"धृष्टद्युम्न": अवतरणों में अंतर

Gh
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
छोNo edit summary
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन उन्नत मोबाइल संपादन
पंक्ति 1:
{{ज्ञानसन्दूक महाभारत के पात्र|जीवनसाथी=|भाई-बहन=[[द्रौपदी]],(बहन) [[शिखण्डी|शिखंडी]] ,[[सत्यजीत]],[[उत्तमौजा|उत्तमानुज]],[[युद्धमन्यु]],प्रियदर्शन, सुमित्र,चित्रकेतु,सुकेतु, ध्वजकेतु,वीरकेतु ,सुरथ एवं शत्रुंजय|माता और पिता=[[द्रुपद]] (पिता)|राजवंश=[[पांचाल]]|मुख्य शस्त्र=[[धनुष]] [[बाण]] और [[खंडग]]|व्यवसाय=[[क्षत्रिय]] राजा|उत्त्पति स्थल=|संदर्भ ग्रंथ=[[महाभारत]]|देवनागरी=|संतान=|width2=|अन्य नाम=यज्ञसेनी , यज्ञासेतू|नाम=धृष्टद्युम्न|Caption=[[धृष्टद्युम्न]] [[पांडव|पांडवो]] की सेना के प्रधानसेनापति के रूप में।|width1=|Image=Drishtadyumna as Commander in chief of Pandava's Army.jpg}}
{{स्रोतहीन|date=अगस्त 2012}}
'''धृष्टद्युम्न'''
 
 
पांचालराज द्रुपद का अग्नि तुल्य
तेजस्वी पुत्र। यह पृषत अथवा जंतु
Line 13 ⟶ 11:
हुआ था। इसे ‘याज्ञसेनि’,
अथवा ‘यज्ञसेनसुत’ भी कहते थे। द्रोण से
बदला लेने के लिये, [[द्रुपद]] ने [[याज]] एवं [[उपयाज]] नामक मुनियों के
द्वारा एक यज्ञ करवाया। उस यज्ञ के ‘हविष्य’ सिद्ध होते
ही, याज ने द्रुपद
Line 29 ⟶ 27:
तेजस्वी थी। इसके मस्तक पर
किरीट, अंगों मे उत्तम कवच, एवं हाथों में खड्ग, बाण
एवं [[धनुष]] थे। अग्नि से बाहेर आते ही, यह
गर्जना करता हुआ एक रथ पर
जा चढा मानो कही युद्ध के लिये जा रहा हो। उसी समय,
Line 49 ⟶ 47:
दिलाया ‘ब्राह्मणरुपधारी व्यक्तियॉं पांडव राजपुत्र है’
। धृष्टद्युम्न अत्यंत पराक्रमी था।
इसे द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या सिखाई। भारतीय युद्ध में
== महाभारत युद्ध ==
[[महाभारत]] युद्ध में
यह पांडवपक्ष मे था। प्रथम यह पांडवों की सेना में
एक अतिरथी था।
इसकी युद्धचपलता देख कर, [[युधिष्ठिर]] ने इसे [[कृष्ण]]
की सलाह से सेनापति बना दिया
युद्धप्रसंगयुद्ध में धृष्टद्युम्न ने बडे ही कौशल्य से
अपना उत्तरदायित्व सम्हालासभाला था। द्रोणजब कौरव सेना का सेनापति [[द्रोणाचार्य]] था, तब
भीम ने [[अश्वत्थामा]] नामक [[हाथी]] को मार
कर, किंवदंती फैला दी कि, ‘अश्वत्थामा मृत
हो गया’। तब पुत्रवध की वार्ता सत्य मान कर,
उद्विग्र मन से द्रोणाचार्य ने शस्त्रसंन्यास किया। तब
अच्छा अवसर पा कर, [[धृष्टद्युम्न]] ने द्रोण[[द्रोणाचार्य]] का शिरच्छेद किया
धृष्टद्युम्न ने [[द्रोणाचार्य]]
की]] असहायका स्थितिवध में उसका वधकर किया।दिया। यह देख
कर [[सात्यकि]] ने धृष्टद्युम्न की बहुत
भर्त्सना की। तब दोनों में युद्ध छिडने
की स्थिति आ गयी। परंतु कृष्ण ने वहयुद्ध टाल दिया। आगे चल कर,
== मृत्यु ==
प्रसंग टाल दिया। आगे चल कर, युद्ध की अठारहवे
युद्ध की अठारहवे
दिन, द्रोणपुत्र अश्वत्थामन[[अश्वत्थामा]] ने अपने पिता के वध का बदला लेने के
लिये, कौरवसेना का सैनापत्य स्वीकार किया।
उसी रात को त्वेष एवं क्रोध के कारण पागलसा हो कर,
वह पांडवों के शिबिर में सर्वसंहार के हेतु घुस गया। सर्वप्रथम
अपने पिता के खूनी [[धृष्टद्युम्न]] के निवास में वह
गया। उस समय जब वह सो रहा था। अश्वत्थामन[[अश्वत्थामा]] ने इसेउसको जगाया और
अश्वत्थामन्अश्वत्थामा ने कहा, ‘मेरे पिता को निःशस्त्र अवस्था में तुमने
लत्ताप्रकार कर के जागृत किया। फिर धृष्टद्युम्न शस्त्रप्रहार
हत्या की थी । इसलिये तुम्हारी भी ऐसे ही हत्या होगी। [[अश्वत्थामा]] ने ये बोल कर [[धृष्टद्युम्न]] की हत्या कर दी।
से मृत्यु स्वीकारने के लिये तयार हुआ। किंतु
अश्वत्थामन् ने कहा, ‘मेरे पिता को निःशस्त्र अवस्था में तुमने
मारा हैं। इसलिये शस्त्र से मरने के लायक तुम
नहीं हो’। पश्चात् अश्वत्थामन् ने इसे लाथ एवं
मुक्के से कुचल संहारा किया। e
 
{{टिप्पणीसूची|२}}
 
== बाहरी ==
 
{{महाभारत}}
{{आधार}}