"तारणपंथ": अवतरणों में अंतर
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==आर्हताएं==
जो सप्त व्यसन के त्याग कर अठारह क्रियाओं का पालन करता है वह तारण पंथी कहलाता है। ये अपनी पूजा को 'मंदिर विधि' कहते हैं। ये मंदिर को 'चैत्यालय' कहते हैं। ये अभिवादन के रूप में '''[[जय जिनेन्द्र|जय जिनेंद्र]]''' एवं '''जय तारण तरण''' कहते हैं।
अठारह क्रिया
धर्म की श्रध्दा (सम्यक्त्व),सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यग्चारित्र की साधना,ज्ञान दान,आहार दान,औषधि,अभय दान देना ,बड ,पीपर ,उमर ,कठूमर पाकर,मद्य(शराब),मांस,मधु(शहद) का त्याग करना,रात्रि भोजन ए्वं अनछने जल का त्यागी होना।
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