"विहरमान तीर्थंकर": अवतरणों में अंतर

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जय जिनेन्द्र
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जैैन धर्म मेें विहरमान तीर्थकर की संख्या २० मानी गई हैं। ये तीर्थकर वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र ( ये दुनिया हमारी पृथ्वी से भिन्न हैं)(देखें [[ब्रह्माण्ड (जैन धर्म)|जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान]]) में विराजमान हैं। [[जैन धर्म]] के प्रथम विहरमान तीर्थंकर श्री [[सिमंधरसीमंधर स्वामी]] जी हैं। ये तीर्थंकर पृथ्वी के २४ तीर्थकरो से भिन्न हैं। तीर्थंकर महाप्रभु [[ऋषभदेव]] जी इस काल के प्रथम [[तीर्थंकर]] हैं तथा भगवान [[महावीर]] २४ वें तीर्थंकर है। विहरमान का अर्थ होता हैं विराजमान अर्थात् जो तीर्थंकर वर्तमान में हैं, इन्हे वर्तमान तीर्थंकर भी कहते हैं। ये जैन परम्परा में तीर्थंकर समान होते हैं , इन्में तनिक भी अन्तर नही होता अन्तर केवल एक ही बात का होता है कि २४ तीर्थंकर परम्परा के तीर्थंकर पृथ्वी में [[भारत]] देश में जन्म लेते हैं। जबकि विहरमान तीर्थंकर महाविदेह क्षेत्र में ।इन्हें विद्यमान के बीस तीर्थंकर कहा जाता है।यहां सभी तीर्थंकर भगवन्तों के पांच कल्याणक नहीं होते हैं क्रमशः २,३, एवं पांच कल्याणक होते हैं।जैन धर्म की मान्यतानुसार छह काल होते हैं जिनमें इनका परिवर्तन भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में होता है विदेह / महाविदेह क्षेत्र में नहीं।वहां सदैव चतुर्थ काल ही प्रवर्तता है।जीव चतुर्थ काल में ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
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