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==इतिहास==
अहीरों की ऐतिहासिक उत्पत्ति को लेकर विभिन्न इतिहासकर एकमत नहीं हैं। परंतु महाभारत या श्री मदभागवत गीता के युग मे भी आभीर के आस्तित्व की अनुभूति होती है तथा उस युग मे भी इन्हें आभीर,अहीर, गोप या ग्वाला ही कहा जाता था।
अहीरों की ऐतिहासिक उत्पत्ति को लेकर विभिन्न इतिहासकर एकमत नहीं हैं। परंतु महाभारत या श्री मदभागवत गीता के युग मे भी यादवों के आस्तित्व की अनुभूति होती है तथा उस युग मे भी इन्हें आभीर,अहीर, गोप या ग्वाला ही कहा जाता था।<ref> [https://books.google.co.in/books?id=Zx4bAAAAMAAJ&q=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF&dq=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF&hl=en&sa=X&ved=0CBoQ6AEwADgoahUKEwiso6302KPIAhUDjo4KHa4eC2A मिथिला के यादव], मीनक्षी सिन्हा, महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह शोध समिति, 1993 </ref> कुछ विद्वान इन्हे भारत मे आर्यों से पहले आया हुआ बताते हैं, परंतु शारीरिक गठन के अनुसार इन्हें आर्य माना जाता है।<ref> [https://books.google.co.in/books?id=N2K7AAAAIAAJ&dq=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6&focus=searchwithinvolume&q=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+ भाषा भूगोल व सांस्कृतिक चेतना], विजय चन्द्र, विद्या प्रकाशन, 1996 मूल प्रकाशक: द यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, पृष्ठ 26 </ref> पौराणिक दृष्टि से, अहीर या आभीर यदुवंशी राजा आहुक के वंशज है।<ref name="mitala">{{पुस्तक सन्दर्भ|last1=मित्तल|first1=द्वारका प्रसाद|title=हिन्दी साहित्य में राधा|date=1970|publisher=जवाहर पुस्तकालय|url=https://books.google.co.in/books?id=WucKAAAAMAAJ&q=%E0%A4%AF%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%80+%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0&dq=%E0%A4%AF%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%80+%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjErv3KlLXNAhWGqo8KHQpPA744PBDoAQhYMAk|accessdate=19 जून 2016}}</ref> शक्ति संगम तंत्र मे उल्लेख मिलता है कि राजा ययाति के दो पत्नियाँ थीं-देवयानी व शर्मिष्ठा। देवयानी से यदु व तुर्वशू नामक पुत्र हुये। यदु के वंशज यादव कहलाए। यदुवंशीय भीम सात्वत के वृष्णि आदि चार पुत्र हुये व इन्हीं की कई पीढ़ियों बाद राजा आहुक हुये, जिनके वंशज आभीर या अहीर कहलाए।<ref> [https://books.google.co.in/books?id=N2K7AAAAIAAJ&q=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6&dq=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6&hl=en&sa=X&ved=0CCAQ6AEwAThGahUKEwjpvMuE9pbIAhXNGo4KHRGeBEo भाषा भूगोल व सांस्कृतिक चेतना], Vijaya Candra Publisher Vidyā Prakāśana, 1996 Original from the University of California, पृष्ठ 28 </ref>
 
{{cquote|आहुक वंशात समुद्भूता आभीरा इति प्रकीर्तिता। (शक्ति संगम तंत्र, पृष्ठ 164)<ref> [https://books.google.co.in/books?id=N2K7AAAAIAAJ&q=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6&dq=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6&hl=en&sa=X&ved=0CCAQ6AEwAThGahUKEwjpvMuE9pbIAhXNGo4KHRGeBEo भाषा भूगोल व सांस्कृतिक चेतना], Vijaya Candra Publisher Vidyā Prakāśana, 1996 Original from the University of California, पृष्ठ 28,29,30 </ref>}}इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि यादव व आभीर मूलतः एक ही वंश के क्षत्रिय थे तथा "हरिवंश पुराण" मे भी इस तथ्य की पुष्टि होती है।<ref name="आहुक">{{पुस्तक सन्दर्भ|last1=Agrawal|first1=Ramnarayan|title=Braja kā rāsa raṅgamc̃a|date=1981|publisher=Neśanala|location=the University of Michigan|url=https://books.google.co.in/books?id=7tAOAAAAIAAJ&q=%E0%A4%86%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5&dq=%E0%A4%86%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwj92tvX05vMAhVEB44KHXOyDAoQ6AEIOTAE|accessdate=19 अप्रैल 2016}}</ref>
 
[[भागवत]] में भी वसुदेव ने आभीर पति [[नन्द बाबा|नन्द]] को अपना भाई कहकर संबोधित किया है व श्रीक़ृष्ण ने नन्द को मथुरा से विदा करते समय गोकुलवासियों को संदेश देते हुये उपनन्द, वृषभान आदि अहीरों को अपना सजातीय कह कर संबोधित किया है। वर्तमान अहीर भी स्वयं को यदुवंशी आहुक की संतान मानते हैं।<ref name="राधा">{{cite book|first1=द्वारका प्रसाद|last1=मित्तल|title=हिन्दी साहित्य में राधा|date=1970|publisher=जवाहर पुस्तकालय|url=https://books.google.co.in/books?id=WucKAAAAMAAJ&q=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%86%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE&dq=%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%86%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%B0+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjuk8aTs57OAhVKP48KHTjiBUM4MhDoAQg4MAQ|accessdate=31 जुलाई 2016}}</ref>
 
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, अहीरों ने 108 A॰D॰ मे मध्य भारत मे स्थित 'अहीर बाटक नगर' या 'अहीरोरा' व उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले मे [[अहिरवाड़ा]] की नीव रखी थी। रुद्रमूर्ति नामक अहीर अहिरवाड़ा का सेनापति था जो कालांतर मे राजा बना। माधुरीपुत्र, ईश्वरसेन व शिवदत्त इस बंश के मशहूर राजा हुये, जो बाद मे यादव राजपूतो मे सम्मिलित हो गये।<ref name=केएसएस1/>
"https://hi.wikipedia.org/wiki/अहीर" से प्राप्त