"शून्य": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 10:
प्राचीन [[बख्शाली पाण्डुलिपि|बक्षाली पाण्डुलिपि]] में,<ref>{{cite web|url=https://scroll.in/article/851466/how-the-invention-of-zero-helped-create-modern-mathematics|title=How India’s invention of zero helped create modern mathematics}}</ref> जिसका कि सही काल अब तक निश्चित नहीं हो पाया है परन्तु निश्चित रूप से उसका काल [[आर्यभट]]्ट के काल से प्राचीन है, शून्य का प्रयोग किया गया है और उसके लिये उसमें संकेत भी निश्चित है। २०१७ में, इस पाण्डुलिपि से ३ नमूने लेकर उनका रेडियोकार्बन विश्लेषण किया गया। इससे मिले परिणाम इस अर्थ में आश्चर्यजनक हैं कि इन तीन नमूनों की रचना तीन अलग-अलग शताब्दियों में हुई थी- पहली की 224 ई॰ – 383 ई॰, दूसरी की 680–779 ई॰, तथा तीसरी की 885–993 ई॰। इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पा रहा है कि विभिन्न शताब्दियों में रचित पन्ने एक साथ जोड़े जा सके।<ref>[http://www.bodleian.ox.ac.uk/bodley/news/2017/sep-14 "Carbon dating finds Bakhshali manuscript contains oldest recorded origins of the symbol 'zero'"]. Bodleian Library. 2017-09-14. Retrieved 2017-09-14.</ref>
 
कहते हैं।
शून्य का आविष्कार किसने और कब किया यह आज तक अंधकार के गर्त में छुपा हुआ है, परंतु सम्पूर्ण [[ब्रह्माण्ड|विश्व]] में यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि शून्य का आविष्कार [[भारत]] में ही हुआ। ऐसी भी कथाएँ प्रचलित हैं कि पहली बार शून्य का आविष्कार [[बाबिल]] में हुआ और दूसरी बार माया सभ्यता के लोगों ने इसका आविष्कार किया पर दोनो ही बार के आविष्कार [[संख्या पद्धतियाँ|संख्या प्रणाली]] को प्रभावित करने में असमर्थ रहे तथा [[ब्रह्माण्ड|विश्व]] के लोगों ने इन्हें भुला दिया। फिर [[भारत]] में [[हिन्दू|हिंदुओं]] ने तीसरी बार शून्य का आविष्कार किया। हिंदुओं ने शून्य के विषय में कैसे जाना यह आज भी अनुत्तरित प्रश्न है। अधिकतम विद्वानों का मत है कि पांचवीं [[शताब्दी]] के मध्य में शून्य का आविष्कार किया गया। [[लोकविभाग|सर्वनन्दि]] नामक दिगम्बर [[जैन धर्म|जैन]] मुनि द्वारा मूल रूप से [[प्राकृत|प्रकृत]] में रचित '''[[लोकविभाग]]''' नामक ग्रंथ में शून्य का उल्लेख सबसे पहले मिलता है। इस ग्रंथ में [[दशमलव पद्धति|दशमलव संख्या पद्धति]] का भी उल्लेख है।
 
सन् 498 में भारतीय [[गणितज्ञ]] एवं [[खगोल शास्त्र|खगोलवेत्ता]] [[आर्यभट]]्ट ने [[आर्यभटीय]] ([ संख्यास्थाननिरूपणम् ]) में कहा है-
 
: ''एकं च दश च शतं च सहस्रं तु अयुतनियुते तथा प्रयुतम्।
: ''कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानात्स्थानं दशगुणं स्यात् ॥ २ ॥
 
अर्थात् "एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, नियुत, प्रयुत, कोटि, अर्बुद तथा बृन्द में प्रत्येक पिछले स्थान वाले से अगले स्थान वाला दस गुना है।"<ref>[https://books.google.co.in/books?id=blpvBQAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false महान् खगोलविद्-गणितज्ञ आर्यभट] (गूगल पुस्तक ; दीनानाथ साहनी)</ref> और शायद यही संख्या के दशमलव सिद्धान्त का उद्गम रहा होगा। [[आर्यभट]]्ट द्वारा रचित गणितीय [[खगोल शास्त्र|खगोलशास्त्र]] ग्रंथ '[[आर्यभटीय|आर्यभट्टीय]]' के [[संख्या पद्धतियाँ|संख्या प्रणाली]] में शून्य तथा उसके लिये विशिष्ट संकेत सम्मिलित था (इसी कारण से उन्हें संख्याओं को शब्दों में प्रदर्शित करने के अवसर मिला)।
 
उपरोक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि [[भारत]] में शून्य का प्रयोग [[ब्रह्मगुप्त]] के काल से भी पूर्व के काल में होता था।
 
शून्य तथा संख्या के दशमलव के सिद्धान्त का सर्वप्रथम अस्पष्ट प्रयोग [[ब्रह्मगुप्त]] रचित ग्रंथ [[ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त]] में पाया गया है। इस ग्रंथ में ऋणात्मक संख्याओं (negative numbers) और बीजगणितीय सिद्धान्तों का भी प्रयोग हुआ है। सातवीं शताब्दी, जो कि [[ब्रह्मगुप्त]] का काल था, शून्य से सम्बंधित विचार [[कम्बोडिया]] तक पहुँच चुके थे और दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि बाद में ये [[कम्बोडिया]] से [[चीन]] तथा अन्य [[मुसलमान|मुस्लिम]] संसार में फैल गये।
 
इस बार [[भारत]] में हिंदुओं के द्वारा आविष्कृत शून्य ने समस्त [[ब्रह्माण्ड|विश्व]] की [[संख्या पद्धतियाँ|संख्या प्रणाली]] को प्रभावित किया और संपूर्ण विश्व को जानकारी मिली। मध्य-पूर्व में स्थित [[अरब]] देशों ने भी शून्य को भारतीय विद्वानों से प्राप्त किया। अंततः बारहवीं [[शताब्दी]] में [[भारत]] का यह शून्य [[पश्चिम]] में [[यूरोप]] तक पहुँचा।
 
भारत का 'शून्य' अरब जगत में 'सिफर' (अर्थ - खाली) नाम से प्रचलित हुआ। फिर [[लातिन भाषा|लैटिन]], [[इतालवी भाषा|इटैलियन]], [[फ़्रान्सीसी भाषा|फ्रेंच]] आदि से होते हुए इसे [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेजी]] में 'जीरो' (zero) कहते हैं।
 
== गणितीय गुण ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/शून्य" से प्राप्त