"निम्बार्काचार्य": अवतरणों में अंतर

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श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय :-
वैष्णव चतु:सम्प्रदाय में श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय अत्यन्त प्राचीन अनादि वैदिक सत्सम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय के आद्याचार्य श्रीसुदर्शनचक्रावतार जगद्गुरु श्रीभगवन्निम्बार्काचार्य है । आपकी सम्प्रदाय परम्परा चौबीस अवतारों में श्रीहंसावतार से प्रारम्भ होती है। श्रीहंस भगवान्‌ से जिस परम दिव्य पंचपदी विद्यात्मक श्रीगोपाल-मन्त्रराज का गूढतम उपदेश जिन महर्षिवर्य चतु: सनकादिकों को प्राप्त हुआ, उसी का दिव्योपदो देवर्षिप्रवर श्रीनारदजी को मिला और वही उपदेश द्वापरान्त में महाराज परीक्षित के राज्यकाल में श्रीनारदजी से श्रीनिम्बार्क भगवान्‌ को प्राप्त हुआ। निखिलभुवनमोहन सर्वनियन्ता सर्वेश्वर भगवान्‌‌ श्रीकृष्ण की मंगलमयी पावन आज्ञा शिरोधार्य कर चक्रराज श्रीसुदर्शन ने ही इस धराधाम पर भारतवर्ष के दक्षिण में महर्षिवर्य श्रीअरूण के पवित्र आश्रम में माता जयन्तीदेवी के उदर से श्रीनियमानन्द के रूप में अवतार धारण किया।
अल्पवय में ही माता जयन्ती, महर्षि अरूण के साथ उत्तर भारत में व्रजमण्डल स्थित गिरिराज गोवर्धन की सुरम्य उपत्यका तलहटी में आपने निवास किया, जहाँ पर आपको देवर्षिप्रवर श्रीनारदजी से वैष्णवी दीक्षा में वही पंचपदी विद्यात्मक श्रीगोपालमन्त्रराज का पावन उपदो तथा श्रीसनकादि संसेवित श्रीसर्वेश्वर प्रभु, जो सूक्ष्म शालग्राम स्वरूप दक्षिणावर्ती चक्रांकित है, उनकी अनुपम सेवा प्राप्त हुई यह सेवा श्रीहंस भगवान्‌ से श्रीसनकादिकों को और इनसे श्रीनारदजी को मिली, जो आगे चलकर द्वापरान्त में श्रीनिम्बार्क भगवान्‌ को प्राप्त हुई। वही सेवा अद्यावधि अखिल भारतीय श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ में आचार्य परम्परा से चली आरही है। श्रीसुदर्शनचक्रराज ही नियमानन्द के रूप में इस भूतल पर प्रकट हुए और आप ही श्रीनिम्बार्क नाम से परम विख्यात हुए। सूर्यास्त के समय जगत्स्रष्टा ​श्रीब्रह्माश्रीब्रा जीने ​नेछ रूप से एक दिवाभोजी दण्डी यति के रूप में व्रज में गिरिराज के निकटवर्ती आश्रम में सूर्यास्त होने पर भी नियमानन्द से निम्बवृक्ष पर सूर्य दर्शन कराके उनका भोजनादि से आतिथ्य ग्रहण किया, जिससे ​श्रीब्रह्मा जीश्रीब्राजी ने उन्हें श्रीनिम्बार्क नाम से सम्बोधित किया। इसी से आप श्रीनिम्बार्क नाम से ही ​विश्व​ ​विव विख्यात हुए।
आपने प्रस्थानत्रयी पर भाष्य रचना कर स्वाभाविक द्वैताद्वैत नामक सिद्धान्त का प्रतिष्ठापन किया। श्रीवृन्दावननिकुंजविहारीवृन्दावननिकुंजविहारी युगलकिशोर भगवान्‌ श्रीराधाकृष्ण की श्रुति-पुराणादि शास्त्रसम्मत रसमयी मधुर युगल उपासना का आपने सूत्रपात कर इसका प्रचुर प्रसार किया। कपालवेध स़िद्धान्तानुसार विद्धा एकादाशी त्याज्य एवं शुद्धा एकादाशी ही ​​ग्राह्यग्रा है, व्रतोपवास के सन्दर्भ में यही