंतर

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अधिकतर निम्न कठिनी शरीतल से साँस लेते हैं, परंतु जिन जीवों का बहि:कंकाल (Exoskeleton) अधिक कठोर हो गया है वे श्वसन कार्य अपने उन शरीरस्थानों से करते हैं जहाँ का तल क्षीण रह गया है, जैसे कैरापेस (Carapace) का अस्तर; अथवा यह काम विशेष इंद्रियों द्वारा होता है, जिनको जलश्वसनिका (गिल्ज़) कहते हैं। जलश्वसनिका वक्ष (Thorax) या उसके अंगों पर स्थित शाखिकाएँ (branchlets) हैं जिनका आकार चपटा होता है और जिनकी सूक्ष्म भीतों के भीतर रुधिर प्रवाहित होता रहता है। डेकापोडा (Decapoda) में जलश्वनिकाएँ अपनी स्थिति के आधार पर तीन श्रेणियों में रखी गई हैं-वक्षांगमूल की शाखिकाएँ (Prodobranch), वक्षांगों के समीप की शाखिकाएँ (Arthrobranch) तथा ब्रैंकियल मंडल (pleurobranch) भीतरी भाग जो केरापेस से ढके रहते हैं। थलनिवासी कठिनी, जैसे केकड़े इत्यादि, वायुश्वसन के लिए अनुकूलित होते हैं-इनके ब्रैकियल मंडल के अस्तर का तल फेफड़ों का कार्य करता है। अन्य जीवों में, जैसे आइसोपोडा (Isopoda), काष्ठयूका (wood-lice) इत्यादि में, उदरांगों में शाखाविन्यस्त वायु भरी नलिकाएँ पाई जाती हैं, जो कीट तथा अन्य स्थलजीवों की श्वासनलियों (trachea) के समान होती हैं।
 
== आहारतंत्र (DigestivDigestive esystemsystem) ==
कठिनियों में आहारनली (Alimentary canal) प्रतिपृष्ठ मुख से लेकर अंत तक पूर्ण शरीर में सदैव सीधी रहती है। परंतु इस वर्ग के कुछ ऐसे जीव भी हैं जिनमें यह न्युदेष्टित (Twisted) अथवा कुंडलित भी पाई जाती है। अन्य संधिपाद जीवों के समान यह भी तीन भागों में विभाजित रहती है। अग्रांत्र (स्टोमोडियम, Stomodaeum) तथा पश्चांत्र (प्रॉक्टोडियम, Procctodaeum), जिनके छिद्र मुख तथा गुदा हैं और जिनका आंतरिक तल काइटिन (chitin) से, जो बाह्य शरीर के काइटिन के साथ संलग्न रहता है, आच्छादित रहते हैं। तीसरा भाग मध्यांत्र (mesenteron, midgut) है, जो इन दोनों के मध्य में रहता है। अग्रांत्र की पेशियाँ प्रबल होती हैं और इनके अंतरीय तल पर बाल, काँटे तथा दाँत इत्यादि विकसित रहते हैं। मेलाकॉस्ट्राका में यह भाग आमाशय बनाता है, जिसमें जठर, पेषणी तथा छानन उपकरण खाद्य रसों को कणों से अलग करने के लिए विशेष साधन रहते हैं। परंतु पेषणी तथा छाननी प्राय: हृदीय (कार्डियक, cardiac) तथा निजठरीय (पाइलोरिक, Pyloric) विभागों में पृथक रहते हैं। मध्यांत्र के अगले सिरे पर एक जोड़ी या अधिक यकृत (hepatic) उंडुक (सीकम, द्र) रहते हैं जिनका कार्य अवशोषण तथा स्राव हैं और जिनमें से शाखा निकलकर यकृत भी बना सकती है। डेकापोडा में यकृत ग्रंथि (Hepam-pancreas) प्राय: सारे आवश्यक एंज़ाइम (enzyme) बनाती है और साथ अपनी गुहा से वंचित पदार्थों का शोषण भी करती हैं। इसी में भोजन ग्लाइकोजन (Glycogen) के रूप में संचित होता है। कुछ डेकापोडा में मध्यांत्र बहुत छोटी होती है जिसके कारण आहारनली केवल अग्र तथा पश्च आंत्र की बनी विदित होती है। पराश्रयी कठिनी जीवों में आहारनली या तो नाममात्र की होती है अथवा उसका बिलकुल अभाव होता है।