"शुनःशेप": अवतरणों में अंतर
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भाग्यवश जंगल में इधर-उधर घूमते रोहित को अजीगर्त नामक स्त्री एक गरीब ब्राह्मण के पास ले आई। उससे रोहित ने अपनी कहानी कही। अजीगर्त के तीन बेटे थे - शुन:पुच्छ, शुन:लांगूल और शुन:शेप। शुन:शेप मंझला पुत्र था और बचपन से ही बहुत समझदार और विवेकवान था। अजीगर्त ने लालच में आकर रोहित से कहा कि सौ गायों के बदले वह अपने एक पुत्र को बेचने को तैयार है। उस पुत्र को वह अपने बदले वरुण देवता को सौंप कर अपनी जान बचा सकता है। दूसरी ओर शुन:शेप ने सोचा, छोटा भाई मां का लाड़ला है, बड़ा भाई पिता का लाड़ला है, यदि मैं चला जाऊं तो दोनों में से किसी को कोई अफसोस नहीं होगा। इसलिए वह खुद ही रोहित के साथ जाने को तैयार हो गया। वरुण देव भी कोई कम लोभी नहीं थे। वे यह सोच कर प्रसन्न हो गए कि मुझे अपने अनुष्ठान के लिए क्षत्रिय बालक के बदले ब्राह्मण बालक मिल रहा है जो श्रेष्ठतर है।
[[यज्ञ]] में नर बलि की तैयारी शुरू हुई, चार पुरोहितों को बुलाया गया। अब शुन:शेप को बलि स्तंभ से बांधना था। लेकिन इसके लिए उन चारों में से कोई तैयार नहीं हुआ, क्योंकि शुन:शेप [[ब्राह्मण]] था। तब अजीगर्त और सौ गायों के बदले खुद ही अपने बच्चे को यज्ञ स्तंभ से बांधने को तैयार हो
कुछ और विद्वानो के अनुसार शुन:शेप कौशिको के कुल मे उतपन्न महान तपस्वी विश्वामित्र ( विश्वरथ ) व विश्वमित्र के शत्रु शाम्बर की पुत्री उग्र की खोई हुयी सन्तान था जिसे भरतो (कौशिको ) के डर से लोपमुद्रा ने अजीतगर्त के पास छिपा दिया था। भरतो ने उग्र को मार दिया।
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