आपश्री का अभिमत सुप्रसिद्ध है। सम्प्रदाय के आद्य-प्रवर्तक आप ही लोक-विश्रुत हैं। आपका प्रमुख केन्द्र व्रज में श्रीगोवर्धन के समीप निम्बग्राम ही रहा है। जिसका संरक्षण परम्परा से अखिल भारतीय श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ, निम्बार्कतीर्थ के अधीनस्थ है। श्रीनिम्बार्क भगवान्‌ के ​पट्टशिष्य पट्‌टाष्य पांचजन्य शंखावतार श्री श्रीनिवासाचार्यजी महाराज ने श्रीभगवन्निम्बार्काचार्य कृत "वेदान्त पारिजातसौरभाख्य" ​ब्रह्मसूत्र​ब्रसूत्र ​भाष्यभाष्य पर "वेदान्त कौस्तुभ" भाष्य की बृहद् रचना की। श्रीनिम्बार्क भगवान्‌ द्वारा विरचित वेदान्त कामधेनु ​​दशश्लोकिदालोकी ​परपर आचार्यवर्य श्री​पुरुषोत्तमाचार्यजीश्रीपुरूषाेामाचार्यजी महाराज ने वेदान्तरत्नमंजूषा नामक वृहद भाष्य को रचा, जो परम मननीय है। पूर्वाचार्य परम्परा में जगद्विजयी श्री​केशवकाशमीरी​भट्‌टाचार्यजीश्रीकोवकामीरिभट्‌टाचार्यजी महाराज ने वेदान्त कौस्तुभ भाष्य पर "वेदान्तकौस्तुभ-प्रभा"प्रभावृा नामक विस्तृत व्याख्या का प्रणयन किया। श्रीमद्भगवद्गीता पर भी आप द्वारा रचित तत्व-प्रकाशिका नामक व्याख्या भी पठनीय है। इसी प्रकार आपका क्रमदीपिका तन्त्र ग्रन्थ अति प्रसिद्ध है। आपने मथुरा के विश्राम घाट पर तान्त्रिक यवन काजी द्वारा लगाये गये यन्त्र को अपने यन्त्र से विफल कर हिन्दू संस्कृति एवं वैदिक सनातन वैष्णव धर्म की रक्षा की। आपके परम प्रख्यात प्रमुख शिष्य रसिकाचार्य श्री श्रीभट्‌टाचार्यजी महाराज ने व्रजभाषा में सर्वप्रथम श्री​​युगलशतकश्रीयुगलातक ​कीकी रचना कर व्रजभाषा का उत्कर्ष बढाया। आपकी यह सुप्रसिद्ध रचना व्रजभाषा की आदिवाणी नाम से लोक विख्यात है। आपके ही परम ​पट्टशिष्यपट्‌टाष्य जगद्गुरु ​जगद्गुरुनिम्बार्काचार्य ​श्री​निम्बार्क​पीठाधीश्वरपीठाधीवर ​रसिकराजरा​जेश्वररसिकराजराजेवर श्रीहरिव्यासदेवाचार्यजी महाराज ने व्रजभाषा में ही श्रीमहावाणी की रचना कर जिस दिव्य निकुंज युगल मधुर रस को प्रवाहित किया, वह व्रज-वृन्दावन के रसिकजनों का सर्व शिरोमणि देदीप्यमान कण्ठहार के रूप में अतिशय सुशोभित है। आपश्री ने जम्बू में बलि ली जाने वाली देवी को वैष्णवी दीक्षा देकर उसे प्राणियों की बलि से मुक्त कर सात्विक वैष्णवी रूप प्रदान किया। आपने श्रीनिम्बार्क भगवान्‌ कृत वेदान्त कामधेनु दशश्लोकिदालोकी पर सिद्धान्तरत्नांजलिसिद्धान्त रत्नांजलि नाम से दिव्य विस्तृत व्याख्या की रचना कर वैष्णवजनों पर अनुपम कृपा की है।
श्रीहरिव्यासदेवाचार्यजी महाराज के द्वादश प्रमुख शिष्यों में पट्टशिष्यपट्‌टाष्य श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज ने राजस्थान में पुष्कर क्षेत्र में अखिल भारतीय श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ की संस्थापना की, जो सम्पूर्ण भारत में एकमात्र सर्वमान्य आचार्यपीठ है।
आचार्य पीठ परम्परा में अब तक 48 आचार्य हुये है। जो निम्न कार से है:-
आचार्य श्री अवधि उत्सव मास तिथी
1- श्री हंस भगवान्‌ ----------- कार्तिक शुक्ल नवमी