"चारण (जाति)": अवतरणों में अंतर

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युद्ध मे हारने पर या अपनी जिद पूरी ना होने पर ये जापान के समुराई योद्धाओं की भाँति स्वयं के शरीर के अंगों को भयंकर अट्टहास करते हुए स्वयं ही काट डालते और शत्रुओं को श्राप देकर अपनी जीवनलीला स्वयं समाप्त कर देते क्योंकि युद्ध से वापस आना अपमानजनक समझा जाता था । इस प्रक्रिया को “त्रगु” या “त्राग” कहा जाता था। जापान के समुराई योद्धा इसे ‘हाराकीरी’ कहते है। इस प्रकार ये हिन्दुओ के आत्मघाती हमलावर थे। जहाँ जहाँ भी ऐसा होता वहाँ उन योद्धाओं की याद में पत्थर लगा दिये जाते जिनको “पालिया” कहा जाता था। ये पत्थर अभी भी आप गुजरात और राजस्थान के चारणों के पुराने गाँवो में देख सकते है।
 
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अनिल चन्द्र बनर्जी, एक इतिहास के प्रोफेसर, ने कहा कि {{Quote|In them we have a combination of the traditional characteristics of the Brahmin and the Kshatriyas. Like the Brahmins, they adopted literary pursuits and accepted gifts.Like the Rajput, they worshipped Shakti, drank liquor, took meat and engaged in military activities. They stood at the chief portal on occasions of marriage to demand gifts from the bridegrooms, they also stood at the gate to receive the first blow of the sword."<ref name="Banerjee">{{cite book |last=Banerjee |first=Anil Chandra.|title=Aspects of Rajput State and Society |pages=124–125 |year=1983|oclc = 12236372}}</ref>}}
 
हले 1947 में भारतीय स्वतंत्रता, एक बलिदान के एक पुरुष भैंैै के गठन का एक प्रमुख हिस्सा का उत्सव [//en.wikipedia.org/wiki/Navratri नवरात्रि]है। इस तरह के समारोहों में अक्सर इस्तेेे
 
== भारतीय साहित्य में योगदान==